इस आपाधापी के युग में लोगों पर मानसिक तनाव हावी होना कोई बड़ी बात नहीं है. हालात ऐसे हैं कि कच्ची उमर के बच्चे भी टेंशन होने की शिकायत करते पाए जाते हैं. ऐसे में तनावमुक्त जीवनशैली की ओर कदम बढ़ाना वक्त की मांग है. हम चाहें, तो क्रिकेट के मैदान से भी वैसे कई गुर सीख सकते हैं, जो बेहतर जीवन की राह दिखाते हैं.
वैसे तो हर खेल में कुछ न कुछ सबक जरूर छुपा होता है. इनमें टीम के लिए रणनीति बनाने से लेकर व्यक्तिगत प्रदर्शन की खातिर कई सुनहरे सूत्र मिल जाते हैं. फिर भी क्रिकेट एक ऐसा खेल है, जिसके लिए हर उमर के लोगों में दीवानगी देखी जाती है. कहने वाले तो इसे एक खेल नहीं, बल्कि 'मजहब' करार देते हैं. ऐसे में कुछ सीखने के लिए क्रिकेट के मैदान का रुख करना रोचक हो सकता है.
आज के मैच पर फोकस
मानसिक तनाव के जितने कारण हो सकते हैं, उनमें सबसे प्रमुख है- आज पर फोकस न रखकर, बीते हुए कल या आने वाले कल के बारे में सोचकर परेशान होना. जब बीते हुए ढेर सारे कल की मुश्किलें और आने वाले ढेर सारे कल की संभावित मुश्किलें आज के ही दिन इकट्ठा कर ली जाती हैं, तो तनाव पैदा होना स्वाभाविक ही है. ऐसी स्थिति का सामना मैदान में खड़े किसी क्रिकेटर की तरह किया जा सकता है.
एक मंजा हुआ खिलाड़ी सिर्फ आज के मैच पर फोकस करता है. चाहे बैटर हो या बॉलर, एक-एक बॉल से पूरा लाभ उठाना चाहता है. इसी तरह, हर किसी को वर्त्तमान को, इसके हरेक पल को बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए.
अगर खिलाड़ी मैदान पर खड़े होकर बीते मैचों के नतीजे या आने वाले मैचों के संभावित नतीजों के बारे में सोच-विचार करने लग जाए, तो क्या होगा? जाहिर है, वह उन मैचों के नतीजों में तो कुछ नहीं जोड़ पाएगा, उल्टे आज हाथ में आए अवसर को जरूर गंवा देगा. इसलिए आज के लिए, केवल आज का ही मैच काफी होना चाहिए!
परफेक्ट टाइमिंग की अहमियत
जीवन में कई बार सही समय पर सही कदम न उठाए जाने से निराशा हाथ लगती है. कई बार लोग किसी निर्णय तक पहुंचने में जरूरत से ज्यादा वक्त ले लेते हैं. इधर किसी काम को करने में थोड़ी ढील दी गई, उधर मौका हाथ से निकला. ऐसे में जीवन के निर्णय भी एक चौकस क्रिकेटर की तरह लिया जाना चाहिए. आखिर जीवन भी तो एक खेल ही है!
22 गज की पिच से लेकर मैदान के कोने-कोने तक, चाहे जहां भी नजर डाल लीजिए, हर जगह परफेक्ट टाइमिंग की जरूरत होती है. बॉलर अपने सधे और नपे-तुले कदमों से आगे बढ़ता है. उधर बैटर भी हवा में ही बॉल को पढ़कर, सही टाइमिंग से उसका जवाब देता है.
बॉल आने से पहले ही बल्ला चल जाए, तो बेकार. बॉल गुजर जाने के बाद बल्ला चले, तो भी बेकार. सेकंड के 100वें हिस्से जितनी भी गड़बड़ी हुई, तो विकेट खोने का खतरा. इसी तरह, विकेट कीपिंग और फील्डिंग में भी 100 फीसदी मुस्तैदी की जरूरत होती है. आखिर यही संघर्ष तो इस खेल में रोमांच भरता है.
प्रेशर बनने न दें
क्रिकेट में 'करंट रन रेट' और 'रिक्वायर्ड रन रेट' पर सबकी नजर रहती है. रन बनने की रफ्तार जैसे-जैसे धीमी पड़ती जाती है, वैसे-वैसे 'रिक्वायर्ड रन रेट' बढ़ता चला जाता है. अगर यही सिलसिला चलता रहा, तो ऐसी स्थिति आती है, जब मैच हाथ से फिसल जाता है. इसके उलट, अगर शुरुआत से ही 'करंट रन रेट' का स्तर ऊंचा रखा जाए, तो बाद में दबाव एकदम कम होता चला जाता है. इस तरह, मैच मुट्ठी में आ जाता है.
फलसफा यह है कि कभी भी आलस्य के कारण या टाल-मटोल की आदत के शिकार होकर, ढेर सारा काम एकसाथ जमा नहीं होने देना चाहिए. हर दिन का काम उसी दिन, हर दिन की पढ़ाई उसी दिन पूरी हो जानी चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया गया, तो कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं. दबाव और तनाव की वजह से हाथ में आई बाजी भी फिसल सकती है. सालोंभर ढंग से पढ़ाई न करने वाले ही परीक्षा नजदीक आने पर घबराते हैं. इसलिए दैनिक जीवन में भी 'रन रेट' पर नजर बनाए रखने में ही समझदारी है.
अपनी खूबियों के सहारे आगे बढ़िए
कई बार लोग कामयाबी पाने के लिए दूसरों की नकल या दूसरों से तुलना करने लग जाते हैं. ऐसा करने की जगह हर किसी को अपनी खूबियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. हर इंसान में कुछ न कुछ मौलिक गुण जरूर होते हैं, जिन पर फोकस करके सफलता पाई जा सकती है.
अगर क्रिकेट की ओर देखें, तो अपने ही देश में अलग-अलग तरह की खूबियों वाले, अलग-अलग शैली वाले खिलाड़ियों ने दुनियाभर में अपने हुनर का लोहा मनवाया है. यहां 'लिटिल चैंपियन', 'हरियाणा हरिकेन', 'द वॉल', 'मिस्टर डिपेंडेबल', 'मास्टर ब्लास्टर', 'कैप्टन कूल', 'हिटमैन', 'गब्बर' जैसी उपाधि वालों की लंबी कड़ी रही है. कितने ही खिलाड़ियों ने दूसरों की नकल किए बिना, अपने नेचुरल गेम से खेलप्रेमियों के दिलों पर राज किया है.
टीम वर्क और साझेदारी का महत्त्व
कड़ी प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अक्सर लोग एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में जीवन-मूल्यों को भुला बैठते हैं. कहावत भी है कि लोग अपना-अपना पहाड़ आसानी से उठा लेते हैं, पर साझे की सुई नहीं. कुछ लोग सिर्फ अपनी कामयाबी को ही जीवन का लक्ष्य मान बैठते हैं. ये भूल जाते हैं कि आदर्श को ताक पर रखकर पाई गई एकाकी कामयाबी टिकाऊ नहीं होती. ऐसे में क्रिकेट के मैदान से टीम वर्क का महत्त्व समझा जा सकता है.
पिच पर दो बल्लेबाज एक-दूसरे से तालमेल बिठाते हुए, भरोसे के साथ एक-एक रन जोड़ते चले जाते हैं. इस तरह, लंबी साझेदारी से रनों का पहाड़ खड़ा हो जाता है. यही वजह है कि विपक्षी टीम लंबी साझेदारी को तोड़ने के लिए पूरी ताकत झोंक देती है. पिच पर दौड़ लगाते हुए अपने सहयोगी से तालमेल बिगड़ने का नतीजा सब जानते हैं.
इसी तरह, टीम के सभी खिलाड़ी एक ही लक्ष्य सामने रखकर चलते हैं- टीम की जीत. जिस टीम के खिलाड़ी व्यक्तिगत प्रदर्शन को ज्यादा महत्त्व देते हैं, उस टीम की सफलता को लेकर संदेह बना रहता है. साथ ही अपने रिकॉर्ड के लिए टीम की जीत को दांव पर लगा देने वाले खिलाड़ी को कोई पसंद नहीं करता. टीम वर्क के फॉर्मूले को अपने घर-परिवार से लेकर किसी भी सेक्टर के कामकाज में आजमाकर देखा जा सकता है.
साहस के साथ धैर्य भी जरूरी
जीवन के कई मोड़ पर, खासकर मुश्किल दौर में साहस और धैर्य से काम लेने की जरूरत होती है. इन दोनों के अभाव में अक्सर बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं. मन में निराशा हावी होने लगती है. इस दुष्चक्र में फंसने से बचना चाहिए.
क्रिकेट के मैदान पर हर रोज साहस और धैर्य के सहारे बड़े-बड़े लक्ष्य हासिल होते देखे जा सकते हैं. अपेक्षाकृत कमजोर समझी जाने वाली टीमों ने भी कई बार दिग्गज टीमों के जबड़े से जीत छीनी है. संभावित हार के डर से उबरकर और सामने आई चुनौती को असंभव न मानकर ही नए कीर्तिमान गढ़े जा सके हैं. साथ ही यह भी जरूरी है कि चाहे कामयाबी मिले या नाकामी, इनसे मिले सबक को हमेशा याद रखा जाना चाहिए.
... तो जब भी कभी मन निराश हो, कोई मुश्किल आए, तुरंत क्रिकेट के मैदान का एक चक्कर लगा आइए.
अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.