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Bihar Diwas: गौरवशाली इतिहास से परे, बिहार की ओर निहारे जाने की वजहें और भी हैं

Amaresh Saurabh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 21, 2025 14:13 pm IST
    • Published On मार्च 21, 2025 14:11 pm IST
    • Last Updated On मार्च 21, 2025 14:13 pm IST
Bihar Diwas: गौरवशाली इतिहास से परे, बिहार की ओर निहारे जाने की वजहें और भी हैं

22 मार्च को बिहार-दिवस मनाया जा रहा है. ऐसे मौकों पर बिहार के गौरव का बखान करते हुए लोग अक्सर इसके सुनहरे इतिहास के पन्ने पलटने लगते हैं. हालांकि आज के बिहार में भी ऐसा बहुत-कुछ है, जिसकी देश-दुनिया में मिसाल दी जा सके. अवसर के बहाने ऐसे ही कुछ तथ्यों पर एक नजर डालते हैं.

महिलाओं के हाथ ताकत

आज हर ओर महिला सशक्तीकरण की बात हो रही है. बिहार ने नारों से अलग हटकर इस दिशा में कुछ बेहद शानदार कदम उठाए हैं. दूसरे राज्यों ने भी बिहार के अनुभव से बहुत-कुछ सीखा और उसे अपने यहां लागू किया.

सबसे पहले बात सत्ता की. महिलाओं को पंचायतों और स्थानीय निकाय के चुनाव में 50 फीसदी आरक्षण देने वाला पहला राज्य बिहार ही है. बिहार ने जो पहल साल 2006 में की, वह आगे चलकर केंद्र और दूसरे राज्यों के लिए नजीर बन गई. आज 21 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों की पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है. इस तरह, बड़े पैमाने पर महिलाओं के हाथों में सत्ता की चाबी सौंपने की दिशा में बिहार अगुआ माना जा सकता है.

महिला सशक्तीकरण की दिशा में बिहार की एक और अनोखी उपलब्धि देखे जाने लायक है. सबसे ज्यादा महिला पुलिसकर्मियों के मामले में बिहार देशभर में नंबर वन पोजीशन पर है. बिहार पुलिस में महिलाओं की भागीदारी करीब 29 फीसदी है, जबकि देशभर के पुलिस-बल में महिलाओं का राष्ट्रीय औसत करीब 16 फीसदी ही है. कह सकते हैं कि बिहार में महिलाएं सुरक्षा मांगने में नहीं, औरों को सुरक्षा देने में आगे हैं.

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नारी का सम्मान और सहूलियतें

बिहार उन गिने-चुने राज्यों में एक है, जहां कई सरकारी विभागों में महिला कर्मचारियों-अधिकारियों को हर महीने दो दिनों की अतिरिक्त छुट्टी दी जाती है. इसे विशेषावकाश (Special Leave)नाम दिया गया है. महिलाएं किसी भी दिन इस छुट्टी का इस्तेमाल कर सकती हैं. ऐसा माना जाता है कि महिलाओं को माहवारी के दिनों में राहत देने के इरादे से इस तरह की छुट्टी लाई गई. हालांकि सरकार की नियमावली में छुट्टी का मकसद साफ नहीं किया गया है. जो भी हो, इससे महिलाओं के हितों की हिफाजत तो हो ही रही है.

महिलाओं को मजबूत बनाने के लिए उन्हें शिक्षित किया जाना बहुत जरूरी होता है. इसी बात को ध्यान में रखकर बिहार ने ज्यादा से ज्यादा बच्चियों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करने का रास्ता अपनाया. स्कूलों में नामांकन बढ़ाने के लिए साल 2006 में साइकिल योजना शुरू की गई. 9वीं क्लास की छात्राओं को साइकिल खरीदने के पैसे दिए जाने लगे. योजना सबको भा गई और पूरी तरह सफल रही. आगे चलकर इसी तरह की स्कीम कर्नाटक, आंध्र समेत कुछ अन्य राज्यों में भी लागू हुई.

बिहार में पूर्ण शराबबंदी योजना के पीछे भी मूल रूप से महिलाओं के हित की भावना काम कर रही है. शराबबंदी की मांग सबसे पहले महिलाओं की ओर से ही उठी थी. अगर शराब की लत एक सामाजिक बुराई है, तो इसका खात्मा भी जरूरी है. रेवेन्यू तो आनी-जानी चीज है!

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पर्यावरण का खयाल

आज ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज के गहरे असर को देखते हुए हर ओर पर्यावरण संरक्षण पर जोर देने की बात हो रही है. कई इलाकों में गर्मियों में पेयजल के अभाव की समस्या भी गहराती जा रही है. इन मुद्दों पर दुनियाभर में बड़े-बड़े सम्मेलन हो रहे हैं. लेकिन हालात ऐसे हैं कि 'सर जो तेरा चकराए और दिल डूबा जाए...'. ऐसे में बिहार में हर घर तक पीने का पानी पहुंचाने की दिशा में ठोस काम किया जाने लगा. भूजल स्तर में सुधार होता रहे, इसके लिए पानी के स्रोतों पर ध्यान दिया जाने लगा. हरियाली बढ़ाने के उपाय भी तेज हुए.

साल 2016. बिहार में 'हर घर नल-जल' योजना की शुरुआत हुई. इसका मकसद नाम से ही स्पष्ट है. इस योजना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा. आगे चलकर साल 2019 में केंद्र ने इसी तरह की योजना 'जल जीवन मिशन' नाम से शुरू की. केंद्र की योजना का लक्ष्य देश के हर गांव के घरों में नल के जरिए पानी उपलब्ध कराना है. इन योजनाओं के सकारात्मक नतीजे दिखने लगे हैं.

साल 2019. बिहार में 'जल-जीवन-हरियाली' मिशन की शुरुआत हुई. इसके तहत जल के स्रोतों की पहचान कर उन्हें पूरी तरह कारगर बनाना, जल-संग्रह के लिए ढांचे तैयार करना, अभाव वाले इलाकों तक पानी पहुंचाना, पौधारोपण, सोलर एनर्जी को बढ़ावा देना जैसे काम शामिल हैं. आगे चलकर केंद्र की ओर से साल 2022 में इसी तरह की एक स्कीम आई- अमृत सरोवर योजना. दोनों ही योजनाएं कारगर साबित हो रही हैं.

कहने का मतलब ये कि छठ जैसे महापर्व के बहाने लोग सूरज, धरती और जल-संसाधनों के प्रति केवल आभार जताकर ही संतुष्ट नहीं हो जाते. प्रकृति की पूजा यहां की योजनाओं में भी रच-बस गई है.  

प्रतिभाओं की खान

वैसे तो साल 2000 में बिहार-विभाजन के बाद ज्यादातर खदानें झारखंड में रह गईं. इसके बावजूद, प्रतिभाओं की खान के मामले में बिहार कई प्रदेशों से आगे बना रहा. बानगी देखनी हो, तो किसी से ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं, बस 'सुपर थर्टी' की याद दिला दीजिए. आगे की कहानी वह खुद सुना देगा. क्या इसरो, क्या नासा, हर जगह इसके प्रोडक्ट आसानी से मिल जाएंगे. बात ही इतना अनोखी है कि इसे रुपहले पर्दे पर उतारने मुंबई से फिल्ममेकर भी दौड़े चले आए.

सिर्फ साइंस और टेक्नोलॉजी ही क्यों, यहां के गीत-संगीत, कला-संस्कृति का परचम देश की सरहद के पार भी लहरा रहा है. सोशल मीडिया का रुख करने पर इस तरह के टैलेंट के दर्शन आसानी से हो जाते हैं. ठेठ बिहारी स्टाइल में, तरह-तरह के देसी उदाहरण देकर, खूब समझा-बुझाकर पढ़ाने वाले आज के टीचरों को आप भूले तो नहीं ही होंगे!

अद्भुत कलाओं का संगम

वैसे तो देश के हर इलाके में कुछ खास तरह की कलाकारी दिख जाती है. यह स्वाभाविक बात है. लेकिन कुछ अद्भुत कलाओं की वजह से बिहार ने देश की सीमा से आगे निकलकर अपनी अलग पहचान बनाई है. मधुबनी (मिथिला) पेंटिंग को ही लीजिए. अब विदेशों तक में इसकी बहुत मांग है. नतीजतन, यह कला बंपर कमाई का जरिया भी बन चुकी है.

ऐसी ही स्थिति बिहार की सिक्की कला की भी है, जिसमें घास के सींकों से मनमोहक कलाकृतियां बनाई जाती हैं. यहां की बनी टोकरी, डलिया, मौनी आदि की भारी डिमांड है. अगर पुराने पड़ चुके कपड़ों का बेहतरीन इस्तेमाल देखना हो, तो सुजनी कला की मिसाल दी जा सकती है. इसमें उपयोगितावाद और कलात्मकता, दोनों की झलक मिल जाती है.

इसी तरह, बिहार की मंजूषा कला में टूटी-फूटी चीजों से भी सुंदर कलाकृतियां बनाई जाती हैं, जिनमें लोक-कथाओं का चित्रण होता है. अन्य कलाओं में टिकुली पेंटिंग, पाषाण शिल्प, काष्ठ कला, कशीदाकारी जैसी हस्तकलाएं बिहार की संस्कृति में मौजूद हैं और अनोखेपन की वजह से सबका ध्यान खींच रही हैं.

चलते-चलते इतना ही कहा जा सकता है कि बिहार की चर्चा चलने पर बात-बात में बुद्ध-महावीर, आर्यभट्ट या नालंदा-विक्रमशिला, चंपारण-सीवान को लाना जरूरी नहीं है. चीजों को आज के संदर्भ में भी देखे जाने की जरूरत है.

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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