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BLOG : 'सॉरी' कहने में दरियादिली दिखलाना महंगा पड़ सकता है!

Amaresh Saurabh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 30, 2025 18:24 pm IST
    • Published On अप्रैल 30, 2025 18:21 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 30, 2025 18:24 pm IST
BLOG : 'सॉरी' कहने में दरियादिली दिखलाना महंगा पड़ सकता है!

हाल ही में एक नामी विदेशी अखबार ने माफी को लेकर दिलचस्प रिपोर्ट छापी है. इसमें एक रिसर्च के आधार पर बताया गया है कि वर्कप्लेस पर महिलाएं पुरुषों की तुलना में ज्यादा माफी मांगती हैं. पुरुषों से करीब-करीब दोगुना. सवाल है कि क्या सॉरी कहने में दरियादिली दिखलाने का असर उल्टा भी पड़ सकता है? अगर हां, तो कैसे? चलिए, इसके सारे पहलुओं पर विचार करते हैं.

खतरे की घंटी!

रिसर्च करने वालों ने मोटे तौर पर यही पाया कि वर्कप्लेस पर ज्यादा सॉरी बोलने से इमेज को नुकसान पहुंचता है. ज्यादातर एम्प्लायर ये समझते हैं कि सॉरी बोलने वाला अपने काम को लेकर ज्यादा सीरियस नहीं है. सॉरी को अयोग्यता और अक्षमता से जोड़कर भी देखा जाता है. ऐसे में माफी मांगने का असर उम्मीद के विपरीत भी निकल सकता है.

सोचने की बात यह है कि अगर सॉरी बोलने से नुकसान होने का डर सताएगा, तो शिष्टाचार को पनाह कौन देगा? अगर ऐसा ही चलता रहा, तो आने वाले दिनों में सॉरी बोलने वाले ढूंढते रह जाओगे! कम से कम किसी नतीजे तक पहुंचने से पहले कवि रहीम को सुन लेते. छिमा बड़न को चाहिए, छोटेन को उतपात... और यहां तो कोई उत्पात नहीं, उल्टा सॉरी ही बोला जा रहा है. सॉरी हजम करने में इतनी दिक्कत क्यों?

बैकग्राउंड चेक कीजिए

चिंता की बात यह भी है कि वर्कप्लेस पर सॉरी बोलने में महिलाएं पुरुषों से काफी आगे हैं. जाहिर है, ऐसे में सॉरी बोलने का खामियाजा भी महिलाओं को ज्यादा भुगतना पड़ता होगा. जरूरत इस बात की है कि एम्प्लायर सबसे पहले सॉरी बोलने वाले का बैकग्राउंड चेक करें. ये देखें कि बात-बात में 'सॉरी', 'एक्सक्यूज मी प्लीज' और 'थैंक्स' बोलना कहीं बोलने वाले की फितरत में तो शामिल नहीं? अगर ऐसा है, तो ऐसों को दिल से माफी मिलनी चाहिए.

बैकग्राउंड चेक करते समय ये भी देखिए कि उसकी स्कूलिंग कहां से हुई है. किस बोर्ड से? अगर अपने यहां की बात होती, तो मामला समझना थोड़ा आसान होता. कहीं-कहीं की शिक्षा-दीक्षा में बच्चों को शिष्टाचार घुट्टी में मिलाकर पिलाया जाता है. ऐसे लोगों की बोली से अगर शिष्टाचार वाले शब्द हटा दें, तो वाक्य में तथ्य के नाम पर और कुछ बचे ही नहीं! इनके विपरीत, कुछ लोगों की बोली में शिष्टता के शब्द खोजने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ सकता है. ऊपर से तुर्रा ये कि जो अक्सर सॉरी कहने से बच निकलते हैं, क्या पता वे वर्कप्लेस पर ज्यादा काबिल समझे जाते हों!

एक अदद 'सॉरी' का सवाल

सॉरी कहने को कमजोरी मानने वाले शायद इस एक शब्द की वैल्यू ठीक-ठीक नहीं लगा पा रहे. बात-बात में सॉरी कहने की दरियादिली बेशक भारी पड़ती हो, लेकिन बात हद से ज्यादा बिगड़ जाने पर भी सॉरी न कहने को क्या कहेंगे? एक अदद 'सॉरी' के अभाव में दुनिया का बहुत भारी नुकसान हो रहा है. बहुत बड़ी आबादी का टाइम खराब हो रहा है.

आज दुनियाभर में छिड़ी कई घमासान लड़ाइयों का अंत तुरंत हो जाए, बस दोनों में से कोई एक आगे आकर सॉरी बोल दें. कह दें कि इसमें मेरी भूल है, अब बात खत्म करते हैं. लेकिन नहीं. हर दिन आसमान में काले धुएं का गुबार, लेकिन ये अहम है कि मानता नहीं! दोनों इंतजार में हैं कि पहले सॉरी कौन बोले. ऐसे ही मौकों पर इंग्लिश रायटर एजी गार्डिनर याद आते हैं.

ऑन सेइंग प्लीज...

गार्डिनर साहब की एक चर्चित रचना है, 'ऑन सेइंग प्लीज'. इसमें वे समझाते हैं कि अगर लोग दैनिक जीवन में 'प्लीज', 'थैंक्स' जैसे शिष्टाचार वाले शब्दों का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें, तो लाइफ बहुत आसान हो जाए, लेकिन अफसोस, ऐसा कोई कानून नहीं है, जो लोगों को इन शब्दों का इस्तेमाल करने को बाध्य करे! उनकी रचना का लब्बोलुआब यह है कि जिस तरह बुरा व्यवहार एक-दूसरे में संक्रमण की तरह फैलता है, उसी तरह अच्छा बर्ताव भी तेजी से फैलता है. अगर हमें एक-दूसरे के जीवन को शानदार बनाना है, तो शिष्टाचार के शब्द अपनाने होंगे.

जरा सोचिए, अगर गार्डिनर साहब को आने वाले दौर, माने आज की हकीकत का अंदाजा होता, तो उन्होंने 'प्लीज', 'थैंक्स' के साथ-साथ 'सॉरी' शब्द की राशनिंग पर भी जरूर बात की होती. हद है भाई! सॉरी भी बोलो, सैलरी भी कटवाओ. पुरुषों की तुलना में दोगुना सॉरी बोलने का ये मतलब थोड़े ना है कि महिलाएं दोगुना ज्यादा गलतियां करती हैं?

वैसे शिष्टाचार दिखलाकर जेब कटवाने वालों के लिए भी लेखक ने एक अच्छी बात कही है. उनका मानना है कि विनम्र इंसान भले ही पैसे-कौड़ी के मामले में फायदे में न रहे, पर वह हमेशा आध्यात्मिक विजय पाता है. अब इस 'आध्यात्मिक विजय' का क्या करना है, लोग खुद तय कर लें!

सॉरी और दुनियादारी

जिस तरह हर इंसान का अपना व्यक्तित्व होता है, उसी तरह हर देश की अपनी इमेज होती है. देशों में भी कोई विनम्र होता है, कोई एकदम अक्खड़. कुछ रिसर्च में ऐसा पाया गया है कि ब्रिटिश लोग (गार्डिनर साहब वाला देश!) अमेरिकियों की तुलना में चार गुना ज्यादा माफी मांगते हैं. माफी मांगने में कनाडा और जापान के लोग भी अगली कतार में खड़े रहते हैं. इस मामले में फ्रांस थोड़ा अलग है. फ्रांस के लोग माफी मांगने की जगह सीधे-सीधे सफाई पेश करना जरूरी समझते हैं. कुछ देशों की संस्कृति में माफी मांगना कमजोरी की निशानी समझी जाती है, इसलिए लोगों को अपनी बात पर अड़े रहना सिखाया जाता है. सवाल ये है कि बात-बेबात सॉरी बोलते रहने वालों को इस तरह की दुनियादारी सीखने में दिक्कत क्या है भाई?

अनुभव का हितोपदेश

अपने यहां पंचतंत्र, हितोपदेश, अर्थशास्त्र जैसी अनेक रचनाएं सदियों से लोकप्रिय रही हैं. वजह ये कि इनमें रोचकता तो है ही, व्यावहारिक ज्ञान भी कूट-कूटकर भरा गया है. पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियों में माफी मांगने या माफ करने के नाम पर जंगलों में बड़े-बड़े कांड होते दिखाए गए हैं. सार यह है कि कभी-कभी सज्जनता और विनम्रता भी घातक साबित होती है.

आचार्य चाणक्य पहले ही कह गए हैं कि जीवन में ज्यादा सीधापन उचित नहीं. जंगल में सीधे पेड़ पहले काटे जाते हैं, जबकि टेढ़े-मेढ़े छोड़ दिए जाते हैं. मतलब ये कि सतर्क रहिए, सुरक्षित रहिए... और हो सके तो अगली बार सॉरी बोलने से पहले, इस पर कुछ और रिसर्च कर लीजिए!

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