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    संकट में मौके: कोरोना महामारी के दौरान जुगाड़ और इनोवेशन जो जगाते हैं उम्मीद..

    कोरोना (Coronavirus Pandemic) की एंट्री अपने देश में केरल में हुई थी और वहीं की एक स्टार्ट अप असिमोव रोबोटिक्स ने एक रोबो बनाया जो सार्जनिक जगहों पर सैनिटाइजर बांटता है और अस्पतालों में मरीजों को खाना-दवाई पहुंचाता है. इस रोबो के जरिए मेडिकल स्टाफ मरीजों से वीडियो कॉफ्रेंसिंग के जरिए बात भी कर सकते हैं.मतलब यह है कि ज्यादा संक्रमण के खतरे वाले इलाकों में रोबो सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने में मदद करता है. मार्च के महीने में ही इसका प्रोटोटाइप बना और इसका जमकर प्रचार भी हुआ.

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    जिनके लिए लोगों ने बजाई थी थाली, अब लोग उन्हीं को दे रहे हैं गाली

    कोरोना का कहर अब धीरे-धीरे बड़ा होता जा रहा है और  लोगों की अवेयरनेस पैनिक में बदल रहा है. तभी तो जिसे कोरोना हो रहा है उसे और उसके घर वालों को लोग दुश्मन की तरह देखने लगे हैं.  उनके साथ उपेक्षित व्यवहार हो रहा है, जैसे उन्होंने कोई बड़ा अपराध किया हो. इस नासमझी का आलम ये है कि लोग अपने ही पड़ोसी और परिचितों को दुश्मन की नज़र से देख रहे हैं.

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    लॉकडाउन में बनारस की मस्ती का अपना बिंदासपन

    दुनिया जब तक उस वायरस के खतरनाक मनसूबों और उसकी ताक़त को समझती तब तक वो चीन के वुहान शहर से चुपके से इटली पहुंच गया और फिर वहां से पूरे यूरोप को अपनी गिरफ्त में लेने लगा. देखते-देखते उसने इंसानो को न सिर्फ अपनी गिरफ्त में लिया बल्कि उनकी जान भी लेने लगा. हर तरफ उसकी ताक़त और पांव पसारने की क्षमता ने लोगों को असहाय कर दिया. ऐसे  कहर और नज़र न आने वाले वायरस की कल्पना इक्कीसवीं सदी में चांद और मंगल गृह पर अपना झण्डा बुलंद करने वाले अत्याधुनिक वैज्ञानिकता से युक्त मानव की कल्पना में भी नहीं रहा होगा. और ये कल्पना भारत के उस प्राचीन नगर को भी नहीं थी, जहां  गतिशीलता कभी रूकती नहीं जो अनादिकाल से अपने रस से शिव की त्रिशूल पर विराजमान हो कर सभी को सराबोर करती रही.

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    संत रविदास की जयंती पर पकती रही दिनभर राजनीतिक खिचड़ी

    पंजाब में चुनाव हैं और वहां रैदासियों कि संख्या निर्णायक भूमिका अदा करती है। और वो सभी रैदासी अपने गुरु को मत्था टेकने ज़रूर यहां आते हैं। लिहाजा नेता कैसे पीछे रहते क्योंकि मौक़ा भी था और दस्तूर भी

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    अजय सिंह का ब्लॉग : बनारस की फ़िज़ां हुई ज़हरीली, सांस लेना तक मुमकिन नहीं

    आज आलम यह है कि आप बनारस के किसी भी इलाके जाएं, धूल के गुबार के बीच सड़क बहुत मुश्किल से दिखाई पड़ती है...

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    मैं प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र का कूड़ा हूं, किसी में हिम्मत है हाथ लगाने की?

    मैंने इन्हीं सड़कों पर बड़ी शान से पड़े रहकर यह देखा है कि जबसे हमारे सांसद नरेन्द्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने, तब से लेकर आज तक यानी एक साल में मंत्रियों और कैबिनेट स्तर के सचिवों का तकरीबन 129 बार दौरा हो चुका है।

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    प्रेमचंद@135 : बेहतर तो होता कि आज आप प्रासंगिक न होते

    देश का मीडिया मुंबई बम काण्ड के दोषी याकूब मेमन की फांसी पर बहस मुबाहिसों में फंसा हुआ है। उसके पास उस सामाजिक सरोकार के लिए उतना समय नहीं है, जिसे मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कथावस्तु बनाया था।

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    अजय सिंह : गंगा के अवतरण के दिन गंगा का हाल

    हज़ारों करोड़ रुपये खर्च करने और तमाम दावों और वादों के बाद भी दिन ब दिन गंगा की दशा खराब ही होती जा रही है, लेकिन गंगा के प्रति आस्था और श्रद्धा आज भी उतनी ही बलवती है।

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    अजय सिंह की कलम से : बदहाली के मझधार में खुशहाली का किनारा ढूंढता मैं बनारस हूं

    शिवालों के घंटे ही मेरी पहचान नहीं हैं, ना ही अजान की वो पाक आवाज़। गंगा के घाटों पर उतरती सुबह की मुलायम धूप भी मेरी तबीयत का एक हिस्सा भर है। सती, सांड, सीढ़ी और संन्यासी से आगे मैं तो अपने ब्रह्मांड में और भी बहुत कुछ समाए हुए हूं। मैं शिव की काशी हूं। मैं भारत का वाराणसी हूं।

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    अजय सिंह की कलम से : धूल-भरी बदहाल सड़कों में खो गया है प्रधानमंत्री के 'सपनों का बनारस'

    एक साल होने के बाद भी वादों को पूरा करने की दिशा में कोई जुंबिश ज़मीन पर दिखाई नहीं दे रही है, सो, बनारस के लोगों को लगने लगा है कि विकास के सारे वादे यहां की ऊबड़-खाबड़ और धूल भरी सड़कों पर कहीं खो गए हैं, जिन्हें ढूंढकर लाना वादा करने वाले मंत्रियों के बस की भी बात नहीं है।

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