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This Article is From May 28, 2015

अजय सिंह : गंगा के अवतरण के दिन गंगा का हाल

Ajay Singh
  • Blogs,
  • Updated:
    मई 28, 2015 16:06 pm IST
    • Published On मई 28, 2015 15:44 pm IST
    • Last Updated On मई 28, 2015 16:06 pm IST
वाराणसी : आज गंगा दशहरा है। आज ही के दिन गंगा पृथ्वी पर आई थी और तब से लेकर आज तक गंगा हम सबको तार रही है। लेकिन हम हैं कि गंगा की हालत को बद से बदतर किए जा रहे हैं।

गंगा की इस दुर्दशा को सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए। देश की सबसे बड़ी अदालत ने भी गंगा की दशा को ठीक करने के लिए सरकार को फटकार लगाई। मोदी सरकार ने भी गंगा से बड़े-बड़े वादे किए, लेकिन गंगा का दर्द जस का तस है। बावजूद इसके श्रद्धा और आस्था कम नहीं हुई।

गंगा के अवतरण के दिन हज़ारों लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई और पूजन-अर्चन किया। लेकिन इसी पूजन-अर्चन में गंगा में लोग फूल माला चढ़ाते हैं। यह हज़ारों श्रद्धालुओं की आस्था की निशानी है, पर यही आस्था गंगा को प्रदूषण का दर्द भी दे जाती है। जब गंगा अपनी तेज धारा के साथ इठलाती हुई बहा करती थी, तब तो वो इन फूल-मालाओं को समेट कर अपने दामन से दूर फेंक आती थी और अपने भक्तों के लिए वह निर्मल बनी रहती थी। पर आज गंगा कई बांधों में कैद है। उसकी दम तोड़ चुकी धारा में इतनी ताक़त नहीं कि वो इसे बहा सके। लिहाजा लोगों की ये आस्था उस पर भारी पड़ रही है।



स्नानार्थी निर्मल भी इससे इत्तेफाक रखते हुए कहती हैं कि आस्था के नाम पर हम ही लोग फूल, माला चढ़ाकर गंदगी फैला रहे हैं। होना ये चाहिए कि ये सब कहीं एक किनारे कोने में हो। इस तरह की आस्था गंगा के दामन में दाग ज़रूर है, पर बड़ा दर्द गंगा में गिर रहे नाले और फैक्टरियों का कचरा है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ हर साल 3000 MLD सीवेज गंगा में डाल दिया जाता है, जिसमें अकेले बनारस में 300 MLD सीवेज डाला जाता है। गंगा में डाले जाने वाले सीवेज में हम सिर्फ 1000 MLD का ही ट्रीटमेंट कर पाते हैं, बाकी 2000 MLD सीवेज ऐसे ही बहा दिया जा रहा है।

1986 से शुरू हुए गंगा एक्शन प्लान से लेकर आज तक करोड़ों रुपये बह गए, लेकिन गंगा की दशा नहीं सुधरी। लोग अब बिलकुल ना-उम्मीद हैं। घाट पर ही जिनकी जिंदगी चलती है वो घाट के पुजारी बच्चा महराज गंगा की सफाई को पूछते ही फट पड़ते हैं, "अस्सी से वरुणा तक नाला बह रहा है, अस्सी से वरुणा तक कूड़ा गिर रहा है, अस्सी से वरुणा तक फूल मालाएं सड़ रही हैं। लाशें बह रही हैं। कोई बदलाव नहीं है।"

इस बेकदरी ने गंगा के पानी को पीने और नहाने की कौन कहे आचमन लायक भी नहीं छोड़ा। पर गंगा सिर्फ नदी नहीं है, ये जितना जमीन पर बहती है, उससे ज़्यादा हमारे दिलों में बहती है। हज़ारों करोड़ रुपये खर्च करने और तमाम दावों और वादों के बाद भी दिन ब दिन गंगा की दशा खराब ही होती जा रही है, लेकिन गंगा के प्रति आस्था और श्रद्धा आज भी उतनी ही बलवती है। तभी तो गंगा चाहे जितनी गंदी हो गई हो, उसके गोद में हज़ारों लोग डुबकी लगाते नज़र आते हैं।

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