पर शायद ये लोग इतने नादान हैं या ये नहीं समझते कि मैं कोई ऐरे-गैरे शहर का कूडा नहीं हूं। मैं तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र का कूड़ा हूं। है किसी में हिम्मत कि हमें हाथ लगा दे, जबकि हमें हटाने के लिए नगर निगम के पास 2700 सफाईकर्मियों के साथ जेसीबी, डंपर, डंपर क्रेसर, टैंकर, हॉपर और छोटा हॉपर का पूरा लाव-लश्कर तैयार है।
बावज़ूद इसके कोई हमें अपनी जगह से हिला नहीं पाता। बस इतना कर पाता है कि एक जगह से उठाकर दूसरी जगह की सैर भर करा देता है और इस सैर को हम बड़े मजे से इसलिए करते हैं कि हमें पता है कि हमारे लिए, जो इन्होंने डम्पिंग प्लांट बना रखा है उसमें करसड़ा डम्पिंग प्लांट का संचालन ठप है और रमना डम्पिंग प्लांट का रास्ता तो खराब है ही साथ ही वहां के ग्रामीण ही हमें नहीं आने देंगे।
हमारा अपना वजूद हमारे अपने शहर की संकरी गलियों में भी खूब फलता-फूलता है, क्योंकि इन गलियों में हमें (कूड़ा) रखने के लिए खाली जगह नहीं मिलती। लिहाजा कन्टेनर रखने में भी फजीहत है। और सफाईकर्मी तो बस खानापूर्ति करते हैं। ऐसे में मैं बड़े मजे से सीना ताने पड़ा हूं। हां, पिछले साल कुछ समय के लिए हमें परेशानी हुई थी। जब एटूजेड वाले घर-घर से हमें उठा कर हमारे अपने प्रिय शहर और गलियों से दूर ले जाकर निस्तारित कर रहे थे। तब थोड़ी घबराहट हुई थी पर मन में एक निश्चिंतता भी थी कि ये सब ज़्यादा दिन नहीं चल पाएगा, क्योंकि हम जानते थे कि नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारी, नेता, पार्षद पैसे के चक्कर में एटूजेड की ऐसी फजीहत करेंगे कि वह भाग खड़ा होगा। और हुआ भी वही। अब हर रोज हमें हटाने के लिए नई-नई स्कीमें बनती हैं, पैसा आता है और बंट जाता है। उधर, हमें हटाने के नाम पर अधिकारी और नेता मस्त हैं और इधर हम सड़कों पर अपना साम्राज्य फैलाए मगन हैं।
ऐसा नहीं कि हमें अपने वजूद पर कभी खतरा महसूस नहीं हुआ। जब हमारे सांसद प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने स्वच्छता की बात बड़े जोरों से कही। बनारस आए तो खुद झाडू भी लगाने लगे। इतना ही नहीं उन्होंने यहीं पर अपने सफाई के नवरत्न भी घोषित कर दिए। शुरू में इन नवरत्नों में जोश भी दिखा। इन्होंने भी अपने-अपने नवरत्न घोषित कर दिए तो थोड़ा मन में डर लगा, पर एक तरफ निश्चितंता यह थी कि ये नवरत्न जिस तरह थोड़ा-सा झाडू लगाकर फोटो ज्यादा खिंचवा रहे थे, तभी लगा कि ये हमें क्या हटा पाएंगे। यह बात सच निकली। आज ये सब फोटोबाज कहां है, किसी को नहीं चिंता। लिहाजा, हमारा अपना वजूद हर जगह कायम है।
पीएम के संसदीय क्षेत्र का होने का फायदा सिर्फ हमें ही नहीं है बल्कि हमारी सहेली सीवर के पानी की भी खूब मौज है। हम तो एक जगह ही पड़े रहते हैं। वहीं से सारा नजारा देखते हैं, पर हमारी सहेली सीवर रानी की जगह-जगह पाइप लाइन टूटी है, वह बाहर निकलकर सड़कों पर और फिर वहां से घरों में जो पानी की सप्लाई जा रही है उसके पाइप के जरिये सैर करती है। सीवर मिले पानी को लोग पीने के लिए मज़बूर हैं।
मजे की बात यह है कि इसे भी रोकने वाला कोई नहीं, क्योंकि जल संस्थान के अधिकारी इसे रोकने के लिए करोड़ों रुपये की योजना बनाकर भेज चुके हैं और इस बात के इंतज़ार में हैं कि जब पांच दस साल में यह पैसा आएगा तब देखा जाएगा। तब तक इसकी मरम्मत के नाम पर अपनी झोली भर रहे हैं। वैसे भी जेएनयूआरएम के तहत जो सीवर पाइप लाइन डाली जा रही हैं, उसके भी कोई मायने नहीं हैं, क्योंकि इस पाइप लाइन को जिस एसटीपी तक ले जाएंगे उस एसटीपी के लिए अभी जमीन ही नहीं मिल पाई है। लिहाजा भले ही इसके लिए करोड़ों रुपये आ गए हों पर हम लोगों की मौज में कोई खलल नहीं डाल सकता।
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हमारी इस मौज में हमारे एक साथी की बड़ी मदद है। वह साथी है सड़क, जो हमें पनाह देने के लिए अपनी सड़कों पर बड़े-बड़े गढ्ढे बना देता है, जिसमें हम और हमारी सहेली सीवर के पानी को आराम करने का बड़ा मौका मिल जाता है। अब तो सड़कों पर ये गढ्ढे ऐसे हो गए हैं कि सड़क बमुश्किल दिखती है। इसे ठीक करने के लिए खूब धरना-प्रदर्शन हुए। अखबारों में भी निकला पर किसी की इतनी ताकात ही नहीं कि इसे बनवा सके।
अभी हाल ही में आम आदमी पार्टी वाले ऐसे ही गड्ढे में बरसात का पानी भरा होने पर उसमें धान का बेहन रोपकर विरोध जता रहे थे। उनकी इस बुद्धि पर हमें तरस आ रहा था कि ये कोई दिल्ली नहीं है, जहां उनकी सरकार है। फिर जहां उनकी सरकार है वहीं उनकी नहीं चल रही तो ये तो हमारे प्रधानमंत्री जी का संसदीय क्षेत्र है। यहां भला ये लोग हमारा क्या कर पाएंगे।
अंत में यही कहने को जी चाहता है कि हमारी काशी तो शिव की नगरी है, यहां कण-कण में शंकर है। इसकी इसी निराली महिमा को कवि और शायरों ने अपने-अपने अंदाज में बयां किया है। एक शायर ने इसी कड़ी में लिखा है कि " ख़ाक भी जिस जमीं का पारस है, वो शहर बनारस है" इन लाइनों को शायर ने इस शहर की फिजाओं में बह रही उस अजीब-सी कशिश को महसूस कर लिखा होगा, जिसमे किसी रूहानी ताक़त का अहसास होता है, पर लगता है कि हमारे आज के हुक्मरान हम जैसे कूड़े को ही पारस समझ बैठे हैं इसीलिए हमें हटा नहीं पा रहे।