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This Article is From Feb 23, 2016

संत रविदास की जयंती पर पकती रही दिनभर राजनीतिक खिचड़ी

Ajay Singh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 23, 2016 19:40 pm IST
    • Published On फ़रवरी 23, 2016 13:10 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 23, 2016 19:40 pm IST
आज से तकरीबन 500 साल पहले कबीर और तुलसी के समकालीन संत रविदास जिन्हें लोग रैदास के नाम से भी पुकारते थे। वाराणसी के सीर गोवर्धन इलाके में एक दलित परिवार में जन्मे थे। पैत्रिक काम मोची का करते हुए वे ऊंचे संत हुए और भक्ति मार्ग की परम्परा को ये कह कर नई ऊंचाई दी कि "मन चंगा तो कठौती में गंगा"। रैदास ने उस समय जाति और ऊंच-नीच के बंधन पर खूब कटाझ किया था।

अपनी जाति के बारे में रैदास ने कहा। "जाति भी ओझी, करम भी ओझा, ओझा कसाब हमारा, निचे से प्रभु ऊंचा कियो है, कहे रैदास चमारा"

तत्कालीन समय में धर्म और जाति के नाम पर बनी व्यवस्था को भी रैदास ने भी खुली चुनौती देते हुए कहा "सब में हरि है, हरि में सब है, हरि अपनों जिन जाना, साखी नहीं और कोई दूसरा, जानन हार सयाना।"  लेकिन इसी समता के संत कि जयंती पर उनका मंदिर सोमवार को राजनीति का केंद्र बनता दिखाई पड़ा।

गौरतलब है कि पंजाब में चुनाव हैं और वहां रैदासियों कि संख्या निर्णायक भूमिका अदा करती है। और वो सभी रैदासी अपने गुरु को मत्था टेकने ज़रूर यहां आते हैं। लिहाजा नेता कैसे पीछे रहते क्योंकि मौक़ा भी था और दस्तूर भी। लिहाजा पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कार्यक्रम बना। तो तुरंत अरविन्द केजरीवाल का भी कार्यक्रम आ गया। ऐसे में राजनीति होना तय थी। हालांकि यूपी में एमएलसी का चुनाव हो रहा है आचार संहिता लगी हुई है।  लिहाजा इतने बड़े भक्तों के बीच इन नेताओं का भाषण तो नहीं हो सका, पर वहां पहुंचकर इन दोनों नेताओं ने अपने अपने तरीके से अपनी मंशा और भाव व्यक्त किया।  

सुबह तय समय से आधा घंटा पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहुंच गए। उन्होंने संत रविदास कि मूर्ति पर मत्था टिकाया फिर संतों से बात की और पंगत में बैठकर संत का लंगर भी चखा। बाद में लंगर बनाने वाले सेवादारों से मिलाने के लिए अपने अंदाज़ में रसोइये तक गए। तकरीबन 25 मिनट मंदिर में रह कर अपनी मौजूदगी का मकसद बता कर प्रधानमंत्री चले गए।

उनके बाद रविदास की शरण में मत्था टेकने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पहुंचे। उन्होंने लंगर तो नहीं चखा पर थोड़ा प्रसाद ज़रूर लिया और संतों से बातचीत की। अंत में कहा कि संत रविदास जिस काम में लगे थे आज भी वो कुरीतियां वैसी ही हैं।  हम ऐसी ही कुरीतियों के खिलाफ लड़ रहे हैं। हमारा मिशन भी यही है। इसी मिशन कि सफलता का आशीर्वाद लेने आए हैं। साफ़ है कि पंजाब चुनाव के अपने मकसद को केजरीवाल जी ने इशारे इशारे में समझा दिया।  

इस बीच इन दोनों नेताओं के आने से बनारस और संत के दरबार में इनके समर्थकों में उठा पटक भी चलती रही। सुबह तय समय से पहले प्रधानमंत्री के आ जाने से मंदिर से बाहर गए रैदासी संत निरंजन दास जब पीएम के आने पर अंदर आना चाहते थे तो सुरक्षा कारणों से उन्हें रोक दिया गया। जिससे उनके भक्तों में गहरा असंतोष हुआ और प्रधानमंत्री के खिलाफ नारेबाजी भी हुई।  वहीं, दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी और बीजेपी के कार्यकर्ता सुन्दरपुर इलाके में नारेबाजी करते हुए आपस में भीड़ गए और जमकर पत्थरबाजी हुई जिसमें कई लोग घायल भी हुए।  

बता दें कि बनारस जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद अरविंद केजरीवाल पहली बार बनारस पहुंचे थे।

आज की जातिवादी राजनीति और एक दूसरे से ऊपर उठने और अपना काम निकालने के लिए राजनेता किसी भी हद तक जा सकते हैं। इस साल पंजाब में चुनाव होने हैं संत रविदास को मानने वाले 25 लाख लोग यहां आते हैं। अगले साल यूपी में चुनाव हैं और 21 पर्सेंट यूपी में भी संत रविदास को मानने वाले लोग हैं। यानि यहां आना कहीं राजनीतिक रोटी सेंकने का जरिया तो नहीं था...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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