प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब पिछले साल चुनाव लड़ने बनारस आए थे तो दशकों से बदहाली के शिकार शहर के लोगों में एक नई उम्मीद जगी थी। मोदी जी ने इस उम्मीद को पुख्ता करते हुए बनारस के विकास की कई योजनाओं की घोषणा भी की, लेकिन अब एक साल होने को है, और उनकी सभी योजनाएं पिटारों में ही बंद हैं। किसी भी योजना पर कोई भी काम शुरू नहीं हो पाया है।
इन परियोजनाओं में एक को प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी परियोजना बताया जाता रहा है, जो बुनकरों के लिए थी। इसके तहत उन्हें एक ही छत के नीचे न सिर्फ ट्रेनिंग दी जाएगी, बल्कि उन्हें बाजार उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनकी हर मुश्किल को आसान करने के रास्ते भी बताए जाएंगे। तकरीबन 200 करोड़ रुपये की लागत वाले इस ट्रेड-फेसिलेटेड सेंटर का शिलान्यास पिछले साल 7 नवंबर को प्रधानमंत्री ने बड़े जोर-शोर के साथ किया था और कहा था कि यह योजना बुनकरों की तकदीर बदल देगी।
लेकिन आज सात महीने गुज़र चुके हैं, और यहां ईंट रखना तो दूर, अभी जमीन के हस्तांतरण का विवाद ही नहीं सुलझा है। खुद कपड़ा मंत्री संतोष गंगवार कहते हैं, "यह प्रोजेक्ट सवा दो साल में पूरा होगा... बनारस विकास प्राधिकरण से इसकी अनुमति अभी नहीं मिली है, और जैसे ही अनुमति मिलेगी, काम शुरू हो जाएगा... हम बिना अनुमति काम शुरू नहीं कर सकते, लेकिन हमें लगता है कि एक-डेढ़ महीने में अनुमति मिल जानी चाहिए..."
शिलान्यास और घोषणा के बाद शुरुआत की इंतज़ार में सिर्फ यही अकेली योजना नहीं है। ऐसी कई और भी योजनाएं हैं, जिनमें प्रमुख है बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में 600 करोड़ रुपये की लागत वाली टीचर्स ट्रेनिंग सेंटर बनाने की योजना, जिसका शिलान्यास भी प्रधानमंत्री ने ही किया था। इसी तरह की अन्य योजनाएं हैं - 500 करोड़ रुपये की डीज़ल रेल इंजन विस्तारीकरण योजना, 250 करोड़ की बनारस कैंट रेलवे स्टेशन की रिमॉडलिंग की योजना, जिसमें सिर्फ संसद निधि से 36 लाख लगे हैं, 900 करोड़ की भूमिगत केबल योजना।
इसी प्रकार वाराणसी के हेरिटेज स्वरूप को बचाए रखने के लिए 90 करोड़ की हृदय योजना तथा शहर के घाटों पर वाई-फाई की सुविधा देने और सफाई करवाने की योजना भी फिलहाल शुरुआत का इंतज़ार ही कर रही है, और इस बीच केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू 18,000 करोड़ रुपये की नई योजनाओं का सपना दिखा गए। उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा, "केंद्र सरकार विभिन्न विभागों से 18,000 करोड़ रुपये वाराणसी और आसपास के इलाकों को विकसित करने के लिए दे रही है, जिनमें सड़क, बिजली, सिंचाई, शिक्षा, पानी जैसे मुद्दों से जुड़ी योजनाओं शामिल हैं... ये सभी योजनाएं पूरी हो जाएंगी, तो बनारस की रूप-रेखा बदल जाएगी..."
जब पुराने वादे ही अब तक ज़मीन पर दिखाई नहीं दे रहे हैं, सो, वेंकैया नायडू के ये नए सपने उत्साहित नहीं कर पा रहे हैं। सरकार भी जानती है कि जनता इस एक साल का हिसाब मांगेगी, इसलिए 26 मई से सरकार अपने कामकाज का ब्योरा जनता को देने के लिए कार्यकर्ताओं को तैयार कर रही है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में वेंकैया नायडू ने पार्टी कार्यकर्ताओं से घर-घर जाकर जनता को विकास की योजनाओं के बारे में जानकारी देने की ताकीद दी।
वैसे, डर यह भी है कि जनता जब पुराने वादों का हिसाब मांगेगी, तो कहीं कार्यकर्ता उन सवालों से निराश न हो जाएं... इसलिए यह कहकर उनका मनोबल बढ़ाया जा रहा है, "लोग कह रहे हैं, नौ महीने हो गए... अरे, नौ महीने में तो बच्चा पैदा होता है, लेकिन क्या वह पैदा होते ही दौड़ने लगता है... फिर भी देखिए, सरकार दौड़ रही है... इसलिए आप सब लोग घर-घर जाएं, और सरकार की अब तक की उपलब्धियां बताएं..."
लेकिन जिस तरह एक साल होने के बाद भी वादों को पूरा करने की दिशा में कोई जुंबिश ज़मीन पर दिखाई नहीं दे रही है, उससे बनारस के लोगों को लगने लगा है कि विकास के सारे वादे यहां की ऊबड़-खाबड़ और धूल भरी सड़कों पर कहीं खो गए हैं, जिन्हें ढूंढकर लाना वादा करने वाले मंत्रियों के बस की भी बात नहीं है। शायद इसीलिए दशकों से बदहाली झेल रहे बनारस के लोग अब भी प्रधानमंत्री के सपनों के बनारस को नहीं देख पा रहे हैं।
This Article is From May 14, 2015
अजय सिंह की कलम से : धूल-भरी बदहाल सड़कों में खो गया है प्रधानमंत्री के 'सपनों का बनारस'
Ajay Singh
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Updated:मई 14, 2015 14:17 pm IST
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Published On मई 14, 2015 14:09 pm IST
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Last Updated On मई 14, 2015 14:17 pm IST
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