तीन साल के बाद कंपनी ने पहली बार मुनाफा कमाया था. चौथे साल में उसे अपना फोकस बदलना था. तभी चीन सार्स महामारी के चपेट में आ गया जिसकी वजह से कई बंदिशें आ गई थीं.बात है 2003 की और कंपनी है अलीबाबा जो अब 500 अरब डॉलर की ग्लोबल कंपनी बन चुकी है. उसी साल मई के महीने में कंपनी को कंज्यूमर के लिए ऑनलाइन मार्केट प्लेस शुरू करना था. मुसीबत थी कि चीन के कई इलाकों में वायरस फैल चुका था और लोगों को घर से नहीं निकलने की सलाह दी गई थी. सोशल डिस्टेंशिंग, क्वारंटीन, वर्क फ्रॉम होम जैसे शब्द तब भी काफी प्रचलित हुए थे.
विडंबना देखिए कि अलीबाबा का एक कर्मचारी भी वायरस से संक्रमित हुआ और कंपनी के सारे 400 कर्मचारियों को भी घर से ही काम करने को कहा गया. लेकिन कभी हार ना मानने की जिद में कुछ कर्मचारी कंपनी के संस्थापक जैक मा के अपार्टमेंट से रहकर ही कंज्यूमर के लिए ऑनलाइन मार्केट प्लेस वाले प्रोडक्ट को अंतिम रूपरेखा देने पर काम करते रहे. 10 मई को नया प्रोडक्ट लॉंच हुआ. और उसके बाद तो जैक मा की कंपनी ने इतिहास ही रचा है.माना जाता है कि अलीबाबा और टेनसेंट जैसी ग्लोबल कंपनियों को 2003 की महामारी के बाद चीन में कंज्यूमर के रवैये में हुए बदलाव से बड़ा फायदा मिला.
क्या कोरोना महामारी के बाद अपने देश के अंदर हुए छोटे-बड़े जुगाड़ और कुछ भरोसे जगाने वाले इनोवेशन गेम चेंजर साबित होंगे?सबसे पहले जान लेते हैं कि संस्थानों और कंपनियों ने कौन-कौन से नए प्रोडक्ट्स लाए हैं और कैसी इनोवेशन की हैं. कोरोना (Coronavirus Pandemic) की एंट्री अपने देश में केरल में हुई थी और वहीं की एक स्टार्ट अप असिमोव रोबोटिक्स ने एक रोबो बनाया जो सार्जनिक जगहों पर सैनिटाइजर बांटता है और अस्पतालों में मरीजों को खाना-दवाई पहुंचाता है. इस रोबो के जरिए मेडिकल स्टाफ मरीजों से वीडियो कॉफ्रेंसिंग के जरिए बात भी कर सकते हैं.
मतलब यह है कि ज्यादा संक्रमण के खतरे वाले इलाकों में रोबो सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने में मदद करता है. मार्च के महीने में ही इसका प्रोटोटाइप बना और इसका जमकर प्रचार भी हुआ.सार्वजनिक स्थानों पर सोशल डिस्टेंशिंग जैसे निर्देशों का पालन हो रहा है कि नहीं, इसी को ध्यान रखते हुए गुरुग्राम की कंपनी डीपसाइट एआई लैब्स ने एक सॉफ्टवेयर बनाया है. कंपनी के को-फाउंडर निशांत वीर ने बताया कि सॉफ्टवेयर सीसीटीवी कैमरा में दिमाग डालने का काम करता है ताकि जब भी सार्वजनिक स्थानों पर लोग या तो बिना मास्क पहने घूम रहे हों या फिर सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन कर रहे हों, टीम को अलर्ट चला जाता है“
निशांत ने कहा, ''हर उल्लंघन की सही समय पर जानकारी हो तो आप उसे कम कर सकते हैं. हमारे प्रोडक्ट का यही काम है. इसे खूब सराहा गया है. एक बड़ी सोलर कंपनी और कुछ वेयरहाउसेस में इसका इस्तेमाल भी हो रहा है. उम्मीद है कि बाकी संस्थानों में भी इसे अपनाया जाएगा,” लेकिन महामारी के दौर में जिस बड़े बदलाव पर हमें गर्व होना चाहिए वो है वेंटिलेटर के क्षेत्र में हमारी बढ़ती आत्मनिर्भरता. याद कीजिए मार्च का महीना. बहस के दौरान बार-बार एक बात आ रही थी कि देश में पब्लिक हेल्थकेयर का बुरा हाल है और देश में वेंटिलेटर की भारी कमी है.इसी कमी को पूरा करने के लिए कई स्तरों पर काम हुआ- बड़ी कंपनियों से लेकर आईआईटी जैसे संस्थानों ने इसकी जिम्मेदारी ली.
आईआईटी कानपुर का दावा है कि उसने सही कीमत वाला शानदार वेंटिलेटर बना लिया है. इंस्टीट्यूट ने उत्पादन के लिए रक्षा मामलों की सरकारी कंपनी बीडीएल के साथ करार भी किया है. वेंटिलेटर के अलावा आईआईटी कानपुर में पीपीई किट और डिसइनफेक्शन सिस्टम पर भी काम हुआ है. और वहां एक मास्क का भी डिजाइन हुआ है जो हाल में काफी चर्चा में रहा है.अच्छी बात है कि वेंटिलेटर के मामले में हालात ऐसे हो गए हैं कि अपनी जरूरत तो हम पूरी कर ही लेंगे, साथ ही इस जरूरी उपकरण का एक्सपोर्ट करने की क्षमता भी हमने हासिल कर ली है. इस मामले में हमने वाकई चुनौती को मौका बना दिया. कोरोना संकट के बाद पूरे देश में लॉकडाउन के दौरान हलांकि काफी पुराने कारोबार बंद ही रहे. लेकिन कई कारोबारियों ने एडजस्ट करने की कोशिश में नए सेगमेंट में एंट्री भी मारी. गाजियाबाद स्थित केशी फैशन के विशाल शारदा कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान कई गार्मेंट बनाने वाली फैक्ट्री पीपीई किट और मास्क बनाने में जुट गए, ट्रैवल कंपनियां सैनिटाइजर बनाने के घंघे में उतर गई. और सैनिटाइजेशन-घर, दफ्तर, गाड़ी- का कारोबार तो अब काफी तेजी से बढ़ भी रहा है.
डाइवर्सिफिकेशन की एक ऐसी ही कहानी रायपुर से है. आर्मी से रिटायर होने के बाद प्रवीण सिंह ने 2012 में कैश लॉजिस्टिक्स का रायपुर में अपना कारोबार शुरू किया. रिटायर्ड मेजर प्रवीण ने फोन पर बताया “कोरोना के दौरान हमें एहसास हुआ कि हमारे जैसी कंपनियों को नए मौके तलाशने चाहिए. हमने एक एप बनाया और उसके जरिए लोग हमसे सैनिटाइजेशन सर्विस के लिए जुड़ सकते हैं. फिलहाल हम कुछ शहरों में हैं और जहां हम फिलहाल नहीं हैं वहां एसोसिएट्स बना रहे हैं,” एप का नाम कैंडिड क्लीन है जो उन्होंने खुद ही डिजाइन किया है. इस तरह की नई राह तलाशने की कोई उम्र नहीं होती और नहीं बहुत बड़े शहर या संसाधन की ये बात बनारस की चार जायसवाल बहनों ने साबित की. हाई स्कूल से लेकर बीए तक की पढ़ाई कर रही इन बहनो ने लॉकडाउन में घर में रखे सामने से परिवार और दोस्तों के जन्म दिन मैरिज इनवर्सरी जैसे मौकों के लिए गिफ्ट बनाकर देने लगीं. उनका ये गिफ्ट लोगों को खूब भाया तो उन्होंने इसे अपने फेसबुक और इंस्ट्राग्राम अकाउंट पर डाला. जहां से उनके पास इसकी मांग आने लगी तो इन्हे इन चीजों का बिजनेस करने का ख्याल आया.
फिर क्या था चारों बहनें जुट गईं तरह तरह के हैंडमेड गिफ्ट बनाने में, उनके तैयार माल का ऑर्डर भी आने लगा.खेल-खेल में शुरू हुआ ये बिजनेस रक्षाबंधन पर बड़ा हो गया और इन्हे पढ़ाई के साथ एक नया रास्ता भी मिल गया. ये कहानियां बताती हैं कि महामारी के समय ऐसे प्रयोगों से भरोसा जगता है कि संकट के समय में हमारा कभी न हार मानने वाला जज्बा हमें इस वैश्विक समस्या पर जीत दिलाएगा. शायद यही वजह है कि आर्थिक मोर्चे में काफी बुरी खबरों के बावजूद सबको भरोसा है कि रिकवरी जल्द ही और तेजी से होने वाली है. ऐसे भरोसे जगाने वाले फाइटर्स को सलाम. किसे पता कि इन प्रयोगों के दम पर हम भी किसी ग्लोबल कंपनी की नींव रख रहे हों..
अजय सिंह NDTV इंडिया के वाराणसी स्थित सीनियर कॉरेस्पॉन्डेन्ट हैं..
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