अजय सिंह का ब्लॉग : बनारस की फ़िज़ां हुई ज़हरीली, सांस लेना तक मुमकिन नहीं

अजय सिंह का ब्लॉग : बनारस की फ़िज़ां हुई ज़हरीली, सांस लेना तक मुमकिन नहीं

अगर आप सांस के रोगी हैं, दमा या अस्थमा से पीड़ित हैं और इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस आना चाहते हैं, तो संभलकर आएं, क्योंकि यहां की हवा में उड़ रहे धूल के कण, और गाड़ियों से निकलता कार्बन आपकी बीमारी को बढ़ा सकते हैं... वैसे, जो लोग इस तरह की बीमारियों से पीड़ित नहीं हैं, सतर्क तो वे भी रहें, क्योंकि बनारस की फ़िज़ां खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुकी है, जो आपको बीमार कर सकती है... और हां, ये सभी चेतावनियां हम नहीं दे रहे हैं, प्रधानमंत्री के ही आदेश पर लगा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक दे रहा है...

आज आलम यह है कि आप बनारस के किसी भी इलाके जाएं, धूल के गुबार के बीच सड़क बहुत मुश्किल से दिखाई पड़ती है... धूल से पटी इन सड़कों की वजह से ही 'धर्म की नगरी' का स्वास्थ्य खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है... आज हर सांस के साथ धूल के हानिकारक कण बनारस में मौजूद लोगों के फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं... प्रदूषण विभाग के अधिकारी टीएन सिंह बताते हैं, "वैस्कुलर पॉल्यूशन है... उन गाड़ियों से, जो शहर में आ रही हैं... बनारस शहर में दशकों से जो खुदाई चल रही है, उसके पार्टिकल भी उड़ रहे हैं... जेनसेट से भी समस्या है... उसका भी बहुत असर पड़ रहा है, और प्रमुख रूप से, जो वैस्कुलर पॉल्यूशन है, वह 80 से 85 फीसदी काउंट कर रहा है..."

हैरान करने वाले ये आंकड़े तब सामने आए, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक लागू किया, जो साफ बता रहा है कि बनारस की खुली फ़िज़ां अब सांस लेने लायक नहीं है... अर्दली बाजार स्थित सूचकांक के सेंसर बताते हैं कि पीएम-10 की मात्रा का औसत 344 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर है, और यह न्यूनतम 110 और अधिकतम 427 दर्ज़ किया गया, जबकि इसका स्तर 60 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर से कम होना चाहिए। इसी तरह 10 माइक्रॉन से छोटे आकार के धूल के कण मानक से सात गुना ज़्यादा पाए गए। इसी क्रम में पीएम 2.5 की मात्रा का औसत मिला 220... चौबीस घंटे के दौरान इसकी न्यूनतम मात्रा 50 और अधिकतम मात्रा 500 रिकॉर्ड की गई, जबकि इसकी मात्रा 40 से कम होनी चाहिए, यानी यह भी मानक से 12 गुना अधिक है...

इस खतरनाक स्थिति को देखकर बीएचयू के प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी कहते हैं, "पार्टिकुलेट मैटर का साइज़, जिसे 100 माइक्रॉन प्रति घन सेंटीमीटर होना चाहिए, वह 300 से 400 मिल रहा है... पीएम 2.5, जिसे 60 होना चाहिए, वह 150 से 200 मिल रहा है, तो यह बहुत खतरनाक द्योतक है... यह इंडीकेट करता है कि बनारस की हवा सांस लेने लायक नहीं...

धूल के अलावा बनारस जैसे संकरे शहर में जनसंख्या का दबाव भी बहुत है, और गाड़ियों का आना-जाना भी... एक मोटे अनुमान के मुताबिक तकरीबन 11 लाख स्कूटर और मोटर साइकिल हैं, जिनके अलावा एक लाख से ज़्यादा कार और जीप हैं... शहर में 5,300 ट्रैक्टर हैं तो ट्रेलर 10,000... इसी तरह ट्रक और बसें भी हैं, जिनके धुएं से बीमारियां बढ़ रही हैं... डॉक्टर बताते हैं कि इन दिनों सांस की बीमारी और दमे के मरीज़ बहुत बढ़ गए हैं...

बनारस की फ़िज़ां में धूल ही नहीं, जगह-जगह जलते कूड़े का धुआं भी लोगों की ज़िन्दगियों में ज़हर घोल रहा है... शहर में सुबह के वक्त ताज़ा हवा की जगह कूड़े के ढेरों से उठता हुआ धुआं सूंघने को मिलता है... इसकी वजह भी है... 20 लाख की आबादी वाले शहर में हर रोज़ तकरीबन 600 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है, जिसके निस्तारण की कोई जगह नहीं, सो, सफाईकर्मी भी ज़्यादातर मौकों पर कूड़ा इसी तरह जला देते हैं, जिससे अर्दली बाजार ही नहीं, पूरे शहर की फ़िज़ां में फैले धूल के कण ज़िन्दगी को बेजार किए हुए हैं...

शहर में हर कोई मास्क लगाकर चलने को मजबूर हैं, लेकिन इसके बावजूद धूल उन्हें क्या बीमारी दे जाएगी, वे नहीं जानते... अब यहां की सड़कें तो शिकायत नहीं कर सकतीं, लेकिन जो बीमारी के खतरे से दो-चार हो रहे हैं, उन लोगों की हालत पूछने वाला भी बनारस शहर में कोई नहीं, फिर भले ही यहां का सांसद देश का प्रधानमंत्री ही क्यों न हो...

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।