NDTV Khabar

  • कई कार्यकर्ता आपको ये शिकायत करते हुए मिल जाएंगे कि अभिनेता अपने स्वभाव को राजनीति के हिसाब से बदलने के लिए तैयार ही नहीं हैं. दूसरा पक्ष अभिनेताओं का भी है. वो राजनीति की जो चमक-दमक ऊपर से देखते हैं उसकी असलियत चुनाव जीतने के बाद उन्हें पता लगती है..
  • महायुति के अंदर एक तबका ऐसा है, जो सवाल कर रहा है कि पार्टी के लिए अगर सब कुछ हमने दिया है तो फिर 'बाहरी' उम्मीदवारों को मौका क्यों मिल रहा है.
  • भारत में चुनावी चंदे को सुधारने की कोशिश हो रही हैं. बढ़ते चुनावी खर्च की चिंता सिर्फ पार्टियों को ही नहीं, कारपोरेट घरानों को भी है. बॉन्ड स्कीम में कई पेंच हैं, उन पेंच को आने वाले वक्त में सुधारा जा सकता है. बॉन्ड ने कैश की जरूरत को कम किया था. लेकिन उसने जानने के अधिकार को कमजोर कर दिया था.
  • बहस छिड़ चुकी है कि वक्त आ गया है, जब चुनाव का रूप बदला जाए. एक जीवित लोकतंत्र में चुनावों का रूप भारत ने बदलकर दिखाया है. EVM का इस्तेमाल हो या मतदाताओं तक चुनाव को ले जाना हो, बदलाव हर वक्त हो रहे हैं.
  • एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर चुनाव और वोटर के दिमाग में क्या चल रहा है, इसका अध्ययन भले ही कम हो रहा हो लेकिन नेता इस बात को बखूबी समझ रहे होते हैं. उन्हें पता होता है कि कैसे और कब मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना है.
  • मुंबई के पानी की इस कहानी से आपको यह अंदाज़ा हो जाएगा कि शहर का पानी प्रबंधन ठीक-ठाक सोचा गया था, लेकिन अब मामला गंभीर हो चला है. शहर को पानी देने वाली झीलें अब आधे से नीचे के निशान पर हैं. BMC अंदाज़ा लगा रही है कि उसे कब से कितनी पानी कटौती करनी है.
  • राज्यपाल रमेश बैंस ने चिंता जताई थी कि छोटे स्कूली बच्चों की नींद पूरी नहीं हो रही है. लिहाजा उन्हें लेट स्कूल जाना चाहिए. राज्यपाल की बात में संवेदना है, लेकिन ऐसा लगता है इस भाषण ने नई बहस छेड़ दी है.
  • जानकारियों की बहुतायत क्या आपको किसी जंजाल में फंसा रही है? क्या आप गूगल सर्च करके अपनी समस्याओं को बढ़ा-चढ़ा कर देखने लगे हैं? या फिर आप वही उत्तर चुन रहे हैं जो आपको सुविधाजनक लग रहे हैं.
  • अगस्त 2022 में जब शिंदे सेना ने विद्रोह किया था तब अशोक चव्हाण और दस विधायक विश्वासमत में आये ही नहीं. सबसे मजेदार बहाना अशोक चव्हाण का ही था. तब कह रहे थे कि ट्रैफिक में फंस गये थे. कांग्रेस का टूटना तय था. लेकिन कब और कैसे टूटेगी इसकी स्क्रिप्ट लिखने वालों ने तारीख का ऐलान नहीं किया था.
  • एक स्टडी बता रही है कि रील के सबसे बड़े उपभोक्ता तेजी से ग्रामीण इलाकों में बढ़ रहे हैं. दुनिया में अब सबसे ज्यादा रील के उपभोक्ता भारत में ही हैं.
  • एक तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी की न्याय यात्रा है तो दूसरी तरफ 'इंडिया' एलायंस (इंडी एलायंस) को लेकर हर दिन आ रही खबरें हैं. ममता, नीतीश और केजरीवाल के बिना ही यह इंडी गठबंधन आगे बढ़ रहा है. इस सबके बीच बीजेपी अपनी शैली में तेजी से चुनावी समीकरण बिठा रही है. जब इंडिया एलायंस को अपने समन्वयक का नाम तय करना था तब बीजेपी उन सीटों पर फोकस कर रही है जहां उसे कांग्रेस और उसके सहयोगियों को मात देनी है. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की यह रणनीति बड़ी कारगर रही थी.
  • ममता बनर्जी के इंडी एलायंस से बाहर निकलने के दो और बड़े अर्थ हैं. पहला तो ये कि ममता खुद को दिल्ली की रेस से बाहर कर रहीं हैं और दूसरा ये कि उनको लोकसभा चुनाव में किसी बड़े कारनामे की उम्मीद अब नहीं बची है.
  • मोदी देश के लिये नये एजेंडे को आगे ला चुके हैं. देश तेज रफ्तार से आगे बढ़े ये भाषण का साफ संदेश है. मोदी इस मकसद को पूरा करने के लिये खुद की गारंटी देने की बात कर रहे हैं.
  • फडणवीस मुंबई बदलने के सपने को लेकर गंभीर थे. ये उनके कामकाज में भी दिखता रहा. एक के बाद एक कई प्रोजेक्ट लॉन्च किये गये.
  • 2024 की राहुल गांधी की यात्रा लोकसभा चुनाव के मुहाने पर हो रही है. उत्तर पूर्व से शुरू होकर मुंबई में खत्म होगी. कांग्रेस के लिए ऐसी देशव्यापी यात्राएं इसलिए नई हैं क्योंकि उसे आजाद भारत में जमी जमाई सरकार मिलीं थी.
  • लोकसभा चुनाव को अब बस 90 दिन बचे हैं. 6 जनवरी को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बयान दिया है कि आने वाले 10-15 दिन में INDIA गठबंधन की जो बैठक होगी, वह गठबंधन के बड़े पदों पर फैसला लेगी, यानी जब चुनावों को महज़ 80 दिन बचेंगे, तब विपक्षी गठबंधन तय कर रहा होगा कि उसके पोस्टर ब्वॉय कौन होंगे. INDIA गठबंधन का कन्वेनर कौन होगा, इस पर ही इतना सस्पेंस है कि लग रहा है कि इसे लेकर कोई दिलचस्पी ही नहीं बची है. तो क्या यह लेट-लतीफ़ी सोची-समझी है...?
  • देश के केंद्रीय गृहमंत्री ने एक दफा एक इंटरव्यू में कहा था कि विपक्ष ये मान रहा है कि सिर्फ गणित से सब हल हो जायेगा, लेकिन ऐसा होता नहीं है. चुनाव गणित और रसायन दोनों है.
  • स्थान : छत्तीसगढ़, महासमुंद जिले का गांव. विधानसभा के 2023 के चुनाव हो चुके हैं. नतीजे भी आ चुके हैं. महासमुंद के एक गांव में मेरी मुलाकात गांव की महिला रंजनी से हुई. जिनके मार्फत मिला था उनके संग रंजनी खुलकर बीते चुनावों पर बात कर रहीं थीं. बातों ही बातों में उन्होंने वो कह दिया जिसकी बात तो होती लेकिन उसका मर्म कई बार चुनावी पंडित भी नहीं पकड़ पाते. मेरा सवाल था आपने मोदी को वोट क्यों दिया? वहां से जवाब आया " उसके बनाए घर में रहती हूं, उसको वोट क्यों न दें." 
  • मुंबई के कमला मिल से जो लाशें उठी हैं, उन्हें देख आप सिहर जाएंगे.  हो सकता है मुंबई के बीएमसी कमिश्नर भी सिहर पड़े हों या ये भी हो सकता है कि उनके लिये सिर्फ नंबर मायने रखते हों या फिर ये कि कौन मरा है. अदना हो या आला, नौजवान की अर्थी उठाना शायद दुनिया में दर्द का पहाड़ उठाने जैसा है. मौत कमला मिल में हुई हो या कुर्ला में, दर्द उतना ही था कमिश्नर साब. हमें दोनों हादसों के दर्द का अहसास है, लेकिन शायद आप मीडिया में बड़ी होती हेडलाइन के हिसाब से ड्यूटी बजाते हैं. वरना क्या वजह हुई कि इसी महीने किसी एक फरसाण की दुकान खाक होने पर आपने मुस्तैदी नहीं दिखाई. वहां भी लोग झुलस कर मरे थे. 
  • पिछले 24 घंटों में गुजरात में बहुत कुछ बदला है. जो जहां था अब वह वहां नहीं है. यह नए गणित और समीकरणों की शुरुआत भी है. बीजेपी अब तीन बड़े शहरों अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा की कर्जदार है, जिसने उसे मुसीबत से उबार लिया. सूरत ने तो मानो 180 डिग्री की पलटी खाई. जहां कैमरे व्यापारियों को नारे लगाते और लाठी खाते मजदूरों को दिखाते थे वहां जश्न बीजेपी का है.
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