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अभिषेक शर्मा का ब्लॉग : मिडिल क्लास कैसे चुनावों का एजेंडा सेट करता रहा है?

Abhishek Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 03, 2024 18:39 pm IST
    • Published On जून 03, 2024 18:39 pm IST
    • Last Updated On जून 03, 2024 18:39 pm IST

मध्यम वर्ग पर अक्सर ये इल्ज़ाम लगता रहता है कि वो लोकतंत्र की सबसे ज्यादा बात करता है, लेकिन वोट के वक्त छुट्टी मनाने चला जाता है. मध्यम वर्ग का एक हिस्सा ऐसा करता है इसमें कोई शक नहीं है, तो बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों जरूरत है मध्यम वर्ग की हर राजनीतिक दल को? और मध्यम वर्ग का सबसे बड़ा रोल देश के लोकतंत्र और चुनाव में क्या है? दूसरे सवाल का जवाब पहले, क्योंकि लोकसभा चुनाव जारी हैं. मध्यम वर्ग का सबसे बड़ा योगदान चुनाव में उस बहस को हवा देने का है, जो चुनाव का एजेंडा सेट करती है.

मध्यम वर्ग राजनीतिक दलों के एजेंडे जैसे कि आरक्षण या किसी टैक्स पर अपनी राय जितनी मज़बूती से रखता है, उससे बहस शुरू होती है. ये बहस फिर निम्न मध्यम वर्ग और गरीब तबके तक पहुंचती है. वो मध्यम वर्ग की बात को मानें या न मानें, लेकिन बहस का स्पेस बन चुका होता है. मुद्दे के आधार पर अगर वोटिंग होती है तो राजनीतिक दलों के टारगेट पर सबसे पहले ये मध्यम वर्ग ही होता है. अनुच्छेद 370 को हटाने पर वोट मिलें या न मिलें, इसे लेकर दल सबसे पहले टीवी पर मध्यम वर्ग के लिए ही आते हैं.

चुनाव में सीधी भागीदारी ही लोकतंत्र को आगे नहीं बढ़ाती और भी बहुत कुछ एक समाज और देश में होता है, जिसके चलते लोकतंत्र मजबूत बनता है. जिस देश में जितना बड़ा मिडिल क्लास होगा, उतना उसका लोकतंत्र मजबूत होता जाएगा ये यूरोप ने साबित भी किया है. मिडिल क्लास के बड़े होने का मतलब ये भी है कि पूंजी सिर्फ चंद हाथों में इकट्ठा नहीं हो रही है. नये लोकतांत्रिक युग के बारे में यूरोप ने ये भी सिखाया है कि कैसे आर्थिक विकास और मिडिल क्लास का सीधा-सीधा रिश्ता है. बढ़ते मध्यम वर्ग का मतलब ये भी है कि पूंजी या संसाधनों को लेकर जो संघर्ष है, वो कम होगा और इसका सीधा असर बेहतर लोकतंत्र पर होगा. लोकतंत्र की बेहतरी इसी में है कि वर्ग संघर्ष कम से कम हो. संसाधनों की लड़ाई और वर्ग संघर्ष चुनावों की कमर तोड़ते हैं, ये उन देशों में देखने को मिल रहा है, जहां मिडिल क्लास बनाने की प्रक्रिया बेहद धीमी है.

मिडिल क्लास इसलिए किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिये जरूरी है, क्योंकि वो पड़ोसी देशों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. एक देश में अगर बेहतर लोकतांत्रिक मूल्यों के लिये लड़ाई शुरू होती है तो धीरे-धीरे वो दूसरे देश के मिडिल क्लास को प्रेरित करती है. अरब स्प्रिंग हो या पाकिस्तान में मध्यम वर्ग के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन, इनके मूल में पड़ोस के मुल्कों में हो रहे लोकतांत्रिक परिवर्तन हैं. पाकिस्तान के चुनाव में मध्यम वर्ग भारत के चुनाव और लोकतंत्र की दुहाई इसलिये देता है, क्योंकि बदलाव के सबसे बड़े एजेंट मिडिल क्लास ही हैं.

मिडिल क्लास इसलिए भी लोकतंत्र को बदलने वाला एजेंट है, क्योंकि वो लगातार बदल रहा होता है. दूसरी दुनिया से उसके संपर्क कई स्तर पर होते हैं. वो बेहतर देशों के बदलावों को अपने देश में लाने के लिये राजनीतिक दलों पर भारी दबाव बनाते हैं. गुजरात इस बात का उदाहरण है कि कैसे वहां के अप्रवासी नागरिकों ने लगातार अच्छी सड़कों और अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए दबाव बनाया, ये दबाव काम भी आया. मिडिल क्लास अपनी बढ़ती इनकम के साथ-साथ ये भी चाहता है कि उसका आसपास बेहतर हो. वो बेहतर कानून व्यवस्था के लिये दबाव बनाता है. ये सब एजेंडा एक देश में मिडिल क्लास ही तय कर रहा होता है.

बिहार में बढ़ते मिडिल क्लास और दुनिया के साथ उसके रिश्ते ने कानून व्यवस्था को चुनावी मुद्दा बनाया. आने वाले दशकों में राजनीतिक दलों को इन मुद्दों पर गंभीर होकर काम करना पड़ा है. यूपी में अपराध के खात्मे का दबाव या चुनावी असर मिडिल क्लास ने ही बनाया. सारे सर्वे इस ओर इशारा करते रहे हैं कि कैसे मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग यूपी में अपराध मुक्ति को सबसे बड़ा काम मानता है. मिडिल क्लास संचार या कम्युनिकेशन के जितने भी तंत्र हैं उनका सबसे बड़ा उपभोक्ता है और ये तंत्र उसके राजनीतिक एजेंडा को सेट करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं.

ज्यों-ज्यों मध्यम वर्ग बढ़ेगा विकास की कहानी भी आगे बढ़ेगी. किसी भी लोकतंत्र के लिये ये बड़ा शुभ संकेत है. राजनीतिक दल अगर तेजी से खुद को नहीं बदलते हैं तो मध्यम वर्ग उसे या तो बदलने के लिये मजबूर कर देता है या फिर ऐसा माहौल बनाता है कि उसे उखाड़ कर फेंक दिया जाता है. मध्य प्रदेश एक वक्त में बीमारू राज्यों में था. एक दौर था जब यहां मूलभूत सुविधाओं जैसे कि बिजली, सड़क और पानी पर चुनाव होते थे. मध्यम वर्ग का आकार बढ़ा, मध्य प्रदेश बीमारू राज्य से बाहर आया. इसके साथ ही चुनावों का एजेंडा बदलने लगा. अब राजनीतिक दल पहले से बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर का वादा करते हैं. मिडिल क्लास उन लोगों को मौका देने से घबराता है जो मूलभूत सुविधाएं नहीं देते. मिडिल क्लास अब चुनावों में महिलाओं के लिये बेहतर जगह, रोजगार के अवसर और सामाजिक सुरक्षा के वादे मांगता है. ये सब इसलिये भी हो रहा है क्योंकि उसकी तरक्की के संग लोकतंत्र की बेहतरी का सीधा रिश्ता है.
 

(अभिषेक शर्मा एनडीटीवी इंडिया के मुंबई के संपादक रहे हैं. वे आपातकाल के बाद की राजनीतिक लामबंदी पर लगातार लेखन करते रहे हैं. )

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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