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मुंबई क्या सीखे सिंगापुर से...?

Abhishek Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    February 28, 2024 15:51 IST
    • Published On February 28, 2024 15:51 IST
    • Last Updated On February 28, 2024 15:51 IST

मुंबई पानी-पानी होती है, तो ख़बर बनती है. टीवी वालों के चेहरे ख़बर पर दमकने लगते हैं. घुटनों भर पानी में डूबे रिपोर्टर जलमग्न मुंबई की तस्वीरें दिखाते हैं. लेकिन यह बारिश का ही रिश्ता है. ख़बरों से परे मुंबई में दूसरे मौसम भी आते हैं, तब पानी का संकट भी होता है. मुंबई और सिंगापुर इस मामले में एक कहे जा सकते हैं कि शहर के पास अपने हिस्से का कोई पानी नहीं है. वह दूसरी जगह से आता है. जब से शहर बसा है, शायद तभी से ऐसा हो रहा है. सिंगापुर में तो पानी मलेशिया की नदी पर निर्भर है. और वह एक संधि के तहत 2061 तक मलेशिया से पानी लेते रहेंगे. मलेशिया और सिंगापुर में पानी को लेकर विवाद और तनाव पूरी दुनिया के लिये ख़बर भी बनते हैं. गनीमत है कि मुंबई में यह मसला नहीं है. लेकिन शहर की सप्लाई लाइन भी कोई 100 किलोमीटर दूर है. यह शहर इस मामले में गज़ब है कि यहां का पानी सच में जंगल से आता है. शहर के पानी से छेडछाड़ बेहद कम है.

पानी सप्लाई की यह कहानी अंग्रेज़ों के वक्त ही शुरू हो गई थी. जब उन्हें समझ आ गया था कि शहर के कुएं तो खारा-सा पानी देते हैं. मीठे पानी की तलाश तब उन्हें ठाणे के आगे के जंगलों में पहाड़ियों पर ले गई. वहां पहले तो झील बनी, फिर सप्लाई लाइन डाली गई. देश आज़ाद हुआ, तो आबादी के हिसाब से नई-नई झीलें और बांध शहर से बहुत दूर ऊंचाई पर बनते रहे. मुंबई की सप्लाई लाइन बिना किसी पम्पिंग के काम करती रही. पहाड़ से पानी गुरुत्वाकर्षण के हिसाब से शहर में आ जाता. आबादी बढ़ने के साथ साथ कुल जमा 7 झीलों से पानी शहर में आने लगा. एक बड़ी चुनौती दक्षिणी मुंबई को उस पाइपलाइन से भी जोड़ने की थी, जो अंग्रेज़ों के वक्त डाली गई थी. पाइप ज़्यादातर लोहे के थे. जब-तब फटने लगे, और चुनौती उसे सुधारने की आने लगी. शहर ने अब उस समस्या से भी निजात पा ली है. शहर के अंदर ही अंदर सैकड़ों किलोमीटर की लाइन बिछा दी गई है, जो सीधे बांधों से जुड़ी है. मुंबई में पानी कितना मिलेगा, इसका सीधा रिश्ता मॉनसून से है.

मुंबई के पानी की इस कहानी से आपको यह अंदाज़ा हो जाएगा कि शहर का पानी प्रबंधन ठीक-ठाक सोचा गया था, लेकिन अब मामला गंभीर हो चला है. शहर को पानी देने वाली झीलें अब आधे से नीचे के निशान पर हैं. BMC अंदाज़ा लगा रही है कि उसे कब से कितनी पानी कटौती करनी है.

मार्च के पहले हफ्ते से यह कटौती लग जाएगी. ऐसा नहीं है कि शहर ने पहले कटौती नहीं देखी हैं. कहानी में पेचीदगी इसलिए भी ज़्यादा है, क्योंकि सारे मौसम विज्ञानी कह रहे हैं कि गर्मी बढ़ती रहेगी, और पानी की कमी बढ़ेगी. 2022 से BMC ने एक बड़ी योजना बनाई है, जिसमें उसने सब को पानी देने का वादा किया था. इस वादे के हिसाब से उसने अब तक अपनी नीतियां नहीं बनाई हैं.

सिंगापुर के सामने भी एक वक्त ऐसा ही संकट था. उससे निटपने के लिए उसने बड़े पैमाने पर रीसाइकिल वॉटर प्लांट बनाए. यह यात्रा सिंगापुर के लोगों के लिए भी बड़ी रही है. पानी रीसाइकिल की टेक्नोलॉजी लाने के बाद सिंगापुर के सामने भी संकट था कि कैसे लोगों को इसके लिए तैयार किया जाए. इस समस्या से निपटने के लिए सिंगापुर सरकार एनई वॉटर लेकर आई. यह ब्रांड रीसाइकिल पानी का है. लोगों को समझाया गया कि संकट बड़ा है और यही एक उपाय है.

अब सिंगापुर में रीसाइकिल वॉटर पीने योग्य है. कमी और कटौती के हालात में इस पानी को सामान्य पानी के साथ मिलाकर लोगों के घरों तक पहुंचाया जाता है. ज़्यादातर कूलिंग प्लांट इसी पानी के सहारे हैं. उद्योग धंधों को तो सामान्य पानी दिया ही नहीं जाता, उन्हें रीसाइकिल पानी का ही इस्तेमाल करना होता है.

मुंबई में वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट के पानी का इस्तेमाल बहुत कम हो रहा है. एक तो कोई एजेंसी इसकी क्वालिटी को लेकर गारंटी नहीं लेती और दूसरा लोगों के मन में इसे लेकर दुर्गंध और गंदे पानी का भाव है. शहर में अब भी ऐसा कोई प्रयोग नहीं हुआ है, जो पानी को रीसाइकिल करने का दावा करता हो. BMC ने जो भी प्लांट लगाए हैं, वे सिर्फ़ नाले और गंदे पानी के ट्रीटमेंट के हैं. गाहे बगाहे कुछ सोसायटी ट्रीटमेंट प्लांट से आए पानी का इस्तेमाल बगीचे और साफ-सफाई में कर लेती हैं, लेकिन ये सोसायटी भी आप अंगुलियों पर गिन सकते हैं. BMC ने बारिश के पानी को इकट्ठा करने के फरमान दिए हैं, लेकिन जिस महकमे को इसे लेकर सख्ती दिखानी है, उसके पास पैसा ही नहीं है.

सिंगापुर हर उस तरीके को आज़मा रहा है, जिससे पानी का संकट कम हो. वे समंदर के खारे पानी को लेकर लगातार प्रयोग कर रहे हैं. खारेपन को कम करने वाली टेक्नोलॉजी महंगी है. मुंबई के जानकार इसे आखिरी विकल्प मानते हैं. लेकिन इस टेक्नोलॉजी की लागत को कम करने पर अगर काम किया गया, तो समंदर से सटे इलाकों में पीने के पानी की समस्या कम हो जाएगी. मुंबई अगर दूसरे विकल्पों पर ज़्यादा काम करे, तो उसकी शहर से दूर झीलों पर निर्भरता कम हो जाएगी. उन झीलों का पानी बेहद कमी वाले इलाकों को भी दिया जा सकेगा. देश में मुंबई ने कई मामलों में अपनी पहचान बनाई है. महानगरपालिका चाहे, तो सिंगापुर के मॉडल से बहुत कुछ सीख सकती है. मुंबई वालों को बस नाक-भौं सिकोड़ने की बजाय देखना होगा कि सिंगापुर कर सकता है, तो हम क्यों नहीं.

अभिषेक शर्मा NDTV इंडिया के मुंबई के संपादक रहे हैं... वह आपातकाल के बाद की राजनीतिक लामबंदी पर लगातार लेखन करते रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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