विज्ञापन
Story ProgressBack

हार से या जीत से, BJP सीखती सब से : क्या INDIA एलायंस भी सीखेगा...?

Abhishek Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    February 02, 2024 17:40 IST
    • Published On February 02, 2024 17:40 IST
    • Last Updated On February 02, 2024 17:40 IST

एक तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी की न्याय यात्रा है तो दूसरी तरफ 'इंडिया' एलायंस (इंडी एलायंस) को लेकर हर दिन आ रही खबरें हैं. ममता, नीतीश और केजरीवाल के बिना ही यह इंडी गठबंधन आगे बढ़ रहा है. इस सबके बीच बीजेपी अपनी शैली में तेजी से चुनावी समीकरण बिठा रही है. जब इंडिया एलायंस को अपने समन्वयक का नाम तय करना था तब बीजेपी उन सीटों पर फोकस कर रही है जहां उसे कांग्रेस और उसके सहयोगियों को मात देनी है. मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की यह रणनीति बड़ी कारगर रही थी. वहां उसने करीब 70 सीटों का सबसे पहले ऐलान कर दिया था. ये वे सीटें थीं जहां बीजेपी या तो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही थी, या फिर कांग्रेस के खाते में ही अरसे से जा रही थीं. इन विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने अपना स्ट्राइक रेट बहुत शानदार किया. 

बीजेपी ने यह जोखिम भरा प्रयोग  किया था. इस प्रयोग के परिणामों से पार्टी गदगद है. उसे यह समझ आया है कि हारी हुई सीटों पर पहले ऐलान करने से उम्मीदवार को तो वक्त मिलता ही है, खुद के अंदर की टूट फूट भी खुलकर सामने आ जाती है. जो नेता यह सीट जीत रहे होते हैं वे एक नए दबाव में आ जाते हैं. इन सीटों पर बीजेपी के बड़े-बड़े नेता वक्त देते हैं और कलह रोकने के लिए राज्य के बाहर के आब्जर्वर बैठा दिए जाते हैं. हर सीट को अलग रणनीतिक युद्ध मानकर काम किया जाता है. बीजेपी अब यही प्रयोग लोकसभा की उन सीटों के लिए करने जा रही है जिन पर उसकी पकड़ कमज़ोर रही है.  

बीजेपी की कोशिश होगी कि अपनी ताकत को उन जगहों पर बढ़ाया जाए जहां से उसे असफलता हाथ लगी है. पार्टी के पूरे प्रचार और कैंपेन को देखेंगे तो आपको समझ आ जाएगा कि वह हारी हुई सीटों पर सिर्फ चुनाव के वक्त काम नहीं कर रही है. वह अरसे पहले से हर सीट पर हर दिन एक कदम आगे बढ़ा रही होती है. उसके कार्यक्रम तय हो चुके होते हैं और आकलन हर कदम पर हो रहा होता है. चुनाव कैसे जीता जा सकता है और कौन-कौन उसमें सार्थक भूमिका निभा सकते हैं,  यह भी पहले ही तय हो चुका होता है. 

ऐसा नहीं है कि बीजेपी के सारे प्रयोग सफल रहे हों, कुछ में असफलता हाथ लगी है. जैसे कि दक्षिण भारत में बीजेपी अब तक वह फॉर्मूला नहीं बना पाई है जिससे उसे जीत आसान दिखाई दे. पार्टी ने जातिगत समीकरणों को भी आजमाया और आयातित नेताओं को भी. कुछ राज्यों में बीजेपी को लगभग शून्य से शुरू करना पड़ रहा है. लेकिन उसने असलफलताओं से जल्द सीखा है. हाल ही के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है, लेकिन उसके बड़े नेताओं ने सीटवार अभी यह आकलन भी नहीं किया कि हारे क्यों?  इसके उलट राज्यों में जीतने के बाद भी बीजेपी ने विधानसभा के उन नेताओं की मीटिंग बुलाई जो मजबूत थे और हार गए. इस मीटिंग में तीन पक्षों की बात रखी गई. एक उनकी जो अपनी सीट हारे. उन्होंने अपने कारण बताए. दूसरा पार्टी का पक्ष था. पार्टी के हिसाब से क्या गलती हुई, यह बात बताई गई. दिलचस्प यह भी था कि तीसरा पक्ष भी रखा गया, जिसने दोनों तरफ की खामियों को उजागर किया. हार पर इस किस्म की चीर फाड़ शायद ही कोई पार्टी कर पाती है. बीजेपी ने यह करके दिखाया है. जीत के फॉर्मूले तो आपको ऊपर से कई दिख सकते हैं, लेकिन हार के कारणों पर बीजेपी के शीर्ष नेता बेहद गंभीर होते हैं. 

चुनावों में बीजेपी ही ऐसी पहली पार्टी थी जिसने जमकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना सिखाया. कांग्रेस ने उस रणनीति से सीखा है, लेकिन उसकी सीख सिर्फ एक दो प्रयोग तक सीमित रह गई. बीजेपी का ईको सिस्टम नए प्रयोगों को बढ़ावा देता है. खासकर कि जिन प्रयोगों से सीधे वोटर से जुड़ा जा सके. बीजेपी के संगठन ने हाल ही में हजारों उन वोटरों के लिए प्रोग्राम लॉन्च किए जो पहली बार वोट देने जा रहे हैं. इसमें यह तक शामिल है कि वोटर आईडी कैसे बनेगा और वोट कैसे दें. राम मंदिर को लेकर एक यूनिट ने गांव चलो कार्यक्रम चलाया है. इसमें वोटर को बताया जा रहा है कि मंदिर कैसा बना है, कैसे जा सकते हैं. पार्टी इस प्रोग्राम में अपने चुनाव प्रचार को आगे बढ़ा रही है. 

बीजेपी ने एक कार्यक्रम अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाने के लिए भी शुरू किया है. जिन जगहों पर उसे लगता है कि जीत पक्की है वहां पर नई चुनौती दी गई है. ऐसी सीटों को चिन्हित करके कहा गया है कि जीत जिन इलाकों से कम मिलती है उनके लिए रणनीति बनाई जाए. बीजेपी का चुनावी प्रबंधन यह बताने के लिए काफी है कि जीत या हार से पार्टी को लगातार सीखना चाहिए.

अभिषेक शर्मा NDTV इंडिया के मुंबई के संपादक रहे हैं... वह आपातकाल के बाद की राजनीतिक लामबंदी पर लगातार लेखन करते रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
सैयद हैदर रज़ा की पुण्यतिथि : मण्डला में कला और साहित्य का उत्सव
हार से या जीत से, BJP सीखती सब से : क्या INDIA एलायंस भी सीखेगा...?
महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल के बागी तेवरों के पीछे की असली वजह?
Next Article
महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल के बागी तेवरों के पीछे की असली वजह?
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;