दिल्ली से लेकर मुंबई तक आज आप किसी से भी कश्मीर के बारे में पूछें तो वह यही कहेगा कि वहां कुछ होने वाला है. कश्मीर में रहने वाले लोगों से बात करें तो वे भी यही कहेंगे कि कुछ बड़ा होने वाला है. सुरक्षा बलों से बात करें तो उनका कहना है कि हमें तो जैसा ऊपर से आदेश मिलेगा हम उस पर अमल करेंगे. रही सही कसर अमरनाथ यात्रा को 15 दिन पहले खत्म करने और पर्यटकों को कश्मीर छोड़ने की हिदायत देने से पूरी हो गई है. ऊपर से वाट्सऐप यूनिवर्सिटी तो अफवाहों का बाजार गर्म करने में कभी भी पीछे नही रहती. साफ कहें तो आज कश्मीर को लेकर हर जगह डर, खौफ और असमंजस का माहौल है.
इन दिनों बने माहौल को देखते हुए सवाल उठता है कि आखिर कश्मीर में ऐसा क्या होने जा रहा है? इतने सालों से कश्मीर कवर करने के दौरान मैंने स्वयं देखा है कि अमरनाथ यात्रा को लेकर कोई पहली बार आतंकियों से धमकी नहीं मिल रही है और ना ही पहली बार यहां आईईडी और स्नाइपर राइफल मिले हैं. तो फिर अचानक ऐसा क्या हुआ है कि दिल्ली से लेकर कश्मीर तक चर्चाओं का बाज़ार गर्म है? जहां तक मुझे याद आता है कि पहले तो कई बार ऐसा भी हुआ है कि आतंकी हमले में अमरनाथ यात्रियों की मौत तक हुई है, फिर भी यात्रा रोकी नहीं गई. इस दृढ़ता के जरिये आतंकियों को सीधे तौर पर यह संदेश दिया गया कि सरकार और सुरक्षा बल आतंकियों की धमकी के आगे डरने वाले नहीं हैं. फिर आज क्यों कश्मीर में एक नया मुहावरा गढ़ने की कोशिश हो रही है.
कश्मीर में तो हालत ये है कि वहां रह रहे हर किसी के भीतर दहशत और अफराफरी मची हुई है. जहां सरकारी अमला अपना ताम झाम दुरुस्त करने में जुटा है तो आम आदमी भी राशन की दुकानों पर लाइन में लगकर महीने भर का अनाज खरीद रहा है. एटीएम से लोग नकदी निकाल रहे हैं ताकि किसी भी संभावित मुसीबत का सामना कर सकें. आम लोगों में अफरातफरी के बीच भी जिम्मेदार स्तर पर कोई सही जवाब नहीं दे रहा है. सभी अपनी जिम्मेदारी टालने में लगे हैं. आखिर, कश्मीर और कश्मीर को लेकर देश में बन रहे भय के माहौल की जिम्मेदारी किसी को तो लेनी होगी.
कश्मीर में हर घंटे एक नई अफवाह पैदा हो रही है जो लोगों के मन में नया संशय पैदा कर देती है. सभी जगह गहमागहमी का माहौल है, ना कोई आगे देख रहा है और ना ही पीछे. बस हर किसी का मकसद किसी तरह सुरक्षित घर पहुंचना है. ये माहौल पिछले हफ्ते से तब बनना शुरू हुआ जब कश्मीर में अर्धसैनिक बलों के दस हजार अतिरिक्त जवान भेजे गए. इसी दौरान ये भी खबर आ रही है कि रेलवे ने वहां पर अपने अधिकारियों से कहा है कि चार महीने का राशन जमा कर लें. ये खबर भी तेजी से फैल रही है कि कश्मीर में और सुरक्षाबलों की तैनाती हो रही है. सेना और वायुसेना को हाई अलर्ट पर रखा गया है. इनको कौन बताए कि कश्मीर में सुरक्षाबल हमेशा अलर्ट पर ही रहते हैं. उन्हें अच्छी तरह पता है थोड़ी सी चूक हुई और उन्हें अपनी जान से हाथ गंवाना पड़ सकता है.
इन सबके बीच राजनीतिक बाजार में धारा 35ए और और धारा 370 को लेकर बयानों ने माहौल को और तनाव में डाल दिया है. हर चगह चर्चा और सुगबुगाहट होने लगी है कि इन धाराओं पर क्या होगा? इसको देखते हुए सारे कश्मीरी नेताओं के सुर भी एक हो गए हैं. हर कोई कहने लगा कि अगर इनसे छेड़छाड़ की गई तो कश्मीर जल उठेगा. हालांकि राज्यपाल सत्यपाल मलिक बार-बार कह रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है, अफवाहों पर ध्यान ना दें, लेकिन लगता है अब बात उनके आश्वासन से आगे की निकल चुकी है.
ये सही है कि धारा 35ए और 370 को हटाना बीजेपी सरकार के एंजेडे में है. सरकार जब चाहे इसको लेकर कुछ फैसला कर सकती है, हालांकि ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है इसलिए दिल्ली इस मामले में खुलकर कुछ भी नहीं बोल रही है जिससे और भी अनिश्चितिता का माहौल बनता जा रहा है. कई तरह की बातें सुनने में आ रही हैं. एक तो ये है कि आने वाले 15 अगस्त को प्रधानमंत्री कोई बड़ा एलान करने करने वाले हैं और सारी कवायद उसी को लेकर हो रही है. ये भी कहा जा रहा है कि जम्मू को अलग राज्य बना दिया जाएगा और कश्मीर व लद्दाख केन्द्र शाषित प्रदेश बना दिया जाएगा. आने वाले दिनों में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने है और सरकार की कोशिश होगी बिना किसी बाधा के चुनाव कराए उस लिहाज से भी इस हलचल को देखा जा रहा है.
कहा तो ये भी जा रहा है कि हाल-फिहलाल में कुपवाड़ा और तंगधार में जिस तरह से पाकिस्तान की ओर से आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिश हुई है उसको लेकर सरकार कोई बड़ी कार्रवाई कर सकती है. सूत्र ये भी संकेत दे रहे हैं कि पाकिस्तान की कोशिश भारत को उकसाने की है ताकि भारत कोई बड़ी कार्रवाई करे और वो कोई ऐसी हरकत करें जिसके जाल में चाहे अनचाहे भारत फंस जाए. दरअसल भारत के इनकार के बावजूद अमेरिका की ओर से दो बार कश्मीर को लेकर मध्यस्थता की बात करना भी समान्य बात नहीं लग रही है.
ऐसे मौके पर सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती है. उसे खुलकर सामने आकर अपनी बात कहनी चाहिए और यह बताना चाहिए कि वो हर कश्मीरी का दर्द महसूस करती है. किसी के साथ कुछ गलत नहीं होगा. किसी को डरने या घबराने की जरूरत नहीं है. डरे वो जिसने गलत किया है. कहीं ऐसा ना हो ये खामोशी कश्मीरियों को दिल्ली से और दूर ले जाए. पुराने जख्म फिर से हरे ना हो जाएं. आम लोगों को ऐसे डर और संशय के भंवर में नहीं छोड़ा जा सकता है. उनका क्या ये कसूर है कि वो कश्मीर में रहते हैं तो डरकर जिएं और हम दिल्ली में हैं तो चैन से सोएं.
बड़ा सवाल ये भी है क्या कश्मीर को लेकर कोई भी बड़ा फैसला करने से पहले वहां के लोगों को विश्वास में नहीं लिया जाएगा. दिल्ली और मुंबई में बैठकर कैसे कश्मीरियत को समझा जा सकता है? अब तक ये भी साफ हो चुका है कि कश्मीर समस्या का समाधान सुरक्षा बलों के बंदूकों की नोंक पर नहीं हो सकता है. हमें राजनीतिक रास्ता तलाशना होगा. कश्मीर के आम लोगों के दिलों के जरिए दिमाग तक पहुंचना होगा तभी कुछ बात बनेगी. अब तक कश्मीर के साथ तो यही होता आया है कि उसके भविष्य का फैसला वही लोग करते हैं जिनको कश्मीर की समझ नहीं है और नतीजा हर बार वही रहता है, ढाक के तीन पात.
राजीव रंजन एनडीटीवी में एसोसिएट एडिटर हैं.
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