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उपलब्धि के नए आसमान में भारत

Rajeev Ranjan
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 25, 2025 21:50 pm IST
    • Published On जून 25, 2025 21:42 pm IST
    • Last Updated On जून 25, 2025 21:50 pm IST
उपलब्धि के नए आसमान में भारत

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक्सिओम-4 मिशन के तहत अंतरिक्ष के लिए रवाना हो गए हैं. ग्रुप कैप्टन शुक्ला तीन और अंतरिक्ष यात्रियों के साथ 14 दिनों तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में रहेंगे. ये मिशन वायुसेना के लिए भी गौरव की बात है. ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के अंतरिक्ष में जाते ही वायुसेना ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि आसमान से लेकर अब सितारों तक, यह सफर हमारे एयर वॉरियर की ताकत और जज्बे की मिसाल है. 

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एक ऐतिहासिक मिशन पर रवाना हुए हैं, जिसमें वह तिरंगे को एक बार फिर धरती से बाहर ले गए हैं. यह राकेश शर्मा के मिशन के 41 साल बाद भारत के लिए फिर वही गर्व का पल है. यह सिर्फ एक मिशन नहीं बल्कि भारत के बढ़ते कदमों की पहचान है.

सबसे बड़ी बात ये हुई है कि इनके अंतरिक्ष में जाने से देश में हर जगह अंतरिक्ष को जानने-बूझने की उत्सुकता बढ़ी है. बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक में इस मिशन की चर्चा हो रही है. आने वाले पीढ़ी को प्रेरित करने के साथ-साथ इससे एक इको सिस्टम बनाने में भी मदद मिलेगी. शुभांशु के कंधे पर प्रतीकात्मक रूप से लगा तिरंगा सबको प्रेरित करेगा. सच कहें तो हिन्दुस्तान में इस मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है. वैसे यह डोमेन भारत के नया जरूर है लेकिन तकनीकी प्रभुत्व के लिए जरूरी है. अगर भारत को आगे बढ़ना है तो उसे अंतरिक्ष में कदम बढ़ाना होगा. 

आने वाला कल अंतरिक्ष का है. जो यहां तकनीकी तौर पर ताकतवर होगा, वही दुनिया पर राज करेगा. या फिर कह सकते हैं कि दुनिया में उसकी ही तूती बोलेगी. फिलहाल इसरो और वायुसेना अंतरिक्ष के फील्ड में काफी कुछ कर रहे हैं. इस पर ज्यादातर काम अंतरिक्ष के बाहरी हिस्से में हो रहे हैं, जो अधिकतर असैन्य, विकास से संबंधित और वैज्ञानिक प्रकृति के हैं. कैप्टन शुक्ला के अंतरिक्ष में जाने के बाद अब भारत की अंतरिक्ष में भागीदारी धीरे-धीरे अलग तौर पर दिखनी शुरू हो जाएगी. इसका एक रणनीतिक संकेत पूरी दुनिया में जाएगा. 

पहली बार भारत के एस्ट्रोनॉट विंग कमांडर राकेश शर्मा 1984 में सोवियत संघ के एक यान के जरिए अंतरिक्ष में गए थे. अब एक्सिओम-4 के जरिए दूसरा भारतीय नागरिक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन गया है. इससे भारत के गगनयान अभियान में खासी मदद मिलेगी. ये अंतरिक्ष में वास्तविक सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में अनमोल डाटा इकट्ठा करेंगे, जो 2027 के लिए निर्धारित गगनयान मिशन के लिए एक लाइव रिहर्सल की तरह होगा.

इसरो के रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल के लिए भी कैप्टन शुक्ला का अनुभव बहुत काम आएगा. इससे भारत के अपने पहले स्पेस स्टेशन कार्यक्रम में भी तेजी आएगी. अगर यह सब मिशन पूरी तरह से कामयाब रहता है तो यह भारत के युद्ध लड़ने की क्षमता को नया आकार देगा. 

कुछ महीने पहले भारत ने स्पेडेक्स मिशन के तहत अंतरिक्ष में डॉकिंग को सफलतापूर्वक अंजाम दिया था. इसमें दो सैटेलाइट एक-दूसरे के करीब आते हैं और फिर एक साथ जुड़ जाते हैं. यह एक जटिल तकनीकी प्रक्रिया है, जिसे अंतरिक्ष अभियानों में इस्तेमाल किया जाता है. अभी तक दुनिया के बस चार देश ये कामयाबी हासिल कर सके हैं. इसकी सफलता ने दिखाया कि भविष्य में भारत अंतरिक्ष में यानों को जरूरत पड़ने पर ईंधन भरने से लेकर मरम्मत तक का काम आसानी से कर सकता है. इतना ही नहीं, दुश्मन के सैटेलाइट को भी भारत चाहे तो निष्क्रिय कर सकता है. 

2019 में भारत ने एंटी सैटेलाइट मिसाइल टेस्ट किया था. दिखाया था कि वो अंतरिक्ष में भी किसी सैटेलाइट को गिरा सकता है. यह प्रयोग उसने अपने एक बेकार हो चुके उपग्रह पर किया था. अब वायुसेना का फोकस भी स्पेस पर है. इसके लिए इसरो के साथ मिलकर वायुसेना काम कर रही है. हालांकि अंतरिक्ष के मामले में चीन और अमेरिका की तुलना में भारत काफी पीछे है. 

आज के दौर की लड़ाई में बिना अंतरिक्ष के इस्तेमाल के आप जंग लड़ ही नहीं सकते. आपको पता कैसे चलेगा कि दुश्मन का ठिकाना किधर है? बिना इसकी मदद से आप टारगेट तक पता नहीं कर सकते हैं. दुश्मन पर नजर रखने से लेकर सर्विलांस तक का काम सैटेलाइट के जरिए ही सटीकता के साथ अंजाम दिया जा सकता हैं. ऐसे में यह कहना ज्यादा बेहतर होगा कि ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के अंतरिक्ष में पहुंचने से हमारे कई अंतरिक्ष अभियानों को नई उड़ान मिलेगी, जो देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए निर्णायक साबित होगी.
 

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