शायद इतिहास में ऐसे मौके कम आए हैं जब सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जजों का एक दल हिंसा से पीड़ित लोगों की बात सुनने और समस्याओं के समाधान पर चर्चा करने के लिए पहुंचा है. यह दल नेशनल लीगल सर्विसेज ऑथोरिटी के जरिये पहुंचा है. न्यायमूर्ति बी आर गवई की अगुवाई में जजों की टीम इम्फाल पहुची है. मणिपुर में हिंसा से पीड़ित लोगों को कानूनी और मानवीय मदद पहुंचाने के लिए यह दल आज से ही मणिपुर में लोगों से मिल रहा है. यह दल उन लोगों से मिलेगा जो अपनो को खो चुके हैं.साथ ही ऐसे विस्थापित लोगों से भी मिलेगा जो अपना घर बार छोड़कर कैंपों में गुजारा कर रहे हैं. कोशिश होगी कि पौने दो साल में लोगों को जो जख्म मिले है, उस पर मलहम लाया जा सके. हालांकि, यह बहुत ही मुश्किल काम है तभी मणिपुर को लेकर केन्द्रीय वित्त मंत्री ने मंगलवार को राज्यसभा में कहा कि मणिपुर एक संवेदनशील मुद्दा है. ये हम सबका है. हम सभी को एक दूसरे का समर्थन करना होगा.

मणिपुर यानि आभूषणों की भूमि वाला राज्य,इस की सीमा म्यानमार से मिलती है. वही एक तरफ असम है तो दूसरी तरफ नागालैंड और मिजोरम. पूर्वोत्तर का यह छोटा सा खूबसूरत राज्य इन दिनों गलत वजहों से सुर्खियों में है. मणिपुर में करीब पौने दो साल पहले हिंसा का दौर तब शुरू हुआ था जब 27 मार्च 2023 को मणिपुर हाई कोर्ट ने एक आदेश में राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने पर विचार करने को कहा था. इस आदेश के कुछ दिनों बाद ही तीन मई 2023 से कुकी और मैतेई समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी थी. स्थिति को संभालने के लिये कर्फ्यू भी लगाया गया. सेना और असम राइफल्स को तैनात भी किया गया फिर भी हिंसा का दौर जारी रहा. हजारों लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा जबकि 250 से ज़्यादा लोगो की मौत हो गई.
मणिपुर के हालात बिगड़ने और उसे संभाल नहीं पाने का ठीकरा उस वक्त के मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पर फूटा. जातीय हिंसा के 21 महीने बाद फरवरी के दूसरे हफ्ते में उनको इस्तीफा देना पड़ा. बीरेन सिंह को हटाने से पहले ही केन्द्र सरकार ने तय कर लिया था कि मणिपुर के हालात को कैसे सुधारना है. तभी पिछले साल दिसंबर के अंतिम महीने में मणिपुर की जिम्मदारी पूर्व गृह सचिव अजय भल्ला को सौंपी गई. वजह ये कि एक तो वह गृह सचिव रहते हुए भी मणिपुर को देख रहे थे. दूसरा उनके पास उत्तरपूर्व राज्यों में काम करने का अनुभव भी है. इसलिए अजय भल्ला को रिटायरमेंट के बाद मणिपुर का राज्यपाल बनाया गया.
बेशक मणिपुर अपने पुराने जख्मों से उबरने में लगा है पर हिंसा की वजहों को भी जानना जरूरी है. यहां पर मैतई, नगा और कुकी समुदाय के लोग रहते है . इनमें मैतई ज़्यादातर हिंदू हैं जबकि नगा और कुकी अधिकतर ईसाई हैं और जनजाति श्रेणी में आते हैं. मैतेई समुदाय के लोग घाटी में रहते है जबकि कुकी लोग पहाड़ी इलाके में. मैतेई समुदाय को लगता है उनको भी जनजातीय समुदाय का दर्जा दिया जाए ताकि उनके समुदाय , परंपरा , संस्कृति और भाषा की हिफाजत हो सके. वहीं, दूसरे समुदायों को लगता है कि अगर मैतेई को जनजातीय समुदाय का दर्जा मिल गया तो उनके लोगो को नौकरी और आरक्षण का पूरा लाभ नही मिल पाएगा. साथ ही मैतेई को जब पहाड़ों में जमीन खरीदने का अधिकार मिल जाएगा तो पहले से ही प्रभावशाली तबका मैतेई के आगे सब फीके पड़ जायेंगे.

जातीय टकराव और हिंसा को रोकने एवं शांति के लिए की गई तमाम कोशिश अब रंग लाती दिख रही है. करीब पौने दो साल चली हिंसा और अराजकता के माहौल ने राज्य को काफी नुकसान पहुंचाया है लेकिन राष्ट्रपति शासन के बाद प्रदेश के हालात पटरी पर आते दिख रहे है. 13 फरवरी के बाद से राज्य में अब तक हिंसा की कोई बड़ी घटना नही हुई है. 8 मार्च से नेशनल हाइवे भी काफी हद तक खुल गया है. जरूरी समानों की आवाजाही शुरू हो गई है. यह हाईवे मई 2023 से ही बंद था जो अब जाकर खुला है. इस बीच गृह मंत्रालय की पहल पर दिल्ली मे लगातार कुकी और मैतेई विधायकों से लेकर समाजिक संगठनों के बीच बातचीत जारी है ताकि समुदायों के बीच जमी बर्फ को पिघलाया जा सके.
वैसे, इसके लिये कोशिश हर स्तर पर किये जाने की जरूरत है. कोशिश है कि आपसी टकराव कम से कम हो. ऐसे हालात ही ना बने जिससे हिंसा का माहौल बने. यह सही है कि पहले राज्य सरकार हालात को समझने में नाकाम रही जिस वजह से स्थिति इतनी बिगड़ी. हालात जटिल होते गए. समस्या को हल करने को लेकर अब तक नीतियां भी ठीक नही रही. कह सकते है जैसे गंभीर प्रयास होने चाहिए थे वह नही हुए और नतीजा सबके सामने है. आज विपक्षी दलों के नेताओं को भी शांति प्रक्रिया में शामिल किये जाने की आवश्यकता हैं. पक्ष और विपक्ष दोनों को दलगत राजनीति से उठकर एक स्वर में आपसी सौहार्द व विश्वास बहाली के लिये काम करना चाहिए.
यह सही है मणिपुर का विवाद कोई नया नही है पर जिस तरह वह भड़का वाकई में पूर्वोत्तर राज्यों के लिये खतरनाक संकेत है. इसके बावजूद केंद्र सरकार के कुछ राजनीतिक और कुछ प्रशासनिक फैसलों को देखते हुए अब कुछ उम्मीद की किरण जगी है. हालांकि बात भी सोलह आने सच है कि राष्ट्रपति शासन के बाद कुकी और मैतेई समुदायों में शांति का माहौल बन रहा है, लेकिन उसमें लगी मामूली सी चिंगारी भी फिर से आग भड़का सकती है.
राजीव रंजन NDTV इंडिया में डिफेंस एंड पॉलिटिकल अफेयर्स एडिटर हैं...
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