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ब्लॉग

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    एक सोशल मीडिया योद्धा की ट्रैवल डायरी

    छुट्टियों पर जाकर तस्वीरें खींचना जीवन की अद्भुत व्यथा है, जिसे भरपूर एन्जॉय किया जाता है. जब नौकरी और प्रोडक्टिविटी के मकड़जाल में यह समय के सदुपयोग के हिसाब से परम धर्म लगता रहता था. अब इस व्याधि की गहराई और ज़्यादा अंडरग्राउंड चली गई है.

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    राहुल गांधी पर बीजेपी का उपकाऱ और ब्लॉग को लेकर मेरी दुविधा...

    विचार बदलना मुश्किल काम होता है. दिमाग़ की चक्की में नई बातों को डालना पड़ता है, पुर्ज़ों में तेल डालते रहना पड़ता है कि चक्की चलती रहे. बातों को बारीक़ पीसकर विचार में तब्दील करती रहे. इससे ज़्यादा मुश्किल काम होता है धारणा बदलना. धारणा विचारों की बोरियों को एक पर एक रखने पर बनती हैं. इसी लिए धारणा बदलने के लिए ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है.

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    कुशीनगर में ग़लती किसकी थी? और सज़ा का गणित क्या होता है?

    बारह इंतज़ार अब कभी ख़त्म नहीं होंगे, जिनके सफ़र घर और स्कूल के बीच ख़त्म हो गए. ये इंतज़ार ना तो उनके परिवारों के लिए ख़त्म होगा ना ही उनके स्कूल के दोस्तों के लिए. उनके मां-बाप कुछ दिनों तक, सुबह उनके टिफ़िन में क्या दिया जाएगा, सोने से पहले हर रात आदतन सोचेंगे. आदतन सुबह उठेंगे भी लेकिन नाश्ता नहीं बनाएंगे.

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    पूजा और लाठीचार्ज के बीच एक देवी, एक मनुष्य और एक शरीर

    बीएचयू में धरना चल रहा था. छात्राओं की स्टोरी चल रही थी. न्यूज़ एजेंसी की माइक पर लड़कियां बता रहीं थीं छेड़ख़ानी की शिकायत के बारे में. एक लड़का भी साउंड बाइट देने आया.

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    दिल्ली की ट्रैफिक में साइकिल चलाने से मुझे क्या सबक मिला...

    सेहत की फिक्र करने वाले और थोड़ा बहुत पर्यावरण की चिंता करने वाले अपर मिडिल क्लास लोगों ने जब से हजारों और लाखों रुपये की साइकिलें खरीदनी शुरू की है, लोगों का नजरिया बदला है.

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    “बयान”: एक सस्ती एंथ्रोपोलॉजिकल स्टडी

    बयान शाश्वत है. ना तो वो दिया जाता है, ना वो सुना जाता है. ब्रह्मांड का अकाट्य तत्व है बयान जो सिर्फ़ मुंह बदलता है. बयान अपनी पार्टी और अपना फ़ॉर्म बदलता है, नेता और वोट बैंक भी बदलता है क्योंकि बयान एक कॉस्मिक एनर्जी हैं. वो एनर्जी जिससे छिटक कर मनुष्य बना है.

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    क्या बीएमडब्ल्यू के विज़न डायनैमिक्स से चुनौती मिलेगी टेस्ला कारों को?

    फ्रैंकफर्ट मोटर शो में कार कंपनियों में नई कार और फ़्यूचरिस्टिक कारों को दिखाने के लिए होड़ लगी हुई है और इस बार भी ज़्यादातर का फ़ोकस भविष्य की कारों पर ही है, जो चाहे ईंधन के मामले में हो या ड्राइव के मामले में. 

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    नितिन गडकरी के बयान से क्यों भौंचक्की रह गईं कार कंपनियां?

    ये मामला शुरू हुआ था ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफ़ैक्चर्रस की कांफ्रेंस में. वे कंपनियां जो गाड़ी कंपनियों के लिए पार्ट पुर्ज़े बनाती हैं उनका असोसिएशन है ACMA और उसी के कांफ्रेंस में देश-विदेश की कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे.

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    सोशल मीडिया कॉम्पैटिबल मुद्दों को उठाने की जरूरत नहीं, उठे-उठाए आते हैं...

    बहुत समय से एक विड्रॉल सिम्प्टम महसूस हो रहा है. लग रहा है कि मन में कुछ बेचैनी है, अंगूठे कसमसा रहे हैं, ट्विटर टाइमलाइन तड़पड़ा रहा है, फेसबुक फड़फड़ा रहा है, बाकी सोशल मीडिया के तमाम प्लैटफ़ॉर्म पर भी इत्यादि टाइप की समस्याएं देखने को मिल रही थीं. लग रहा है एक खालीपन ने पूरे यूनिवर्स को घेर लिया है. इस मनोस्थिति को पकड़ने के लिए हेलो जिंदगी वाले शाहरुख खान काफी हैं, फ़्रॉयड की जरूरत नहीं पड़ेगी. समस्या सीधी और सिंपल है, हुआ दरअसल ये है कि मार्केट में मुद्दों की भारी कमी हो गई है, अब कोई ऐसा मुद्दा बच ही नहीं पा रहा है जिसे मैं उठा पाऊं.

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    राइट टू प्राइवेसी आयोग से लिस्ट में ऑफ़िस के वॉशरूम और शादी का बुफ़े को जोड़ने का आवेदन

    मैं एक 'जनरलिस्ट' हूं. और आदर्श 'जनरलिस्ट' की तरह ना तो मुझे पता है कि किस फ़ॉर्मैट के तहत ये आवेदन भेजना चाहिए और ना ही मैं जानने की कोशिश में मेहनत करना चाहता हूं.

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    सराहा में लॉगिन करने के बाद मैंने फेसबुक और मित्रों के बारे में क्या जाना?

    ख़ैर सराहा से मेरा तो एजेंडा को पूरा हो गया. ब्लाग हो गया. अब सोच रहा हूं कि तुरंत लॉग आउट करूं या अपने कुछ और ईगो-बूस्टिंग संदेशों का इंतज़ार करूं? 

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    कब हार मानी होगी गोरखपुर के अस्पताल में बैठे उस पिता ने...

    बच्चा दिमाग़ कई विडंबनाओं को देखकर उलझ जाता है. ऐसे ही किसी एक याद ना आने वाली बारीक़ी को जब समझने में दिक्कत हो रही थी तो मुझसे ठीक बड़ी बहन ने मुझसे कहा कि मां बनोगे तो समझोगे.

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    क्या 'कंपस' की आकर्षक क़ीमत भारतीय एसयूवी बाज़ार में 'जीप' की सफलता के लिए काफ़ी है?

    जीप एक ऐसा ब्रांड है जो ऑफ़रोडिंग के लिए दुनिया में जाना जाता है, कंपनी ने भारत में पहले से अपनी रैंगलर और ग्रैंड चेरोकी उतारी हुई हैं.

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    'लेडी विराट कोहली' नहीं हैं ये - वक्त आ गया है शब्दावली बदलने का

    ...'हार गए, पर दिल जीता' जैसी पंचलाइन जब थोड़ी बसिया जाएंगी, तो उसके बाद भी हमें इस मुद्दे पर सोचना होगा, नई शब्दावलियों पर काम करना होगा. हम शब्दावलियां बदलने के युग में प्रवेश कर चुके हैं.

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    कौन कहता है कि टाइम मशीनें नहीं बनी हैं ?

    टाइम मशीन का काम क्या होता है. एक वक़्त से दूसरे वक़्त में जाना ? यही होता है ना उसका काम. इसी पैमाने पर मैं ये स्थापना दे रहा हूं कि टाइम मशीन बन चुके हैं और हमारे इर्द-गिर्द बड़ी संख्या में मौजूद है.

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    सात सेकंड का वीडियो हमारे ट्रैफिक की कौन सी ख़ामियां उजागर कर रहा है...?

    दिल्ली से सटे नोएडा और ग्रेटर नोएडा के बीच बने एक्सप्रेस्वे पर लगे सीसीटीवी कैमरे ने एक ऐसे एक्सीडेंट को कैप्चर किया है जिसमें एक ऐसी कार शामिल थी जो पूरी चर्चा का केंद्र बनी. तीन कारें इस एक्सिडेंट में शामिल थीं. मारुति डिज़ायर, मारुति ईको और लैंबोर्गीनि. वीडियो में दिख क्या रहा है?

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    सड़कों पर जान बचाने के लिए क्या सरकार ये चार आइडिया अपना सकती है? 

    रोड ऐक्सिडेंट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत ज़ोर पड़ता है. एक अनुमान के हिसाब से जीडीपी का तीन फ़ीसदी रोड ऐक्सिंडेंट में चला जाता है. तो वजहें बहुत हैं, पर लक्ष्य मुश्किल भी है.

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    सुना है, मुख्यमंत्री जी ने ट्रैफिक जाम के बॉटलनेक पर रिपोर्ट मांगी है...

    जब हमने रिपोर्टिंग शुरू की थी तो दिल्ली में कुल चार-पांच स्पॉट थे, जहां बारिश के बाद चटकदार स्टोरी के लिए चटकदार विज़ुअल मिलते थे... एक-आध डीटीसी बस का तो जन्म ही मिंटो ब्रिज के जलजमाव में जलमग्न होने के लिए होता था... लेकिन आज जलसमाधि के लिए मिंटो रोड जाने की ज़रूरत नहीं... दिल्ली के कोने-कोने में यह सुविधा उपलब्ध है...

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    नई मारुति डिजायर की टेस्ट ड्राइव की रिपोर्ट का किसी को इंतज़ार था क्या?

    हिंदुस्तानी ग्राहक एक जूते का फीता भी ख़रीदते हैं तो सोसाइटी के वाचमैन से लेकर अपने फ़ैमिली डॉक्टर तक से सलाह ले लेते हैं कि कौन से ब्रांड का ख़रीदा जाए. कौन से मार्केट में पौने सात रुपए की छूट मिल सकती है. तो ऐसे में गाड़ियां तो बड़ी चीज़ हैं. लाखों का वारा न्यारा होता है. पहले के ज़माने में पीएफ़ का पूरा पैसा लग जाता था, आजकल बैंक का इंटरेस्ट रेट रहता है.

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    क्या गाड़ियों की टेस्ट ड्राइव रिपोर्ट पर भरोसा कम हुआ है ?

    टेस्ट ड्राइव रिपोर्ट, फ़र्स्ट ड्राइव रिपोर्ट या ड्राइव का इंप्रेशन ऐसी चीज़ें हुआ करती थीं जिनका इंतज़ार होता था. कार और मोटरसाइकिल कंपनियां बहुत नहीं थी. लॉन्च बहुत नहीं हुआ करते थे. हम जैसे कई मोटरिंग पत्रकार गाड़ियों को चलाते थे, एक एक स्टोरी के लिए कई कई दिन शूट करते थे. फिर वक़्त लगाकर वीडियो एडिटिंग करते थे और तब आता था वीकेंड और हमारी स्टोरी चला करती थी.

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