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This Article is From Sep 23, 2017

दिल्ली की ट्रैफिक में साइकिल चलाने से मुझे क्या सबक मिला...

Kranti Sambhav
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    September 23, 2017 13:03 IST
    • Published On September 23, 2017 13:03 IST
    • Last Updated On September 23, 2017 13:03 IST
साइकिल हाल-हाल तक मजबूरी का साधन समझी जाती रही. बचपन में जिन हरे या काले रंग वाली एवन, ऐटलस या हरक्यूलिस जैसी साइकिलों पर साइकिल चलाना सीखा, जो एक वक़्त में मेरे बड़े भाईयों की प्रिविलेज लगती थी, जिन पर हाफ पैडल से फुल पैडल तक चलाना सीखा, उन साइकिलों को दिल्ली में सबसे दबे-कुचले यातायात के साधन के तौर पर देखा है. चिराग दिल्ली फ्लाइओवर के नीचे वाले चौराहे पर कई सुबह, सेनाओं की क्रॉसफायरिंग में फंसे लोगों की तरह. जहां साइकिलों का जत्था भले सैकड़ों में हो, पर साइकिल वाला अकेला ही पड़ जाता है, एक तरफ से कार तो दूसरी तरफ से बस उन पर चढ़ने को लालायित दिखते रहते थे. पर अब साइकिलों के डिस्कोर्स में बदलाव आ गया है. अब हजारों और लाखों रुपये की साइकिलें देश में आ गई हैं. सेहत की फिक्र करने वाले और थोड़ा बहुत पर्यावरण की चिंता करने वाले अपर मिडिल क्लास लोगों ने जब से हजारों और लाखों रुपये की साइकिलें खरीदनी शुरू की है, लोगों का नजरिया बदला है. अब लोग वीकेंड पर साइक्लिंग करने निकलते हैं. मेरे कई मित्र और जानकार अब वीकेंड पर सौ-डेढ़ सौ किलोमीटर साइकिल भगा कर आते हैं. ऐसे में लोअर इनकम ग्रुप से मामला अपर मिडिल क्लास में जब जाता है तो जहिर है साइकिलों को लेकर लोगों का नजरिया तो बदलेगा ही.

कार सवार बिगड़ैल, साइकिल सवार सौतेले बच्चे
दिलचस्प मुद्दा ये है कि देश में ट्रांसपोर्टेशन का मतलब केवल कारें मानी जाती हैं. मोटे तौर पर पॉलिसी भी कारों को केंद्र में रखकर बनाई जाती रही हैं. सड़कों पर भले ही दो-तीन दर्जन अलग-अलग तरह की सवारियां चलती हैं, पर कारों का ऐसा हौव्वा बन गया है कि लगता ही नहीं कि बाकियों के बारे में भी सोचा जाता है. बसों के लिए एक बीआरटी के बारे में सोचा गया तो उसे इस तरह से देखा गया मानो वो पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन पर अहसान किया जा रहा हो. कार को लेकर हमारी सोच ने कार सवारों को बिगड़ैल बच्चा बना दिया है, जिसे सड़क पर अपने अलावा बस, ट्रक, ऑटो, रिक्शा, साइकिल और पैदल यात्री सभी रुकावट लगते हैं, यातायात को कोई साधन नहीं. इसलिए जब वो चलते हैं तो पूरी सड़कों को घेर कर चलते हैं और जब रुकते हैं तो फुटपाथ घेर लेते हैं. कार चलाते हुए जहां मैं आमतौर पर सामने देखकर चलाता हूं, साइकिल चलाते हुए मेरी गर्दन उल्लू की तरह हर तरफ घूम रही थी. पता नहीं किस तरफ से कार वाले 'बेकार' कर जाएं, क्योंकि देश में साल भर में सड़क हादसों में मारे गए डेढ़ लाख लोगों में से पचास फ़ीसदी टू-व्हीलर वाले, साइकलिस्ट और पैदल यात्री ही थे.

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सड़कों को चौड़ा करने से कुछ नहीं होगा
देश में 21 करोड़ से ज़्यादा रजिस्टर्ड गाड़ियां हैं और हर दिन पचास हजार से ज्यादा नई गाड़ियां सड़कों पर उतरती हैं. इनमें वो गाड़ियां तो हैं ही नहीं, जो रजिस्टर्ड नहीं हैं. केवल दिल्ली में एक साल में 6 लाख नई गाड़ियां सड़कों पर उतर गईं और अब कुल 1 करोड़ से ज्यादा गाड़ियां आ चुकी हैं. इन सब आंकड़ों को देखकर कम से कम एक चीज तो समझी जा सकती है कि अगर आने वाली गाड़ियों के हिसाब से सड़कों का निर्माण करते रहें, सड़कों को चौड़ा करते रहें तो फिर ये रेस हम कभी भी नहीं जीत पाएंगे. और ये कोई हाइपोथिसीस नहीं है. दिल्ली को ही देख लीजिए. फ्लाइओवर बना लिए, सड़कें चौड़ी कर लीं, लेकिन हालत ये है कि अब पीक आवर और नॉन पीक आवर में फर्क ही नहीं रहा है. पीक आवर में औसत रफ्तार 26 किमी प्रतिघंटा और नॉन पीक आवर में 28 किमी प्रतिघंटा, यानि पूरे दिन पीक आवर.

साइकिलों के लिए लेन
भले ही ज्यादातर साइकलिस्ट गरीब तबके से आते हों, जो अपनी नौकरी पर जाने के लिए साइकिल पर जाते हों, जिनके लिए साइकिल मजबूरी हो. मेट्रो और बस का किराया भी जिनके लिए ज्यादा हो, पर जहां साइकिल लेन की बात आती है, बहुत से नीति-निर्धारकों की त्यौरियां ऐसे चढ़ जाती हैं मानो ये कोई 28 परसेंट जीएसटी और 25 परसेंट सेस वाला लग्ज़री आइटम हो. जबकि साइकिल लेन से असल भला गरीबों का होगा या फिर लोअर मिडिल क्लास का.

VIDEO : वर्ल्ड कार फ्री डे पर साइकिल की सवारी

पर्सनल सबक
वैसे इन मुद्दों के अलावा और भी सबक थे जो अगली बार घर से ऑफिस साइकिल पर जाते हुए ध्यान रखूंगा. एक तो ये कि धूप निकलने से पहले यात्रा ख़त्म कर लूं. दूसरा ये कि सनस्क्रीन थोप कर जाऊंगा. तीसरा कि साइकलिंग के लिए जो पसीना सोखने वाले कपड़े होते हैं वो फटाफट ख़रीदता हूं. और आख़िर में सोच रहा हूं कि पुराने जमाने वाले गद्देदार सीट लगवा लूं. नए जमाने की स्पोर्टी सीटें मेरे बस की बात नहीं. और हां मास्क तो पक्का खरीदूं, वरना दिल्ली का प्रदूषण ऐसा है कि लेने के देने पड़ जाएंगे.

क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...

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