छुट्टियों पर जाकर तस्वीरें खींचना जीवन की अद्भुत व्यथा है, जिसे भरपूर एन्जॉय किया जाता है. जब नौकरी और प्रोडक्टिविटी के मकड़जाल में यह समय के सदुपयोग के हिसाब से परम धर्म लगता रहता था. अब इस व्याधि की गहराई और ज़्यादा अंडरग्राउंड चली गई है. अब न सिर्फ़ तस्वीरें खींचनी होती हैं, उन्हें पोस्ट भी करना होता है. केवल फेसबुक पर नहीं, क्योंकि फेसबुक तो निठल्ले कठमुल्लों का अभयारण्य है, इंस्टाग्राम पर भी करना होता है, क्योंकि इंटरनेट ने विज्ञप्ति जारी कर दी है कि फोटो है, तो इंस्टाग्राम पर ही जाएगा. लेकिन वहां पर अगर लाइक की मात्रा डेढ़ सौ ग्राम से ऊपर नहीं जाती है, तो फिर थककर, लंपटों के आरामगाह ट्विटर पर जाना पड़ता है. जो लाइक-रीट्वीट मिल जाए, बोनस माना जाए. तो चूंकि हम वर्चुअल मीडिया की जीवनरेखा के ईसीजी के कांटे हैं, तो अपनी यात्रा की तस्वीरें ठेल-ठेलकर गूगल के सर्वर में दरार पैदा कर देता हूं.
यात्रा अब एक सामाजिक असामाजिकता है. जब तक सोशल मीडिया पर फोटो डालकर 17 लोगों का कलेजा न जलाओ, 15 लोग से वेकेशन पर जाने के लिए पर्सनल लोन न अप्लाई करवाओ, तब तक यात्रा बेकार है. पैकेज टूर पर धिक्कार है. वॉन्डरलस्ट में तो दुष्टसुख इनबिल्ट है. हम घूमें तो घूमें, हमारे आसपास के लोग सिर ज़रूर धुनें. एक-एक सेकंड का पोस्ट डालना आवश्यक है. खाना-पीना तो हईए है. बादल, रेनबो के अलावा प्रकृति के बाकी अंग भी टैग होने ज़रूरी हैं. वाइल्डलाइफ और लोकल गदहे का पिक मस्ट है.
अब आपकी ज़िम्मेदारी केवल आपका परिवार नहीं है. आप पर एक पूरा कुनबा लदा हुआ है. आपकी पोस्ट पर अपना दिन काट रहा है. आपको उन सबकी ज़िम्मेदारी लेनी होगी. जो अपने रीयल जीवन के सुनहरे पल आपके पोस्ट किए छछूंदर की वर्चुअल फोटो पर निछावर कर रहे हैं. डरिए मत. ज़िम्मेदारी से भागिए मत. उस ज़िम्मेदारी के बोझ तले दबकर आप सोशल मीडिया के हीरा बनेंगे. आपके जीवन का एक-एक पल रिकॉर्ड होना चाहिए. मोबाइल की मेमोरी को बाप-बाप कर देना चाहिए. हम तो विशिष्ट-सी फूड की तस्वीरों के साथ टॉयलेट सीट का भी फोटो खींच रहे हैं और अगर टाइमलाइन पर डिमांड आई, तो उन सीट को ऑपरेट करने से भी परहेज़ नहीं होना चाहिए. इट विल बी एन ऑनर. हम सोशल मीडिया योद्धा हैं, वह अपेक्षा-उपेक्षा-लाज-मर्यादा की सीमाओं से ऊपर है. यह एक सामाजिक कार्य है. बहुत-से लोगों को जीने की वजह दे रहा है. और अगर वजह नहीं दे पा रहा है, मजा ज़रूर दे रहा है.
अब उत्सुकता ही सबसे बड़ी भूख है. अब महीन से महीन जानकारी ही असल बौद्धिक खुराक हो गई है. अब कॉन्टेक्स्ट का अवसान हो गया है, कॉन्टेंट का साम्राज्य चल रहा है. चलना-फिरना-देखना-आंख मूंदना-पांव पकड़ना-लतियाना-बतियाना-झुठियाना-झुठलाना-राइट-लेफ्ट-गिरना-पड़ना-कूदना-कुदाना-रोना-पीटना-हंसना-खिसियाना सब कॉन्टेंट है. और हम सभी इसके ग्राहक हैं. अब हमारी हर अनुभूति का रिकॉर्ड रखना ज़रूरी है. अब हमारे हर तजुर्बे नापे जाने ज़रूरी हैं. हर सच्चाई अब पोस्ट की जानी ज़रूरी है. हर उल्लास का मानकीकरण आवश्यक है. अब अगर कोई हमारी तस्वीरें न देखे, तो हमारा अस्तित्व नहीं है. लाइक और शेयर के बिना जीवन को न जिया हुआ घोषित किया जाएगा. नल एंड वॉयड.
अब हम नहीं, हमारे कैमरे घूमने चाहिए. हम नहीं, बात हमारे कैमरे को करनी चाहिए. खाने का स्वाद भी वही कैमरे के लेंस ले रहे हैं. अब थोड़े दिनों में ख़ुशबू भी वही भांपेंगे. प्रकृति से इंटरएक्शन का भी ऐप आएगा. खूबसूरती से गदगद् भी वही होंगे. अब कुछ दिनों में हम अपने सारे अनुभव को आउटसोर्स कर देंगे. महसूस करने के भार से खुद को मुक्त करेंगे.
क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...
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