कौन कहता है कि टाइम मशीनें नहीं बनी हैं ?

हाल में मैंने इसका प्रैक्टिकल भी किया है. प्रैक्टिकल किया दिल्ली से सटे हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूज़ियम में. तो ऐसे ही कुछ टाइम मशीनों के साथ मेरा तजुर्बा आपको बताता हूं. 

कौन कहता है कि टाइम मशीनें नहीं बनी हैं ?

नई दिल्ली:

टाइम मशीन का काम क्या होता है. एक वक़्त से दूसरे वक़्त में जाना ? यही होता है ना उसका काम. इसी पैमाने पर मैं ये स्थापना दे रहा हूं कि टाइम मशीन बन चुके हैं और हमारे इर्द-गिर्द बड़ी संख्या में मौजूद है. दिक्कत सिर्फ़ एक है. वो है उन्हें देख पाना. ऐसा नहीं वो छुपी हुई हैं, पर वह ऐसे वेश में हैं कि हमारा मन और मस्तिष्क पहचान नहीं पाता कि वो वाकई मे हमारे-आपके सामने खड़े हैं. तो आख़िर क्या तरीक़ा है उन्हें ढूँढने का ? तो आज मैं आप सबको टाइम मशीन खोजने का सबसे आसान तरीक़ा बताता हूं. वो तरीक़ा है अपने मन और मस्तिष्क के इंची-टेप को किनारे रखना और आप तुरंत पकड़ पाएंगे टाइम मशीन को, और हां सफ़र भी कर पाएंगे. ऐसा नहीं कि मैं सिर्फ़ ज्ञान दे रहा हूं, हाल में मैंने इसका प्रैक्टिकल भी किया है. प्रैक्टिकल किया दिल्ली से सटे हेरिटेज ट्रांसपोर्ट म्यूज़ियम में. तो ऐसे ही कुछ टाइम मशीनों के साथ मेरा तजुर्बा आपको बताता हूं. 
 

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जैसे सुज़ुकी शोगन. अब अगर दिमाग़ लगाकर देखें तो लगेगा कि हां सुज़ुकी की मोटरसाइकिल है. समुराई बाइक का अग्रेसिव वर्ज़न. बाइक के बगल में कहानी भी लिखी थी कि इस मोटरसाइकिल को चलाने वाले अनिंद्यो चक्रवर्ती और उनके साथी ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के लिए 40 हज़ार किलोमीटर का सफ़र तय किया था. पर मुझे याद आई मेरे मित्र की शोगन जो वो भगाया करता था नोएडा में ऑफ़िस के बाहर. 
 
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अब इस तांगे को देखकर आप सीधा अपने शहर में पहुंच सकते हैं, बचपन के सफ़र पर जा सकते हैं. वैसे हो सकता है आप शोले के सेट पर भी पहुंच जाएं, बसंती के तांगे पर.
 
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या फिर एक बहुत ही कॉमन सवारी जो सबको अपने अपने समय में, अपनी कहानियों में वापस लेकर जाएगी. एंबेसेडर कार. हम सबके पास एक से एक स्टोरी होती है इस कार से जुड़ी. जैसा मेरे एक भइया, अपनी एंबेसेडर कार का दरवाज़ा कभी ठीक से बंद नहीं करते थे और वो चलाने लगते थे. बहुत साल पहले की कहानी थी और आज भी उसी चिंतित करने वाले ड्राइव पर वापस चला गया मैं. आपकी भी कोई ना कोई कहानी होगी ही. इसी यादगार सवारी को और रंगीन बनाया गया है गौंड लोककला की कलाकारी के साथ. बहुत ही ख़ूबसूरत से कार जिस पर एक हेलिकॉप्टर भी बना था.
 
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अब एक छोटे टाइम मशीन पर ले जाता हूं. बजाज सुपर, जिसे देखते ही दिल्ली की जून वाली दोपहरी में पहुंच गया था. जब मैं सफदरजंग मकबरे रेडलाइट से दाएं लोधी रोड पर पहुंच गया जहां की हरियाली ने अचानक राहत दिला दी. फिर अचानक पिताजी के साथ अपने स्कूल जाने वाले रास्ते पर. आपका भी पक्का कोई ना कोई सफ़र रहा होगा ऐसा ही.

इंपाला कार को देखिए तो शर्त लगाकर कह सकता हूं कि आप भी किसी सत्तर की दशक की बॉलिवुडिया फ़िल्म में चले जाएंगे. मुझे तो पता नहीं क्यों इस जहाज़ जैसी कार को देखकर लग रहा था देव आनंद ऐसी किसी कार में चलकर आ रहे हों या फिर राजकुमार. 
 
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एटलस मोपेड को देखिए. और मैं चला गया पटना की सड़क पर जहां मैं और मेरी बहन मोपेड साइकिल की तरह चलाने की कोशिश करते थे. 
 
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वैसे यहां इनसे भी पुराने ज़माने में जाने का स्कोप है. जैसे पालकियों और डोलियों का ज़माना. वहां एक गज़ब चीज़ दिखी. पालकियों को उठाने के लिए लिए जो दोनों और लकड़ियां होती थीं, उनके सिरों को कैसे सजाया जा सकता है वो भी शानदार डिज़ाइन वाले मूठों के ज़रिए दिखे. एक से एक नक्काशी वाले.
 
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बहुत ही स्टाइलिश बैलगाड़ी दिखे, रथ भी दिखे, यहां तक कि बकरागाड़ी भी.
 
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और हेडलाइट्स देखिए. इतने ख़ूबसूरत हेडलैंप्स आजकल कहां दिखेंगे, भले ही एलईडी, एचआईडी और लेज़र लाइट्स लग जाएं. और हां वो खिलौने भी थे जिन्हें बचपन में चलाने का शौक़ रहा होगा. पता नहीं कितनों का शौक़ पूरा हुआ. पर यहां पर देखकर दिल तो बहलाया जा सकता है. ये मशीनें केवल यातायात का साधन नहीं, एक जगह से दूसरे जगह पर ले जाने के लिए नहीं बनी हैं। ये टाइम मशीनें हैं। 

क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...

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