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This Article is From Jul 08, 2017

सड़कों पर जान बचाने के लिए क्या सरकार ये चार आइडिया अपना सकती है? 

Kranti Sambhav
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    July 08, 2017 14:35 IST
    • Published On July 08, 2017 14:35 IST
    • Last Updated On July 08, 2017 14:35 IST
जब देश के मंत्री ही बोलें कि देश में एक तिहाई ड्राइविंग लाइसेंस फ़र्ज़ी हैं तो समझना मुश्किल नहीं कि भारत में ट्रांसपोर्टेशन की स्थिति कैसी है. पर समस्या ये है कि बाक़ी के दो तिहाई लाइसेंस कैसे हैं. हम और आप जितने लोगों को जानते हैं उनमें से कइयों के पास एक से एक कहानी रहती थी कि कैसे उन्हें लाइसेंस मिला है. मोटरसाइकिल का लाइसेंस लेने गए और कार का लाइसेंस मिल गया. कैसे वो लर्निंग लाइसेंस बनवाने गए और बाहर में खड़े दलाल ने धर लिया और आराम से लाइसेंस बनवा दिया. अब तो याद नहीं पर दोस्तों को जब नया-नया लाइसेंस मिला था को एक एक फ़ॉर्म पर कितना नोट लगा ये भी गिना देते थे. कई महानुभाव ऐसे थे जिनके पास दिल्ली, गाज़ियाबाद और बिहार के तीन लाइसेंस होते थे. कई लर्निंग स्कूल तो घर बैठे लर्निंग लाइसेंस दिला देते थे. 

हाल-फ़िलहाल में स्थिति थोड़ी कंप्यूटराइज़ हुई और दिल्ली की बात करें तो बहुत नए आरटीओ ऑफ़िस भी खुले. लोगों की मारामारी कम भी हुई. भ्रष्टाचार का हिसाब शायद थोड़ा कम हुआ हो (बहुत दिनों से किसी नए लाइसेंसधारी से बात नहीं हुई है). इन सबके बावजूद भी टेस्टिंग के लिए जो इंफ़्रास्ट्रक्चर होना चाहिए वो तो दिखता नहीं है. छोटी दूरी मे सीमित ड्राइविंग कैसे किसी की रीयल लाइफ़ टेस्टिंग हो सकती है. आजकल जिस तेज़ रफ़्तार और घने ट्रैफ़िक वाले माहौल में ड्राइविंग होती है, उसके लिए तो ड्राइवर ट्रेनिंग स्कूल तैयार नहीं कर सकते हैं. तो आख़िर स्थिति बदले कैसे ?

1. लाइसेंस बंदी ?

नोटबंदी का क्या असर हुआ है, हुआ भी है कि नहीं ये तो एक्सपर्ट भी नहीं बता पाए हैं, लेकिन उस तजुर्बे का इस्तेमाल हम देश में कुछ जान बचाने के लिए ज़रूर कर सकते हैं. लाइसेंसबंदी करके. क्या सरकार आजतक बने सभी लाइसेंस को एक चरणबद्ध तरीक़े से कैंसिल कर सकती है? ड्राइवर ट्रेनिंग मॉड्यूल को सरकार और कड़ा करे और कोशिश करे कि जो ड्राइवर एग्ज़ामिनेशन सेंटर को सरकार ने शुरू किया है और 2000 नए सेंटर बनवाने वाली है, वो जल्द बनवाए और सभी नए पुराने, कार-बस-ट्रक-मोटरसाइकिल लाइसेंसधारियों के फिर से टेस्ट लेकर नए लाइसेंस दिए जाएं. रातोंरात ना करके, साल भर में, चरणबद्द तरीक़े से. अब दुनिया भर के रेस ड्राइवर सिम्युलेटर्स में ट्रेनिंग करते हैं. ऐसे में सरकार ड्राइवरों की टेस्टिंग के लिए सिम्युलेटर्स ज़रूर लगवा सकती है. 

2. लाइसेंस-रिन्यू की समय सीमा

नए लाइसेंस को भी अनंत काल के लिए इश्यू नहीं किया जाना चाहिए. पांच-सात साल में लाइसेंस रिन्यू करने की व्यवस्था होनी चाहिए. अब देश में ट्रैफ़िक की रफ़्तार और ड्राइविंग की ज़रूरतें हर दिन बदल रही हैं. ड्राइविंग की काबिलियत भी उम्र के हिसाब से बदलती रहती है. ऐसे में ज़रूरी है कि लोगों का ड्राइविंग टेस्ट होता रहे.

3. अलग कैटगरी-अलग लाइसेंस

अब हमारा देश एंबैसेडर-प्रीमियर पद्मिनी या फिर बजाज और एलएमएल स्कूटरों का नहीं है. अब दुनिया भर की गाड़ियां भारत में आ चुकी हैं. हर तरीक़े की कारें-मोटरसाइकिलें आ गई हैं. आठ-नौ बीएचपी से लेकर हज़ार बीएचपी तक की गाड़ियां-सवारियां भारतीय सड़कों पर भाग रही हैं. ये मानने में कोई शंका नहीं हो सकती है कि सबको चलाने का अलग स्टाइल होता है, तजुर्बा होता है. तो ज़रूरी है हीरो स्प्लेंडर, केटीएम और हायाबूसा के लिए अलग लाइसेंस हों. मारुति ऑल्टो और फ़ेरारी चलाने के लिए अलग लाइसेंस हो.

4. ड्राइविंग लाइसेंस अथॉरिटी की आउटसोर्सिंग

देश में ड्राइविंग लाइसेंस का पूरा सिस्टम कितना असफल है ये किसी से छुपा नहीं है. दुनिया में सबसे ज़्यादा लोग भारतीय सड़कों पर रोड ऐक्सिडेंट में मरते हैं (जिसमें बड़ा हिस्सा ड्राइवर की ग़लती से होता है). लाइसेंस पाना इतना आसान है और ख़ुद सरकार के हिसाब से भ्रष्टाचार का बोलबाला है तो फिर एक सवाल ये उठता है कि सरकार क्यों नहीं इसे ग़ैर सरकारी हाथों में भी दे. कई ऐसी संस्थाएं हो सकती हैं जो रोड सेफ़्टी, ड्राइविंग या ट्रैफ़िक मैनेजमेंट में लगी हैं. कई प्राइवेट ड्राइवर्स ट्रेनिंग स्कूल हैं. क्यों नहीं सरकार इन्हें रजिस्ट्रेशन का मौक़ा दे और ड्राइवर लाइसेंस देने का अधिकार दे. हां साथ में ये नियम भी हो कि इन संस्थाओं द्वारा ट्रेन किए ड्राइवरों की ग़लतियों के लिए एक हद तक उनकी जवाबदेही तय हो? जब पूरी दुनिया आउटसोर्सिग में लगी है, देश में प्राइवेटाइज़ेशन का ज़ोर हो तो फिर क्यों नहीं इस मुद्दे पर भी सोचा जाए?

2015 में रोड सेफ़्टी को लेकर ब्राज़िलिया डेक्लेरेशन में भारत भी सिग्नेटरी है. भारत ने भी ऐलान किया है कि 2020 तक भारत में सड़कों पर मारे जाने वाले लोगों की संख्या को आधा करने के लिए सरकार कोशिश कर रही है. पर पिछले कुछ सालों के आंकड़ों को देखें तो दुनिया में तो सड़क हादसों में मारे जाने वाले लोगों की संख्या तो थमी है पर भारत में बढ़ ही रही है. ऐसे में अगले तीन साल में डेढ़ लाख मौत को 75 हजार पर पहुंचाना मुश्किल लग रहा है. वैसे ये भी ध्यान रहे कि रोड ऐक्सिडेंट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत ज़ोर पड़ता है. एक अनुमान के हिसाब से जीडीपी का तीन फ़ीसदी रोड ऐक्सिंडेंट में चला जाता है. तो वजहें बहुत हैं, पर लक्ष्य मुश्किल भी है. और इस मुश्किल लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार को मुश्किल क़दम उठाने होंगे.

क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...

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