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This Article is From May 28, 2017

नई मारुति डिजायर की टेस्ट ड्राइव की रिपोर्ट का किसी को इंतज़ार था क्या?

Kranti Sambhav
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 28, 2017 19:48 pm IST
    • Published On मई 28, 2017 17:59 pm IST
    • Last Updated On मई 28, 2017 19:48 pm IST
हिंदुस्तानी ग्राहक एक जूते का फीता भी ख़रीदते हैं तो सोसाइटी के वाचमैन से लेकर अपने फ़ैमिली डॉक्टर तक से सलाह ले लेते हैं कि कौन से ब्रांड का ख़रीदा जाए. कौन से मार्केट में पौने सात रुपए की छूट मिल सकती है. तो ऐसे में गाड़ियां तो बड़ी चीज़ हैं. लाखों का वारा न्यारा होता है. पहले के ज़माने में पीएफ़ का पूरा पैसा लग जाता था, आजकल बैंक का इंटरेस्ट रेट रहता है. ऐसे में कोई गाड़ियों की ख़रीद आईपीएल टूर्नामेंट जैसी होती है, जहां फ़ाइनल मैच से पहले पता नहीं कितने सेमी फ़ाइनल, क्वार्टर फ़ाइनल और अद्धा फ़ाइनल खेले जाते हैं. ख़ाली ओपनिंग सेरेमनी दिखती है और फिर फ़ाइनल मैच. ख़ैर, कार ख़रीदने का फ़ैसला भी इतने ही प्रोसेस और राउंड से गुज़रता है. टीवी प्रोग्राम में गाड़ियों की जानकारी छान-छान कर डिश का तार घिस दिया जाता है, यूट्यूब पर रिव्यू देख-देखकर प्रशांत महासागर में इंटरनेट के केबल को हिला दिया जाता है.

फिर बारी आती है अपनों की. परिवार, पड़ोसी, मेकैनिक के माउथ से वर्ड निकाला जाता है. वहां से बात नहीं बनती को पार्किंग वाले से भी पूछ लिया जाता है कि कौन सी कार ज़्यादा टंगा कर आती या जाती है. तो ऐसे देश में बहुत वक़्त के बाद एक ऐसी कार आई जिसे लेकर मुझे पहले दिन से ही लग रहा था कि शायद ही कोई इसके रिव्यू का इंतज़ार कर रहा होगा. एक ऐसी कार जो पहले ही एक महीने में पंद्रह हज़ार से ज़्यादा बिक रही है, 9 साल में 14 लाख के आसपास जो कार बिक चुकी हो, वो जब नए और बेहतर अवतार में आई हो तो कोई वजह नहीं है कि ग्राहक शक करेंगे या इस पर सेकेंड ओपिनियन लेंगे.

मारुति की नई डिज़ायर की ये कहानी है. जिसे चलाने के लिए, टेस्ट ड्राइव के लिए जब मैं गोवा पहुंचा था तो उससे पहले ही चालीस हज़ार से ज़्यादा डिज़ायर कारों की बुकिंग मारुति के पास पहुंच चुकी थी. टेस्ट ड्राइव ख़त्म करके वापस आया तो सुना कि 44 हज़ार बुकिंग हो चुकी थी. हालांकि ज़रूरी नहीं कि जो बुकिंग कराई गई हो वो सभी कार ख़रीदने पहुंचेंगे ही. पर ये तो तय था कि ये वो कार थी जिसके बारे में ग्राहकों में कोई ऐसी शंका या सवाल नहीं था जिसके निदान के बाद वो ख़रीदने की सोचते. कार नए प्लैटफ़ॉर्म पर तैयार हुई है, लुक पूरा नया किया गया है, पहले से ख़ूबसूरत है, बाहर से भी अंदर से भी. क़ीमत में भी इज़ाफ़ा नहीं किया गया. ऐसे में टेस्ट ड्राइव से पहले ही लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी मिल रही थी कि उन्हें इससे मतलब ही नहीं था कि कार चलती कैसी है. लोगों को लेकर कैसी चलेगी.. दोनों इंजिन विकल्पों के साथ लगे ऑटो गियर शिफ़्ट यानी ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन के अलावा कोई ऐसा पहलू नहीं था जिसको लेकर अलग से सवाल आया हो. ये वो टेस्ट ड्राइव था जिसके रिपोर्ट का इंतज़ार शायद बहुत कम को था.

हाल में बहुत कम गाड़ियों को लेकर मुझे ऐसा महसूस हुआ था कि सवाल और शंकाएं बहुत कम भेज रहे थे. जिसे ख़रीदने के लिए लोग आश्वस्त ही थे. उन गाड़ियों के लिए सेकेंड ओपिनियन की ज़रूरत होगी या नहीं. ऐसी दो गाड़ियां थीं जिन्हें लोगों ने पहले ही ख़रीदने का मन बना लिया था, रिलीज़ होने से पहले ही इन दोनों फ़िल्मों को ब्लॉकबस्टर बता दिया गया था. टोयोटा की इनोवा और फ़ॉर्चूनर को देखकर यही लग रहा था कि एक सुपरहिट प्रोडक्ट में कंपनी क्या कुछ ग़लत कर सकती है. नया वर्ज़न भी हिट ही होगा. पर वहां भी टोयोटा ने अतिउत्साह या कांफिडेंस में क़ीमतों को इतना बढ़ा दिया कि ग्राहकों को थोड़ा तो सोचने पर मजबूर कर ही दिया. क्रिस्टा के तौर पर टोयोटा ने इनोवा को तो एक अलग ही कैटगरी में डाल दिया था, वहीं फ़ोर्ड ने अपनी नई एंडेवर की क़ीमतों को कम रखकर शायद फॉर्चूनर के ग्राहकों को थोड़ी दुविधा में डाल दिया था. पर डिज़ायर में ऐसा कुछ नहीं था. क़ीमत भी पुराने वर्ज़न के बराबर ही रखी थी.

क्रांति संभव NDTV इंडिया में एसोसिएट एडिटर और एंकर हैं...

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