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ब्लॉग राइटर
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पूर्णिया में किताब दान अभियान और गाँव-गाँव में लाइब्रेरी की बात
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राहुल कुमार बिहार के पूर्णिया जिला में कुछ ऐसा ही कर रहे हैं. साल 2020 के जनवरी महीने में पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार ने एक अभियान की शुरुआत की थी- ‘अभियान किताब दान’.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- सितंबर 21, 2021 19:48 pm IST
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किसानी के संग कलम- स्याही करने वाले फणीश्वर नाथ रेणु
आज (4 मार्च) मेरे प्रिय लेखक फणीश्वर नाथ रेणु का जन्मदिन है. रेणु अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन खेत में जब भी फसल की हरियाली देखता हूं तो लगता है कि रेणु हैं, हर खेत के मोड़ पे. उन्हें हम सब आंचलिक कथाकार कहते हैं लेकिन सच यह है कि वे उस फसल की तरह बिखरे हैं जिसमें गांव-शहर सब कुछ समाया हुआ है.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- मार्च 05, 2017 10:14 am IST
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बात शौचालय की, क्योंकि सवाल 'स्वच्छता' का है...
इन दिनों गांव-घर में उत्सव का माहौल है. कुछ मौसम का प्रभाव तो कुछ नई फ़सल के कारण. किसानी समाज के पास जब कुछ पैसा आता है तो सामूहिक स्तर पर कुछ न कुछ आयोजन किए जाते हैं.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- जनवरी 29, 2017 13:18 pm IST
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किसानी में कुछ अलग : चनका रेसीडेंसी और इयान
देखते-देखते चनका रेसीडेंसी के पहले गेस्ट राइटर इयान वुलफोर्ड का एक हफ्ते का चनका प्रवास खत्म हो गया. उनके संग हम सात दिन रहे. वे चनका में ग्रामीण संस्कृति, ग्राम्य गीत और खेत-पथार को समझ-बूझ रहे थे और मैं इस रेणु साहित्य प्रेमी को समझने-बूझने में लगा था. रेणु मेरे प्रिय लेखक हैं, वे मेरे अंचल से हैं. मुझे वे पसंद हैं 'परती परिकथा' के लिए और लोकगीतों के लिए. इयान वुलफोर्ड भी रेणु साहित्य में डूबकर कुछ न कुछ खोज निकालने वालों में एक हैं.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- दिसंबर 22, 2016 00:49 am IST
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम चिट्ठी : हुजूर कभी बिना पूर्व सूचना के भी आइए!
माननीय मुख्यमंत्री जी, आप यात्रा करें लेकिन आपके लिए सबकुछ संवारा न जाए. अच्छा होगा यदि आपकी सरकार की योजनाओं के कारण सबकुछ पहले से सजा-संवरा रहे.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- दिसंबर 06, 2016 23:13 pm IST
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खेत की पाती, किसान के नाम - बेटे, हार मत मानो, लड़ो
ऐसा कम ही होता है जब माँ अपने बेटे से यह पूछे कि 'कैसे हो?' मां तो अक्सर यही पूछती है 'ख़ुश हो न! कोई दिक़्क़त नहीं है न?' लेकिन इस बार जब मुल्क में सब पैसे के लिए लाइन में लगे हैं, ठीक उस वक़्त जब तुम्हारी दिक़्क़तों को लेकर सबने चुप्पी साध ली है, तब लगा कि मां अपने बेटे का हालचाल ले, अपनी संतान को हिम्मत दे. तो इसलिए मैंने सोचा कि आज तुमसे लंबी बातें करूं.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- दिसंबर 02, 2016 20:12 pm IST
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पंजाब का पैसा और मजदूर का दर्द
हर साल धान के मौसम में बिहार से भारी संख्या में लोगबाग पंजाब की अनाज मंडियों की तरफ़ जाते हैं. जूट के बोरे में धान पैक कर ट्रक में डालने. चूंकि इसमें दिहाड़ी मज़दूरी की रक़म 400 के क़रीब है, जो बिहार से दुगनी है, तो मेहनतकश मज़दूर जनरल डिब्बे में सवार होकर पंजाब के विभिन्न इलाक़ों की मंडियों में डेरा जमा लेते हैं.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- नवंबर 20, 2016 19:09 pm IST
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नोट बंद हुआ है धान नहीं न ?
इन दिनों जब हर तरफ़ नोट के लिए अफ़रातफ़री मची है, उस परिस्थिति में नोट के बदले धान की बात करने वाले को आप बेवक़ूफ़ भी मान सकते हैं लेकिन यह भी सच है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था अभी भी समाज के हर तबके को साथ लेकर चलती है. पैसा आज भी गाँव में फ़सल के बाद ही चलकर आता है.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- नवंबर 11, 2016 00:58 am IST
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संथाल टोले के बहाने... उत्सव के महीने में गांव की बात
भागमभाग वाली जीवनशैली में संथाली बस्ती के लोगों से मिलकर मुझे हमेशा सुकून मिला है. मुझे उनकी ही बोली -बानी में रामायण सुनना अच्छा लगता है, क्योंकि वे राम-सीता की बातें तो करते हैं, लेकिन इन सबके संग धरती मैया के बारे में जो वे बताते हैं, उसमें मुझे माटी का प्रेम मिलता है.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- अक्टूबर 29, 2016 17:23 pm IST
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समाजवादी पार्टी में चाचा-भतीजा संघर्ष और महाभारत की याद...
वैसे यह कटु सत्य है कि राजनीति में पचास वर्षों से अधिक समय से सक्रिय मुलायम इस वक़्त अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. उन्हें पार्टी को बचाना है लेकिन इससे ज्यादा महत्व वे अपने परिवार की एकजुटता को बनाए रखने को दे रहे हैं.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- अक्टूबर 25, 2016 17:33 pm IST
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गुदरी माई, पीर बाबा और दुर्गा पूजा...
"मेला जा रहे हो न? घूम के आना तो बताना इस बार क्या नया देखे, और हां मेला से लौटते वक्त पीर बाबा और गुदरी माई को चादर चढ़ा आना." हीरा काका को दुर्गा पूजा के मेले से गजब का लगाव है. गांव की दुनिया में हाट-बाजार से आगे मेला एक अड्डा होता है,जहां हर उम्र के लोग जीवन में खुशी की तलाश में पहुंचते हैं. लेकिन यहां मैं हीरा काका के सवालों के जरिए स्मृति को भी खंगालना चाहूंगा.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- अक्टूबर 10, 2016 18:19 pm IST
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'मेरे हिस्से का कपड़ा तो ब्रिटिश सम्राट ने पहन रखा था' - गांधी
खेत-खलिहान और किताबों की दुनिया में रमे रहने वाले इस किसान को जिस एक शब्द में डूबने की चाहत है, वह है - 'महात्मा गांधी'. बचपन में गांधी जी हमारे पाठ्यक्रम में आए लेकिन तब इतिहास विषय को लेकर ही उन्हें समझ रहा था, या कहिए समझाया जा रहा था. लेकिन उम्र के साथ गांधी शब्द से अपनापा बढ़ता चला गया.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- अक्टूबर 03, 2016 12:57 pm IST
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धान के नाम में बहुत कुछ रक्खा है...!!
जापान में धान को प्रधानता दी जाती है. ऐसी बात नहीं है कि वहां अन्य फसलों की खेती नहीं होती है लेकिन यह बड़ी बात है कि वहां खेत का अर्थ धान के खेत से जुड़ा है. वहां धान की आराधना की बड़ी पुरानी परंपरा है.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- सितंबर 26, 2016 12:20 pm IST
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#युद्धकेविरुद्ध : क्यों हो रही है युद्ध की बात, आखिर क्यों...?
जंग की बात जब भी होती है, मन विचलित हो जाता है. कहां हम 'ग्लोबल' हो जाने की बात कर रहे हैं, बाज़ार का विस्तार कर रहे हैं, एक देश के होनहार बच्चे दूसरे मुल्क की नामचीन यूनिवर्सिटी में तालीम ले रहे हैं, कलाकार अपनी कला का वैश्विक स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं... ऐसे में सच पूछिए, युद्ध जैसे शब्द से चिढ़ होती है. मत करिए युद्ध की बात, मिलकर-बैठकर बात करिए. बातचीत से हर मसले का हल निकल सकता है, बशर्ते बातचीत गंभीर हो.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- सितंबर 25, 2016 14:33 pm IST
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हिन्दी दिवस : 'खिचड़ी' को 'चावल मिश्रित दाल' लिखने की क्या जरूरत...
कार्यालय वाली हिन्दी से इतर गांव में जो हिन्दी है उसमें अंग्रेज़ी भी देसज रंग में आपको मिल जाएगी. वैसे भी भाषा अपनी राह ख़ुद बना लेती है.
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- गिरीन्द्रनाथ झा
- सितंबर 21, 2016 15:59 pm IST