धान के नाम में बहुत कुछ रक्खा है...!!

धान के नाम में बहुत कुछ रक्खा है...!!

किसानी एक ऐसा पेशा है जिसकी कमान मौसम के हाथ है. यदि आप खेती को कंपनी की नज़र से देखेंगे तो आपको यह कहना होगा कि किसानी पेशे का सीईओ 'मौसम' ही है. आप खेत में लाख मेहनत कर लें, परिणाम मौसम के अनुसार ही होगा. इधर , पिछले कुछ दिनों से ख़ूब बारिश हो रही है. ऐसे में हम जैसे किसानी कर रहे लोग काफी परेशान हैं. दरअसल खेतों में धान की फ़सल है और इस बारिश की वजह से धान की बालियों को बहुत नुक़सान हो रहा है. हालांकि, हम यह जानते हैं कि यह सब प्रकृति के हाथ में है लेकिन जिस फ़सल को पिछले तीन महीने से हम पाल-पोस रहे थे उसे डूबते देखकर दुःख हो रहा है. ख़ैर, इन सबके बीच सब कुछ प्रकृति के हाथों सौंपकर आपका यह किसान धान शब्द से जुड़ी बातें खोजने में जुट गया है.

बाबूजी की पुरानी डायरी पलटते वक़्त पता चलता है कि पहले धान का नाम बहुत ही प्यारा हुआ करता था, मसलन 'पंकज' 'मनसुरी' , 'जया', 'चंदन', 'नाज़िर', 'पंझारी', 'बल्लम', 'रामदुलारी', 'पाखर', 'बिरनफूल' , 'सुज़ाता', 'कनकजीर' , 'कलमदान' , 'श्याम-जीर', 'विष्णुभोग' आदि. लेकिन नब्बे के दशक से अचानक ये नाम गुम हो गए और इनकी जगह बना हायब्रिड नस्ल के धान के बीज का बाज़ार जिसे अंकों में पहचाना जाने लगा, जैसे 1121 बासमती, 729, 1010 आदि. लेकिन जब मैं धान को लेकर जानकारी इकट्ठा करने लगा तो पता चला कि जापान की दो प्रमुख कम्पनियां होंडा और टोयोटा का अर्थ धान होता है. होंडा का मतलब मुख्य धान खेत और टोयोटा का मतलब बम्पर फसल वाला धान खेत. जापान में एक हवाई अड्डा है- नरीटा, इसका अर्थ है लहलहाता धान खेत. सच पूछिए तो एक किसान के तौर पर मुझे जापान पर नाज़ होने लगा है. एक मुल्क ने अपनी प्रमुख कम्पनियों, हवाई अड्डों आदि का नाम फ़सलों पर रख रहा है और एक हमलोग है जो धान के नाम को  बदलने में लगे हैं.  

गूगल करिएगा तो पता चलेगा कि दुनिया का 90 प्रतिशत धान एशिया में ही उगाया और खाया जाता है. धान के पौधे को हर तरह की जलवायु पसंद है. नेपाल और भूटान में 10 हजार फुट से ऊंचे पहाड़ हों या केरल में समुद्रतल से भी 10 फुट नीचे पाताल-धान दोनों जगह लहराते हैं. ऐसे में जापान ने धान और धान के खेतों की जो ब्रांडिंग की है इसपर गंभीरता से विचार करना चाहिए.

वैसे आपने कभी इस बात का पता लगाया है कि धान के नाम पर अपने देश में कोई कंपनी है या फिर कोई व्यावसायिक प्रतिष्ठान है? सारी लड़ाई अन्न को लेकर है. हम सभी अपनी ज़िंदगी सुख-चैन से जीने के लिए मेहनत करते हैं ताकि डाइनिंग टेबल पर हम भोजन कर सकें और दूसरों को भी खिला सकें लेकिन दूसरी ओर खेतों में लहलहाती फ़सलों के नाम पर क्या हम किसी कम्पनी का नाम नहीं रख सकते? या अपने घर का नाम हम धान- गेहूं- मक्का- गन्ना के उन्नत नस्लों के नाम पर नहीं रख सकते?

जापान में धान को प्रधानता दी जाती है. ऐसी बात नहीं है कि वहां अन्य फसलों की खेती नहीं होती है लेकिन यह बड़ी बात है कि वहां खेत का अर्थ धान के खेत से जुड़ा है. वहां धान की आराधना की बड़ी पुरानी परंपरा है. गूगल किया तो पता चला जापान के ग्रामीण इलाक़ों में धान-देवता इनारी का मंदिर होता ही है. जापान में एक और देवता हैं, जिनका नाम है- जीजो है. जीजो के पांव हमेशा कीचड़ में सने रहते हैं. कहते हैं कि एक बार जीजो का एक भक्त बीमार पड़ गया, भगवान अपने भक्तों का खूब ध्यान रखते थे. उसके खेत में जीजो देवता रात भर काम करते रहे तभी से उनके पांव कीचड़ में सने रहने लगे. इन कहानियों को पढ़कर अहसास होता है बाहर के मुल्कों में फसलों के कितना स्नेह देते हैं.

हम भी धान को कम स्नेह नहीं देते. हमारे यहां तो धान को बेटी का दर्जा प्राप्त है. धान हमारे घर में ख़ुशहाली लाती है. बौद्ध  साहित्य से पता चलता है कि गौतम बुद्ध के पिता का नाम था- शुद्धोदन यानी शुद्ध चावल. वट वृक्ष के नीचे तप में लीन गौतम बुद्ध ने एक वन-कन्या सुजाता के हाथ से खीर खाने के बाद बोध प्राप्त किया और बुद्ध कहलाए. इस कहानी को पढ़कर लगता है शायद इसी वजह से 70 के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ इलाक़ों में एक पुरानी नस्ल की धान का नाम 'सुज़ाता' होगा. इस धान का चावल बहुत ही सुगन्धित हुआ करता था.

यह सब गूगल और गाम के लोगों के बातचीत के आधार पर लिख रहा हूं.  हमारे गांव के भोला ऋषि बताते हैं कि पहले हर कोई गांव में धान को लेकर गर्व करता था. हमारे यहां इस तरह का धान होता है तो हमारे यहां इतना सुंदर...तब लोग एक दूसरे को खेत और अनाज के ज़रिये भी जाना करते थे. भोला ने बातचीत में धीमे से बताया- हम सब वैसे रोज ही मोटा चावल खाते हैं लेकिन मेहमान को महीन चावल खिलाते हैं, एकदम कनकजीर! "

आज जापान के नाम से धान के जुड़े होने की जानकारी इकट्ठा करते हुए लगा कि हमारे पास भी धान को लेकर कितनी सारी कहानियां हैं, कितने प्यारे- प्यारे नाम हैं. काश, यहां भी कोई बड़ी कम्पनी धान के नाम पर खुलती! मंत्रालयों का नामकरण जब भी होता है तो जी करता है प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखूं कि मंत्रालय न सही लुटियंस ज़ोन स्थित मंत्रियों, सांसदों के कोठियों का नाम वे फ़सलों के सुंदर सुंदर प्रजातियों पर रख दें, आख़िर सरकार ही तो कहती है - 'भारत एक कृषि प्रधान देश है.'

गिरींद्रनाथ झा किसान हैं और खुद को कलम-स्याही का प्रेमी बताते हैं...

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