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This Article is From Dec 02, 2016

खेत की पाती, किसान के नाम - बेटे, हार मत मानो, लड़ो

Girindranath Jha
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 02, 2016 20:12 pm IST
    • Published On दिसंबर 02, 2016 19:57 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 02, 2016 20:12 pm IST
मेरे प्यारे किसान,
ख़ुश रहो.

ऐसा कम ही होता है जब माँ अपने बेटे से यह पूछे कि 'कैसे हो?' मां तो अक्सर यही पूछती है 'ख़ुश हो न! कोई दिक़्क़त नहीं है न?' लेकिन इस बार जब मुल्क में सब पैसे के लिए लाइन में लगे हैं, ठीक उस वक़्त जब तुम्हारी दिक़्क़तों को लेकर सबने चुप्पी साध ली है, तब लगा कि मां अपने बेटे का हालचाल ले, अपनी संतान को हिम्मत दे. तो इसलिए मैंने सोचा कि आज तुमसे लंबी बातें करूं.

बेटे, मुझे पता है इस बार तुम अपनी खेती से घर नहीं चला पाओगे, मुझे पता है कि तुमने पैसे के अभाव में इस बार जुताई भी ठीक ढंग से नहीं की है. मुनाफ़े की बात मैं नहीं करूंगी, क्योंकि मुझे पता है कि किसान को उतना ही पैसा मिलता है जितना उसने मुझमें (खेत) लगाया, वह भी यदि मौसम साथ दे तो. मुनाफ़े का खाता तो किसी और के पास है. मैं उस 'और' की बात नहीं करूंगी, आज तो बस तुम्हारी बात करूंगी.

माना कि पैसे के अभाव में तुम्हारी खेती ख़राब हो रही है लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं है न कि तुम हार मान लो. याद करो दो साल पहले जब तूफ़ान की तबाही में तुम्हारी खेती लूट गई थी. मराठवाड़ा के किसानों की पीड़ा तो तुम जानते ही हो न! बेटे, हार मत मानो, लड़ो.

इतना तो तय है कि तुम्हारा चूल्हा नहीं बुझेगा. ये अलग बात है कि इस बार आंगन-दुआर अन्न की बदौलत चहकेगा नहीं लेकिन इसका मतलब ये थोड़े है कि तुम हाथ पर हाथ रखकर केवल सोचते रहोगे. आओ, आगे आओ और नोट के लिए तड़पाने वालों को दिखा दो कि हम बिन खाद के भी अच्छी फ़सल उगा सकते हैं.

मुझे पता है कि मुल्क के हुज़ूर ने बिना तैयारी के बड़े नोटों पर रोक लगा दी लेकिन ये भी सोचो कि किसानों की राय लेकर किस सरकार ने कोई बड़ा क़दम उठाया है ?

बेटे, तुम लोग हमेशा से ठगे गए हो और इस बार भी ऐसा ही हुआ है. 'जय जवान- जय किसान' का नारा बस ठगने के लिए है. ऐसे में तुम सबको अपने लिए ख़ुद ही रास्ता बनाना होगा. ये सच है कि सरकार और बाज़ार ही सबकुछ तय करती है लेकिन यह जान लो, तुम्हारे बिना न सरकार हो सकती है और न ही बाज़ार सज पाएगी. ऐसे में अब तुम सब ही तय करो कि खेती किसके लिए करना है!

तुम्हारी,
धरती मां

गिरीन्द्रनाथ झा किसान हैं और खुद को कलम-स्याही का प्रेमी बताते हैं...

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