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This Article is From Sep 14, 2016

हिन्दी दिवस : 'खिचड़ी' को 'चावल मिश्रित दाल' लिखने की क्या जरूरत...

Girindranath Jha
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 21, 2016 15:59 pm IST
    • Published On सितंबर 14, 2016 09:20 am IST
    • Last Updated On सितंबर 21, 2016 15:59 pm IST
उत्तर बिहार के अधिकांश इलाक़ों में पिछले कुछ दिनों से लगातार बारिश हो रही है, जिसका असर धान के खेतों में  दिखने लगा है. धान में बालियां आ गईं हैं और यही वक़्त होता है जब उसे पानी की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है. दोपहर बाद जब बारिश रुकी तो खेतों में लगी फ़सलों को देखने निकल पड़ा. रास्ते में गांव के सबसे मेहनती किसान राजेश से मुलाक़ात होती है. हाल-चाल के बाद राजेश जेब से मोबाइल निकालते हुए पूछता है - भाई जी, बारिश की वजह से मोबाइल का टावर ग़ायब हो गया है क्या? ज़रा देखिए तो, नेटवर्क सर्च करते हैं न तब नो सर्विस डिस्पले होने लगता है.

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पहले तो मैंने तत्काल राजेश के सवालों का हल निकाल दिया फिर सोचने लगा कि कितनी आसानी से तकनीक ने आख़िर एक निरक्षर इंसान को साक्षर बना ही दिया. तकनीक ने उसे ऐसी हिन्दी और अंग्रेजी सिखा दी, जिसकी बदौलत वह बाज़ार की भाषा समझने लगा है. आप देखिए न एक ही वाक्य में राजेश ने किस तरह हिन्दी के संग अंग्रेज़ी के शब्दों को शामिल कर अपनी बात रख दी, वो भी आत्मविश्वास के साथ.  आज जब हर तरफ हिन्दी दिवस की बातें हो रही है तो ऐसे में आपका यह किसान जिसे खेत के संग क़लम -स्याही से भी मोहब्बत है, आपसे गांव- घर की बोली-बानी में हिन्दी के नए प्रयोगों पर बात करने बैठा है. मैं उन मसलों पर बात करना चाहता हूं जिसे आपलोगों ने अपने हिन्दी दिवस के साप्ताहिक कार्यक्रम के 'हिन्दी नेटवर्क' से बाहर कर दिया है.
 

गांव के विद्यालयों में 'मिड डे मील' का जो बोर्ड लगा रहता है, उसकी हिन्दी से आपको परिचित करवाने की इच्छा है. महानगरों में तो आप सभी बड़े बड़े बैनरों या फिर सरकारी दफ़्तरों के तथाकथित हिन्दी पखवाड़े से संबंधित वाक्यों में ग़लती तो खोजते ही हैं लेकिन मुझे यहां ' मिड डे मील' के स्थायी बोर्ड की हिन्दी रुला देती है. बस एक शब्द से ही आप मेरी बात समझ जाएंगे और वह शब्द है- 'चावल मिश्रित दाल'. अब ज़रा सोचिए इस शब्द के बारे में. मिड डे मील से जुड़ी एक शिक्षिका ने बताया की इस शब्द का अर्थ है : 'खिचड़ी'. मैं सोचने लगा आख़िर खिचड़ी लिखने में क्या दिक़्क़त है.

ख़ैर, सरकारी बोर्ड की भाषायी कहानी ज़्यादा न खिंचकर अब गाम-घर की बोली- बानी की बात सुनाता हूं. गांव की बोली में हिन्दी के सरलीकरण से उपजे एक शब्द की कहानी मेरे पास है. खेती की दुनिया में शामिल होने के दौरान जब कदंब के पौधे लगा रहा था तब गाम के विष्णुदेव काका ने पूछा- 'क्या गाम को बनभाग बनाने का इरादा है?' बाद में पता चला कि काका ने ' वन विभाग' के लिए नया शब्द खोजा है- 'बनभाग'. काका ने पहले तो जंगल को लेकर तंज कसा लेकिन इसके साथ उन्होंने जो बात कही, उसमें आपको हिन्दी की ख़ूबसूरती मिलेगी. काका ने कहा- 'बनभाग बसने के बाद गाम की शोभा बढ़ जाएगी मुन्ना.' सचमुच 'शोभा' शब्द जिसमें जुड़ जाए उस वाक्य की सुंदरता बढ़ ही जाती है.

मेरे प्रिय लेखक फणीश्वर नाथ रेणु का एक संस्मरण है, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे एक सरकारी अधिकारी को उनके गांव में एक नया शब्द मिला. तो होता यह है कि एक बार रेणु के गांव एक अधिकारी जीप से आते हैं. खेत में एक किसान को मड़ुआ (रागी) रोपते देख अधिकारी ने उससे पूछा- धान छोड़कर मड़ुआ क्यों रोपते हो? उस किसान का जवाब बड़ा मज़ेदार था, उसने कहा 'साहेब आपकी गाड़ी तो चार ही पहिए पर चलती है न! फिर यह पांचवां पहिया पीछे क्यों लगा है? जैसे आपका यह पांचवां पहिया वैसे ही हमारे लिए मड़ुआ! धान नहीं हुआ तो मड़ुआ तो होगा ही.' रेणु लिखते हैं कि उस अधिकारी ने तुरंत मड़ुआ के लिए एक नया शब्द इजाद कर दिया- ' स्टेपनी क्रॉप'. आज भी हमारे गांव में निरक्षर किसान भी आपसी बातचीत में इस अंग्रेज़ी शब्द का इस्तेमाल करता है.

कार्यालय वाली हिन्दी से इतर मेरे गांव में जो हिन्दी है उसमें अंग्रेज़ी भी देसज रंग में आपको मिल जाएगी. मैं इसके ख़िलाफ़ एकदम नहीं हूं. भाषा अपनी राह ख़ुद बना लेती है. मसलन जब गांव में किसी से अनबन होता है तो एक ही शब्द का इस्तेमाल होता है- 'कनटेस'.  जैसे इन दिनों इस्माइल चाचा का अकरम चाचा के साथ कनटेस ( कॉन्टेस्ट) चलता है, ऐसे में गोपाल किसका 'सपोट' (सपोर्ट) करेगा? जहां तक होगा इस्माइल चाचा का 'प्रोटेस' (प्रोटेस्ट) ही करेगा. दरअसल गांव के हर टोले में ऐसा एक आदमी ज़रूर होता है जो अपने समय  के अनुसार एक नया शब्द गढ़ लेता है.

हिन्दी की बातें करते हुए आपका यह किसान जाने किस मोड़ पर भटक गया पता भी नहीं चला. तो हिन्दी दिवस के मौके पर किसी गांव का कार्यक्रम बनाइए और यक़ीन मानिए जब लौटकर शहर आइएगा तो आपके पास मुस्कुराने के लिए ढ़ेर सारे शब्द और एक से बढ़कर एक कहानियां होंगी. लेकिन इसके लिए पहले आपको मुखौटा उतारना होगा. दरअसल, भागमभाग जिंदगी में हम सब मुखौटा लिये भागते रहते हैं. तो चलिए आप भी हमारे साथ गाम घर और वहां करते हैं अपने मन की, आज की हिन्दी की बात.

गिरींद्रनाथ झा एक किसान हैं और खुद को कलम - स्याही के प्रेमी बताते हैं.

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