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सीमा ठाकुर

सब एडिटर

अपने नाम से बिल्कुल विपरीत मेरी कोई सीमा नहीं है. पढ़ने के शौक के अलावा, कला को प्रकट करने के लिए कागज़ पर लिखना और चित्र उकेरना दोनों पसंद हैं. जिस दिन फैज़ की नज़्म 'बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे, बोल ज़बां अबतक तेरी है,' ज़िन्दगी में उतार लूंगी उस दिन अपना परिचय पत्रकार के रूप में देना शुरू कर दूंगी, लेकिन तब तक सिर्फ कलाप्रेमी. 

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