
- मुख्यमंत्री कमलनाथ ने केंद्र सरकार को भी राइट-टू-वॉटर का मॉडल सौंपा
- सीएम ने पानी का अधिकार पूरे देश में लागू करने की वकालत की
- निश्चित पैमाने तक पानी की आपूर्ति न होने पर दंड का प्रावधान
मध्यप्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य होगा, जो पानी के अधिकार (Right to Water) की शुरुआत करने जा रहा है. पानी का अधिकार कानून बनाने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन हो रहा है जिसमें विषय-विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और कानून विशेषज्ञों के सुझावों पर मंथन किया जा रहा है. जनता की भागीदारी सुनिश्चित कर इसे कानून का रूप देने की योजना है.
मुख्यमंत्री कमलनाथ (CM Kamal Nath) केंद्र सरकार को भी राइट-टू-वॉटर (Right to Water) का मॉडल देकर आए हैं. प्रदेश के साथ इसे पूरे देश में लागू करने की वकालत की गई है. देश के अलग-अलग हिस्सों की तरह मध्यप्रदेश में भी पानी के लिए परेशानी आम बात है. लोगों को हर दिन बस एक बाल्टी पानी के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती है. इससे निबटने के लिए मध्यप्रदेश सरकार पानी का अधिकार यानी राइट टू वाटर कानून बनाने पर मंथन कर रही है. जिसके तहत न्यूनतम पानी की आपूर्ति अनिवार्य की जाएगी. इसके अलावा एक निश्चित पैमाने तक पानी की आपूर्ति न होने पर दंडात्मक प्रावधान भी किए जा सकते हैं. इसमें अफसरों की जवाबदेही तय होगी.
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी यानी पीएचई विभाग के मंत्री सुखदेव पांसे ने कहा क्यों न बीजेपी की सरकार का दूसरा कार्यकाल शुरू हो रहा है, पानी का अधिकार देना चाहिए. जो अधिकार इस देश-प्रदेश की जनता को पहले मिलना चाहिए था आज जब विकराल रूप ले लिया है तब तो कम से पानी का अधिकार देना चाहिए. उन्होंने कहा कि 'राइट टू वॉटर'' (Right to Water) मात्र सरकार का कानून नहीं होगा, वरन इसमें आम जनता की भागीदारी भी होगी. जनता की भागीदारी से कानून बनाया जाएगा. उन्होंने पानी की बचत करने एवं भू-जल भंडार बढ़ाने के नए तरीकों पर विचार करने का आह्वान भी किया.
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पानी के अधिकार (Right to Water) पर मंथन में शामिल होने आए सामाजिक कार्यकर्ता इसमें कुछ और बातें जोड़ रहे हैं. सुविख्यात जल शास्त्री राजेन्द्र सिंह ने कहा ''पहला काम मध्यप्रदेश की वॉटर बॉडी की जमीन सिर्फ वॉटर बाडी के लिए रहे. मध्यप्रदेश में भूजल का भंडार भरना, रिचॉर्ज और डिस्चार्ज का संतुलन बनाना, फसल चक्र को वर्षा चक्र के साथ जोड़ना जरूरी है. किसानी, जवानी, और पानी बचाने के लिए जो वाटर राइट एक्ट की शुरुआत की है, मैं इसके लिए बधाई देता हूं.''
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मध्यप्रदेश जैसे राज्य में राइट टू वाटर (Right to Water) की ज़रूरत इसलिए भी है क्योंकि आज की तारीख में राज्य के 378 नगरीय निकायों में से कुछ ही रोज पानी दे पा रहे हैं. 120 नगरीय निकाय बुरी तरह प्यासे हैं जहां पर दिन में एक बार पानी दिया जा रहा है तो 100 निकायों में एक एक दिन छोड़कर पानी जनता को मिल रहा है. 25 निकायों में दो दिन छोड़कर पानी दिया जा रहा है. राज्य में 83 जलाशय सूख चुके हैं और 22 जिलों में भू-जलस्तर 63.25 फीसद गिर चुका है. प्रदेश के 36 जिलों के 4000 गांव सूखे की कगार पर हैं. वहीं 197 निकायों में ही पेयजल योजना पूरी हुई है, 181 निकायों में पेयजल योजना अधूरी है. गांवों में 15787 नल-जल योजनाएं हैं जिसमें से 1450 नल-जल योजनाएं पूर्णत: बंद हैं. 600 योजनाएं भू-जलस्तर गिरने से बंद हो चुकी हैं.

इस योजना से सरकार सुनिश्चित करेगी कि प्रदेश के हर परिवार को हर दिन कम से कम 55 लीटर पानी मिले. हालांकि लोग कहते हैं ये कम है. भोपाल के कोलार रोड में रहने वाले सगीर कहते हैं, कुछ समझ नहीं आया साहब, सरकार ने क्या सोचकर 55 लीटर बनाया है? एक परिवार में 500 लीटर पानी लग जाता है. वहीं गीता बाई ने कहा 55 लीटर में क्या होगा, पीने नहाने धोने के लिए कम से कम 200 लीटर पानी चाहिए. वहीं आशा ने कहा नहाना, कपड़े धोना है, बहुत पानी लग जाता है, हर काम पानी से होता है.
इस योजना के पूरा होने में लगभग 7-8 साल लगेंगे, जिस पर 65000 करोड़ का खर्च अनुमानित है. फिर भी यह ज़रूरी है क्योंकि देश में लगभग 9.7 करोड़ लोगों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं होता. गांवों में लगभग 70 प्रतिशत लोग अब भी प्रदूषित पानी पीने को ही मजबूर हैं. दुनिया की कुल आबादी में भारत का हिस्सा 18 फीसद है, लेकिन पानी के संसाधनों में सिर्फ चार प्रतिशत. यही हाल रहा ता 2040 तक लोगों की प्यास बुझाने के लिए शायद ही पानी बचे.
VIDEO : देश भर में पानी का संकट
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