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    शिक्षा में न मूल्यों का आधार, न शिक्षा के बाद रोज़गार, स्टूडेंट आखिर जाए तो कहां जाए?

    छात्रों का उत्पीड़न उसके प्रारंभिक समय से ही शुरू हो जाता है. निजी स्कूलों की लूट से त्रस्त अभिभावक अपने बच्चों से अपनी लागत का परिणाम चाहता है. परिणाम न मिलने पर अपनी खीझ किसी न किसी रूप में बच्चों से भी निकालता है.

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