इस कोविडकाल (Coronavirus) में सबसे बड़ी परेशानी बनकर उभरी है मानसिक तनाव (Mental Stress) की समस्या. और तनाव का सबसे बड़ा कारण है आर्थिक दबाव. बीएमसी (BMC) के पोस्ट कोविड ओपीडी में एक अस्पताल में क़रीब 40 नए मरीज़ रोज़ाना पहुंच रहे हैं. एक्स्पर्ट बताते हैं कि संक्रमण के बाद कुछ के दिमाग़ में मूड-नींद को नियंत्रित करने वाले हार्मोन—‘सिरोटोनिन' की मात्रा कम हो रही है, जिससे लोग डिप्रेशन-ऐंज़ाइयटी (Depression Anxiety) का शिकार हो रहे हैं.
कोविड के साथ साथ बीएमसी अस्पताल मानसिक तनाव को कम करने की मुहिम भी चला रहे हैं. पोस्ट कोविड वॉर्ड में दिमाग़ी समस्या से जुड़े मरीज़ भर्ती हो रहे हैं. तो लगभग सभी अस्पताल मेंटल हेल्थ की 24X7 हेल्पलाइन (Mental Health Helpline) चला रहे हैं.
बीएमसी के सायन अस्पताल में दिमाग़ी परेशानी के साथ एक दिन में क़रीब 40 मरीज़ यहां पहुंचते हैं. डॉक्टर बताते हैं कि संक्रमण के बाद कुछ मरीज़ों के दिमाग़ में सिरोटोनिन हार्मोन की मात्रा कम हो जाती है. सिरोटोनिन मूड, भूख, नींद याददाश्त संबंधी कार्यों को नियंत्रित करता है. इसकी मात्रा कम होने से कई, नींद की समस्या-डिप्रेशन-मायूसी का शिकार हो रहे हैं.
एक मरीज के पिता डेविड ऐल्फ़ॉन्सो ने कहा, ''मेरे बेटे का इलाज चल रहा है, ये देखिए 21 अगस्त से बीमार है. इलाज चालू है, इनको नींद का डिसॉर्डर है, डॉक्टर बोल रहे हैं थोड़े दिन में रिकवरी हो जाएगा.''
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सायन हॉस्पिटल के मनोचिकित्सक निलेश शाह कहते हैं, ''हमारे पास रोज़ 30-40 मरीज़ दिमाग़ी परेशानी के साथ नए मरीज़ आते हैं, 200-300 पुराने मरीज़ फ़ॉलोअप के लिए आते हैं. सबसे कॉमन शिकायत है ऐंज़ाइयटी और डिप्रेशन. 30 में से 15 मरीज़ डिप्रेशन के शिकार हैं. क्या होता है कि हमारे ब्रेन में सीरोटोनिन (Serotonin) नाम का केमिकल होता है जो हमारे मूड को कंट्रोल करता है, लेकिन बीमारी के बाद कुछ मरीज़ों में सीरोटोनिन की मात्रा कम होने लगती है. इसकी मात्रा ठीक हो तो हम खुश रहते हैं, तनाव सहन करने की क्षमता होती है. इसकी मात्रा कम होने से ख़ुशी महसूस नहीं होती, नींद नहीं आती, भूख नहीं लगती, मायूसी आती है, ग़लत विचार आते हैं कि ज़िंदा रहने का क्या फ़ायदा ये सब सीरोटोनिन के कम होने से होता है.''
कोविड के कारण तनाव के कई रूप दिख रहे हैं, सबसे बड़ी परेशानी बनकर उभरी है आर्थिक समस्या. सायन अस्पताल के डीन मोहन जोशी कहते हैं, ''हमारे पास माइल्ड डिप्रेशन के कई मरीज़ हैं. पोस्ट कोविड ओपीडी में इलाज चल रहा है. सबसे बड़ा कारण है आर्थिक समस्या, निजी सेक्टर में काम करने वाले ज़्यादा तनाव में हैं.''
केईएम अस्पताल में मानसिक स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख डॉ. अजिता नायक के अनुसार, ''जब महामारी शुरू हुई थी तो लोगों को लगा कि ये जल्द ख़त्म होगा. अब 18 महीने बाद भी लोगों को पता नहीं है कि क्या होने वाला है. इसलिए लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है. आर्थिक परेशानियों से कई लोग गुजर रहे हैं, कई छात्रों से स्टूडेंट लोन लिया है और उनके पास नौकरी नहीं है. इसके साथ ही लोगों ने कोविड के इलाज पर बहुत खर्चा किया है, रिश्तेदारों के इलाज पर खर्चा किया है. इन सबके कारण ऐंज़ाइयटी लेवल लोगों में बढ़ा दिख रहा है.''
इस बीच, कोविड हॉस्पिटल सेवन हिल्स के हालिया सर्वे में पता चला है कि इस साल जनवरी से लेकर जुलाई तक यहाँ भर्ती 7% कोविड मरीज़ मानसिक तनाव का शिकार हुए, इनमें से 23% लोग डिप्रेशन तो 20% ऐंज़ाइयटी से गुज़रे.
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