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जगदीप धनखड़ के बाद सीपी राधाकृष्णन... उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी में BJP ने कैसे लिया यूटर्न

इस बार भाजपा ने ऐसा नेता चुना है जिसकी शख्सियत संवैधानिक पद के लिए बेहतर मानी जा रही है.

जगदीप धनखड़ के बाद सीपी राधाकृष्णन... उप राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी में BJP ने कैसे लिया यूटर्न
  • बीजेपी ने उपराष्ट्रपति के पद के लिए सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया है
  • राधाकृष्णन के चयन को राजनीति के जानकार एक रणनीतिक कदम के तौर पर देख रहे हैं
  • राधाकृष्णन आरएसएस से जुड़े रहे हैं और उनका व्यक्तित्व संयमी रहा है
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नई दिल्ली:

लगभग ढाई साल तक उपराष्ट्रपति रहे जगदीप धनखड़ पर विपक्ष का आरोप रहा कि उन्होंने इस संवैधानिक पद की निष्पक्षता को खत्म कर दिया. अब बीजेपी ने उनके बाद जिस नेता को चुना है, वह हर मायने में उनसे अलग माने जा रहे हैं. सीपी राधाकृष्णन को रणनीतिक और पूरे दक्षिण भारत में स्वीकार्य चेहरा माना जा रहा है. वे मूल रूप से जनसंघ से जुड़े नेता हैं, जबकि धनखड़ को एक "जाट पहचान" और बाहरी चेहरे के तौर पर देखा गया. राधाकृष्णन का व्यक्तित्व संयमी और समावेशी माना जाता है, जबकि धनखड़ अक्सर तेज-तर्रार बयानों के लिए पहचाने जाते थे.

क्या बीजेपी के सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा हैं राधाकृष्णन?

धनखड़ को 2022 में उस समय चुना गया था जब जाट आंदोलन चल रहा था. उस फैसले से यह सीधा संदेश माना जा रहा था कि धनखड़ को लाकर बीजेपी ने जाट समाज को बांधने की कोशिश की है.  लेकिन इस बार राधाकृष्णन का चयन भाजपा की ओबीसी सोशल इंजीनियरिंग और दक्षिण भारत में विस्तार की रणनीति का हिस्सा है. जहां कर्नाटक को छोड़कर पार्टी को अब तक पांव जमाने में मुश्किल आई है.

राधाकृष्णन तमिलनाडु में मुखर रहे हैं, उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म संबंधी बयान पर उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया दी थी. महाराष्ट्र में गवर्नर के तौर पर भी उन्होंने बेहतर काम किया है.  धनखड़ उपराष्ट्रपति बनने से पहले मुखर नेता रहे थे. बंगाल के राज्यपाल रहते हुए उनकी ममता बनर्जी सरकार से लगातार टकराहट सुर्खियों में रही थी. इसी अंदाज की वजह से उन्हें राज्यसभा भेजा गया था. लेकिन धीरे-धीरे वे विपक्ष की नजर में पक्षपाती उपराष्ट्रपति बन गए.

इस बार भाजपा ने ऐसा नेता चुना है जिसकी शख्सियत संवैधानिक पद के लिए बेहतर मानी जा रही है. संदेश साफ है कि राज्यसभा को अब टकराव नहीं, बल्कि संतुलन चाहिए.

 धनखड़ की तुलना में आरएसएस के अधिक करीबी हैं राधाकृष्णन

राधाकृष्णन की आरएसएस से वैचारिक नज़दीकी भी धनखड़ से कहीं अधिक है. धनखड़ का बैकग्राउंड कानूनी और राजनीतिक रहा, लेकिन उनकी संघ से कोई गहरी पृष्ठभूमि नहीं थी. वे व्यावहारिक राजनीतिक चयन थे, वैचारिक नहीं. इसके उलट, राधाकृष्णन 17 साल की उम्र से संघ और जनसंघ से जुड़े रहे हैं.

राज्यसभा अध्यक्ष के तौर पर धनखड़ कानूनी तर्क, तीखे हस्तक्षेप और टकराव वाली राजनीति के लिए जाने जाते रहे. इससे सहमति बनाना मुश्किल होता था. इसके विपरीत, माना जा रहा है कि राधाकृष्णन की शांत स्वभाव वाली कार्यशैली संसद के सुचारु संचालन में मददगार होगी.

राधाकृष्णन को बड़ा दांव मान रहे हैं जानकार

राधाकृष्णन पर कोई राजनीतिक दबाव नहीं रहा है और उन्हें सर्वसम्मति का उम्मीदवार भी माना जा सकता है. जहां धनखड़ की राजनीति को जाति और क्षेत्र तक सीमित करने वाला चेहरा समझा गया, वहीं राधाकृष्णन को समावेशी और राष्ट्रीय दृष्टिकोण वाला चेहरा बताया जा रहा है.

धनखड़ ने मौजूदा संसद सत्र के पहले दिन ही इस्तीफा दे दिया था. यह तब हुआ जब उन्होंने विपक्ष द्वारा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के महाभियोग प्रस्ताव को बिना सरकार को बताए स्वीकार कर लिया. उन्होंने आधिकारिक तौर पर कहा कि उनका इस्तीफा स्वास्थ्य कारणों से है. लेकिन बाद में NDTV ने खुलासा किया कि कई घटनाओं की एक कड़ी ने उनके अचानक इस्तीफे की भूमिका बनाई, बावजूद इसके कि धनखड़ ने सत्ता पक्ष के प्रति अपनी वफादारी कई बार साबित की थी.

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