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This Article is From May 23, 2024

क्या आपके बच्चे को भी आता है ज्यादा गुस्सा? जानिए कही वो एडीएचडी से पीड़ित तो नहीं- स्टडी

आज के समय में बच्चों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है. कई बार उन पर ध्यान न देना उनको गंभीर बीमारियों की चपेट में ला सकता है. बीते कुछ समय में देश में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसके चलते कई कम उम्र के बच्चों में हिंसक व्यवहार देखा गया है. इसकी वजह क्या है, जानिए यहां.

क्या आपके बच्चे को भी आता है ज्यादा गुस्सा? जानिए कही वो एडीएचडी से पीड़ित तो नहीं- स्टडी
बच्चे को ज्यादा गुस्सा क्यों आता है.

Violent Behavior in Children: आज के समय में बच्चों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है. कई बार उन पर ध्यान न देना उनको गंभीर बीमारियों की चपेट में ला सकता है. बीते कुछ समय में देश में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसके चलते कई कम उम्र के बच्चों में हिंसक व्यवहार देखा गया है. एक शोध में यह बात सामने आई है कि बिहेवियर कंट्रोल, फीलिंग्स और कम्यूनिकेशन के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क का एक छोटा भाग यह जानने में मदद करता है कि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (एडीएचडी) से पीड़ित दो में से एक बच्चे में स्ट्रेस, चिंता और हिंसक व्यवहार की संभावना क्यों होती है.

एडीएचडी 18 वर्ष से कम उम्र के 14 युवाओं में से लगभग एक को प्रभावित करता है और इनमें से लगभग आधे मामलों में यह बाद तक बना रहता है. एडीएचडी वाले बच्चों में अपनी फीलिंग्स को शेयर न कर पाने के कारण उनमें स्ट्रेस, चिंता और बात करने में या फिर फिजिकली हिंसक व्यवहार संबंधी डिसऑर्डर देखे जा सकते हैं.

अध्ययन में शंघाई, चीन में फुडन विश्‍वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्‍वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया कि पार्स ऑर्बिटलिस (मस्तिष्क क्षेत्र) के कारण इनमें इमोशनल विकृति स्वतंत्र रूप से होती है.

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कैम्ब्रिज विश्‍वविद्यालय में मनोचिकित्सा विभाग से बारबरा सहकियान ने कहा, ''पार्स ऑर्बिटलिस मस्तिष्क का एक हिस्सा है और यदि यह ठीक से विकसित नहीं हुआ है तो इससे व्यक्तियों के लिए अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना और विशेष रूप से सामाजिक स्थितियों में दूसरों के साथ उचित रूप से संवाद करना मुश्किल हो सकता है.''

नेचर मेंटल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के लिए टीम ने एडीएचडी के उच्च लक्षणों वाले 350 व्यक्तियों की पहचान की और पाया कि आधे से ज्यादा (51.4 फीसदी) में इमोशनल विकृति के लक्षण थे और यह संज्ञानात्मक और प्रेरक समस्याओं से स्वतंत्र था. केवल कम एडीएचडी लक्षण वाले, लेकिन 13 वर्ष की आयु में भावनात्मक विकृति के उच्च स्कोर वाले बच्चों में 14 वर्ष की आयु तक उच्च-एडीएचडी लक्षण विकसित होने की संभावना 2.85 गुना अधिक थी.

मस्तिष्क इमेजिंग डेटा का उपयोग करके उन्होंने पाया कि एडीएचडी और भावनात्मक समस्याओं से जूझ रहे बच्चों में पार्स ऑर्बिटलिस (मस्तिष्क क्षेत्र) छोटा था. शोध से यह भी पता चला कि इस स्थिति में राहत के लिए आमतौर पर दी जाने वाली दवा रिटालिन इस लक्षण के इलाज में कम प्रभावी प्रतीत होती है.

सहकियन ने कहा कि भावनात्मक विकृति को एडीएचडी के एक प्रमुख भाग के रूप में जोड़ने से लोगों को बच्चे द्वारा अनुभव की जा रही समस्याओं को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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