ब्लड बायोमार्कर अल्जाइमर के लक्षण शुरू होने से 10 साल पहले ही लगा सकता है बीमारी का पता: अध्ययन

Alzheimer Disease: अध्ययन दावा करता है कि यह बायोमार्कर जो किसी व्यक्ति के खून में पाया जा सकता है, बीमारी के लक्षण शुरू होने से दस साल पहले ही इनका पता लगा सकता है.

ब्लड बायोमार्कर अल्जाइमर के लक्षण शुरू होने से 10 साल पहले ही लगा सकता है बीमारी का पता: अध्ययन

अध्ययन स्वीडिश परिवारों के डेटा का उपयोग करके किया गया था.

Alzheimer Disease Symptoms: हालिया अध्ययन अल्जाइमर के डायग्रोस के लिए वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले बायोमार्कर की तुलना में एक अलग बायोमार्कर का उपयोग करने का तर्क देता है. अध्ययन दावा करता है कि यह बायोमार्कर जो किसी व्यक्ति के खून में पाया जा सकता है, बीमारी के लक्षण शुरू होने से दस साल पहले ही इनका पता लगा सकता है. यह शरीर में बीमारी के लक्षणों के उभरने से पहले ही इसकी आमद को रोकने का एक अवसर प्रदान करता है. अध्ययन स्वीडिश परिवारों के डेटा का उपयोग करके किया गया था, जिन्हें ऐसा अल्जाइमर रोग था जो जेनेटिक म्यूटेशन के कारण हुआ था.

अल्जाइमर रोग से करोड़ों लोग पीड़ित!

अल्जाइमर रोग से दुनिया भर में करोड़ों लोग प्रभावित हैं, फिर भी इसका अब तक कोई इलाज नहीं है और उपचार के विकल्प भी सीमित हैं. हालांकि बीमारी का इलाज खोजने के प्रयासों में हाल में कुछ प्रोग्रेस हुई है और इस दौरान दो दवाओं को बनाने में मदद मिली है जो रोग की प्रोग्रेस में देरी कर सकते हैं.

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ऐसे में यह बताना जरूरी नहीं है कि ज्यादातर क्लिनिकल ट्रायल में इन दवाओं की प्रभावशीलता को देखते हुए लक्षणों दिखने के बाद ही उपचार शुरू होता है. इसका मतलब है कि बीमारी से नुकसान पहले ही हो चुका होता है. ऐसा माना जाता है कि अगर इलाज लक्षणों के शुरू होने से पहले किया जाता है तो इससे होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है, लेकिन समस्या यह है कि क्लिनिकल सिम्पटम्स, जो डॉक्टर अल्जाइमर रोग के रोगी के डायग्नोसिस करने के लिए देखते हैं, न्यूरोडीजेनेरेशन होने के बाद ही दिखाई देते हैं.

बच्चों में अल्जाइमर म्यूटेशन विरासत में मिलने की 50 प्रतिशत संभावना:

जबकि ऑटोसोमल डोमिनेंट अल्जाइमर डिजीज (एडीएडी) में रेडिएट अल्जाइमर रोग (अल्जाइमर का सबसे सामान्य रूप, जो जेनेटिक, लाइफस्टाइल और पर्यावरणीय कारकों का एक कॉम्बिनेशन है) के समान लक्षण होते हैं और ये लक्षण बहुत पहले ही दिखाई देते हैं. आमतौर पर किसी व्यक्ति की उम्र के 40 या 50 के दशक में. म्यूटेशन विरासत में मिलता है, अगर माता-पिता में एडीएडी है तो उनके बच्चे में म्यूटेशन विरासत में मिलने की 50 प्रतिशत संभावना होगी.

अध्ययन में तीन अलग-अलग परिवारों के 75 लोगों को शामिल किया गया, जिनका एडीएडी का इतिहास था. प्रतिभागियों ने कुल 164 ब्लड सैंम्पल दिए, सभी 1994 और 2018 के बीच एकत्र किए गए.

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अल्जाइमर रोग के लिंक वाले चार अलग-अलग ब्लड बेस्ड बायोमार्कर लेवल का विश्लेषण किया गया. बीमारी के लक्षण देखने के लिए एमआरआई इमेजिंग और कॉग्नेटिव टेस्ट जैसे अन्य टेस्ट भी किए गए. हमारी मुख्य खोज यह थी कि एक विशेष प्रोटीन लेवल जिसे जीएफएपी कहा जाता है, अध्ययन में अन्य ज्ञात रोग-संबंधी ब्लड बेस्ड बायोमार्कर के विश्लेषण से पहले बढ़ गया. यह वृद्धि अल्जाइमर रोग के पहले ध्यान देने योग्य संकेतों से दस साल पहले ही शुरू हो गई थी.

जीएफएपी एक प्रोटीन है जो ब्रेन के एस्ट्रोसाइट्स द्वारा जारी किया जाता है. यह विशेष कोशिकाएं होती हैं, जो अन्य कार्यों के साथ ब्रेन के इम्यून सिस्टम में भाग लेती हैं.

शोध से यह भी पता चला है कि जीएफएपी लेवल उन लोगों में अधिक होता है जिन्हें बिना किसी आनुवंशिक कारण के प्रीक्लिनिकल अल्जाइमर रोग होता है, जिनमें अल्जाइमर विकृति के अन्य लक्षण होते हैं लेकिन अभी तक लक्षण प्रकट नहीं हो रहे हैं. इससे पता चलता है कि निष्कर्ष अल्जाइमर रोग के अधिक सामान्य रूपों पर भी लागू हो सकते हैं. अध्ययन के परिणाम अल्जाइमर रोग की हमारी सामान्य समझ को सपोर्ट करने के लिए भी जरूरी हैं.

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हाल के अन्य निष्कर्षों के साथ यह साफ है कि जीएफएपी और ब्रेन में इसके कार्य अल्जाइमर रोग की प्रगति के बारे में और अधिक जांच की जरूरी है. शायद अल्जाइमर रोग के लिए भविष्य के उपचार अधिक सफल होंगे अगर वे ब्रेन के एस्ट्रोसाइट्स और अल्जाइमर रोग के अन्य सामान्य हॉलमार्क दोनों को टारगेट करना चाहते हैं, जैसे कि मस्तिष्क में बीटा-एमिलॉइड का ऑक्युमुलेशन.