न्यू बोर्न स्क्रीनिंग टेस्ट नवजात शिशुओं में डेवलपमेंटल, मेटाबॉलिक और जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाने में मदद करते हैं. अर्ली डिटेक्शन और डायग्नोस समय पर इलाज में मददगार साबित होते हैं और संभावित जोखिमों को रोकने या कम करने में मदद करते हैं. जन्म के 48-72 घंटे बाद न्य बोर्न बेबी की जांच की सिफारिश की जाती है. वेस्टर्न कंट्रीज में नवजात की जांच जरूरी है. हालांकि, भारतीय आबादी में जागरूकता पैदा करने की सख्त जरूरत है.
न्यू बोर्न स्क्रीनिंग का उद्देश्य नवजात शिशुओं में संभावित घातक स्थितियों का जल्द से जल्द पता लगाना है. यह तुरंत इलाज शुरू करने में मदद करता है. इन स्थितियों में से कई अगर बिना इलाज किए छोड़ दी जाती हैं, तो गंभीर लक्षण और प्रभाव दिख सकते हैं, जैसे कि आजीवन नर्वस सिस्टम डैमेज होना, बौद्धिक और शारीरिक अक्षमताएं और मृत्यु भी.
शरीर में ये 5 बदलाव बताते हैं कि आपको हाइपोथायरायडिज्म की बीमारी है!
कौन-कौन से टेस्ट किए जाने चाहिए? | Which tests should be done?
कई नवजात स्क्रीनिंग टेस्ट जो किए जाते हैं वे अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होते हैं. इनमें से कुछ सामान्य हैं:
नवजात शिशुओं की जांच करते समय इन विधियों का उपयोग किया जाता है:
ब्लड टेस्ट: यह टेस्ट शिशु की एड़ी से खून की कुछ बूंदों का उपयोग करके किया जाता है, जिसे बाद में एनालिसिस के लिए लैब में भेजा जाता है.
हियरिंग टेस्ट: डॉक्टर बच्चे के कान में एक छोटा ईयरपीस या माइक्रोफोन लगाकर यह टेस्ट करता है. एक अन्य तकनीक में सोते समय बच्चे के सिर पर इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं.
CCHD स्क्रीन: यह टेस्ट बच्चे के हाथ और पैर में ऑक्सीजन लेवल को मापने के लिए एक ऑक्सीमीटर लगाया जाता है, जिसमें बच्चे की त्वचा पर एक छोटा सा सॉफ्ट सेंसर शामिल होता है और कुछ मिनटों के लिए मशीन (ऑक्सीमीटर) से जुड़ जाती है.
न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग कैसे मदद करती है? | How does newborn screening help?
स्क्रीनिंग टेस्ट यह पहचानने में मदद करते हैं कि शिशुओं में कोई बीमारी है या नहीं. साथ ही यह जानने में मदद मिलती है कि क्या और अधिक टेस्ट की जरूरत है.
दही खाने के फायदे और नुकसान, इन 5 फैक्ट्स को जाने बिना खाएंगे तो पछताएंगे
ब्लड स्क्रीनिंग टेस्ट फेनिलकेटोनुरिया (पीकेयू), जन्मजात हाइपोथायरायडिज्म, सिकल सेल रोग और मेपल सिरप मूत्र रोग जैसी स्थितियों की जांच करने में मदद करते हैं. अगर समय पर इलाज नहीं किया जाता है, तो इन स्थितियों से ब्रेन डैमेज, इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी, व्यवहार संबंधी लक्षण या दौरे पड़ सकते हैं.
(डॉ. आकाश शाह, सलाहकार पैथोलॉजिस्ट, न्यूबर्ग सुप्राटेक रेफरेंस लेबोरेटरीज)
अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. एनडीटीवी इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता, पूर्णता, उपयुक्तता या वैधता के लिए जिम्मेदार नहीं है. सभी जानकारी यथावत आधार पर प्रदान की जाती है. लेख में दिखाई देने वाली जानकारी, तथ्य या राय एनडीटीवी के विचारों को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं और एनडीटीवी इसके लिए कोई जिम्मेदारी या दायित्व नहीं लेता है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं