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कागजों में बराबरी, कोख में भेदभाव…यहां सालभर में हुए 1,10,000 गर्भपात! जानें क्यों जमकर एबॉर्शन करवा रहे लोग

जिस देश को बराबरी और अधिकारों का प्रतीक माना जाता है, वहीं अब बेटियों को गर्भ में खत्म करने की खबरें सामने आ रही हैं. भारत की एक कड़वी सच्चाई, ब्रिटेन में भी जिंदा है...बस चेहरे बदले हुए हैं. सवाल ये है कि क्या तरक्की सोच बदल पाई?

कागजों में बराबरी, कोख में भेदभाव…यहां सालभर में हुए 1,10,000 गर्भपात! जानें क्यों जमकर एबॉर्शन करवा रहे लोग
बेटी होने की भनक लगते ही कोख का फैसला बदल गया, आंकड़े डराने वाले हैं

Girl Child Abortion : ब्रिटेन से आई एक रिपोर्ट ने पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है. British Pregnancy Advisory Service (BPAS) से जुड़े आंकड़ों के मुताबिक, यूके में हर साल करीब 1.10 लाख से ज्यादा abortions किए जा रहे हैं, लेकिन सबसे परेशान करने वाली बात ये है कि इनमें से कई मामले sex-selective abortion यानी सिर्फ इसलिए गर्भपात, क्योंकि बच्ची होने वाली थी.

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ब्रिटेन में गर्भपात के चौंकाने वाले आंकड़े (Shocking Abortion Numbers in the UK)

BPAS, जो ब्रिटेन की सबसे बड़ी abortion service provider है, देश के लगभग आधे abortions कराती है. हालिया रिपोर्ट्स में आरोप लगे हैं कि संस्था ने कहीं न कहीं भ्रूण के लिंग के आधार पर गर्भपात को लेकर अस्पष्ट संदेश दिए हैं. खासकर British Indian community में यह ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है, जहां बेटी होने की जानकारी के बाद गर्भपात कराया जा रहा है. यह मुद्दा इसलिए भी गंभीर है क्योंकि UK सरकार के दिशा-निर्देश साफ कहते हैं कि 'gender alone cannot be a legal ground for abortion.' यानि की केवल लिंग के आधार पर गर्भपात का कानूनी आधार नहीं बनाया जा सकता.

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बेटी होने पर गर्भपात (Disturbing Gender Ratio Data)

डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड सोशल केयर (DHSC) की 2017-2021 की स्टडी में सामने आया कि भारतीय मूल के परिवारों में तीसरे या उसके बाद पैदा होने वाले बच्चों में boys-to-girls ratio 113:100 है, जबकि सामान्य अनुपात 105:100 माना जाता है. 15,401 births पर आधारित इस स्टडी के अनुसार, अनुमान है कि इन पांच सालों में करीब 400 बच्चियां sex-selective abortion की वजह से जन्म ही नहीं ले सकीं. यह आंकड़ा 'statistically significant' बताया गया है, यानी इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

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कानून क्या कहता है (UK Abortion Law and the Grey Area)

ब्रिटेन के Abortion Act में भ्रूण के लिंग को abortion का कारण नहीं माना गया है. BPAS की वेबसाइट पर लिखा गया कि कानून इस मुद्दे पर 'silent' है. इसी बात को लेकर विवाद खड़ा हुआ है. आलोचकों का कहना है कि यही अस्पष्टता महिलाओं पर सामाजिक और पारिवारिक दबाव बढ़ा रही है. जब रिश्तेदार बेटा चाहते हैं, तो महिलाएं यह कहकर गर्भपात करवा लेती हैं कि 'यह legal है'.

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विरोध और सामाजिक चिंता (Voices Against Sex-Selective Abortions)

Right To Life जैसे प्रो-लाइफ ग्रुप्स ने BPAS पर गैर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाने का आरोप लगाया है. फोर्स्ड मैरिज और ऑनर-बेस्ड वायलेंस के खिलाफ आवाज उठाने वाली Dame Jasvinder Sanghera ने साफ कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि sex-selective abortions हो रहे हैं. उनका कहना है कि दहेज और सामाजिक सोच की वजह से आज भी लड़कियों को आर्थिक बोझ समझा जाता है. हेल्थ प्रोफेशनल्स को 'cultural sensitivity' या 'racism' के डर से आंखें बंद नहीं करनी चाहिए.

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बेटियों के खिलाफ भेदभाव (Indian families in UK)

भारत में PNDT Act जैसे कानून बनाकर भ्रूण लिंग जांच पर रोक लगी, फिर भी यह समस्या खत्म नहीं हुई. अब वही मानसिकता प्रवास के बाद भी जिंदा है. यह खबर बताती है कि problem geography की नहीं, mindset की है. अगर विकसित देशों में भी बेटियों को स्वीकार नहीं किया जा रहा, तो यह पूरी मानवता के लिए सवाल है. बेटियां कहीं भी पैदा हों...भारत हो या ब्रिटेन उन्हें गर्भ में खत्म करने की सोच एक जैसी है. फर्क बस इतना है कि कहीं यह खुलेआम दिखती है, कहीं आंकड़ों में छिपी रहती है. सवाल ये नहीं कि कानून क्या कहता है, सवाल ये है कि हमारी सोच कब बदलेगी? शायद यही सबसे डरावनी सच्चाई है.

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