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कभी दूसरों की चाय बनाते थे, आज खुद बन गए करोड़पति, 10वीं पास ऑफिस बॉय बना कंपनी का CEO, सक्सेस स्टोरी वायरल

यह कहानी है इन्फोसिस कंपनी के उस ऑफिस बॉय की, जो कभी इसी ऑफिस में 9 हजार महीने की सैलरी पर सफाई का काम करता था और अब वह एक डिजाइनिंग कंपनी 'डिजाइन टेम्पलेट' का मालिक है.

कभी दूसरों की चाय बनाते थे, आज खुद बन गए करोड़पति, 10वीं पास ऑफिस बॉय बना कंपनी का CEO, सक्सेस स्टोरी वायरल
10वीं पास ऑफिस बॉय ने खड़ी की करोड़ों की कंपनी, पढ़ें इंस्पायरिंग स्टोरी

Inspiring story of Dadasaheb Bhagat: 'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती और मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती', सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के मुंह से आपने यह कविता जरूर सुनी होगी. यह कविता उन लोगों पर फिट बैठती है, जो बार-बार हारकर भी अपनी कोशिश जारी रखते हैं और एक दिन उस मुकाम पर पहुंच जाते हैं, जो उन्होंने तय किया था. अब एक ऐसा ही जीता-जागता उदाहरण हम आपके सामने पेश करने जा रहे हैं. यह कहानी है इन्फोसिस कंपनी के उस ऑफिस बॉय की, जो कभी इसी ऑफिस में 9 हजार महीने की सैलरी पर सफाई का काम करता था और अब वह एक डिजाइनिंग कंपनी 'डिजाइन टेम्पलेट' का मालिक है. कंपनी डिजाइन टेम्पलेट की मार्किट वैल्यू ठीक वैसी ही है, जैसे कि ग्लोबल डिजाइनिंग कंपनी कैनवा की है. एक छोटे से गांव से निकलकर दादा साहेब भगत ने कैसे ये मुकाम हासिल किया, चलिए बताते हैं.

कहां से की थी शुरुआत? 
महाराष्ट्र के बीड़ जिले के रहने वाले भगत के लिए यह सब इतना आसान नहीं था. परिवार इतना गरीब था कि पढ़ाई इनके लिए पहली प्राथमिकता रही ही नहीं. फिर भी जैसे तैसे भगत ने अपनी 10 वीं तक की पढ़ाई पूरी की और फिर आईटीआई से एक डिप्लोमा किया, जिसे करने के बाद भी मजदूर वाली नौकरी मिलती है. Moneycontrol के मुताबिक, अपने करियर को हवा देने के लिए भगत पुणे गया और वहां 4 हजार रुपये महीने सैलरी पर काम करने लगा. फिर उसे इन्फोसिस कंपनी में एक ऑफिस बॉय की नौकरी के बारे में पता चला, जहां उसे महीने के 9 हजार रुपये मिलते थे. कंपनी में उसका काम सफाई करना, सामान सप्लाई करना और गेस्ट हाउस के सभी काम निपटाना था. यह उसके लिए बहुत थकाऊ काम था और फिर एक दिन उसने देखा का कंपनी के कर्मचारी कंप्यूटर पर काम लाखों रुपये कमा रहे हैं.

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बड़ा करने की चाह ने बना दिया सक्सेसफुल
इसके बाद उसने कंपनी के कुछ कर्मचारियों से उनके काम के बारे में जाना और उनसे सलाह ली. उसे पता चला कि इस काम के लिए डिप्लोमा और डिग्री की जरूरत है. कईयों ने यह भी कहा कि डिग्री से ज्यादा टैलेंट मैटर करता है, बस आपको एनिमेशन और डिजाइन करना अच्छे से आना चाहिए. इसके बाद भगत को अपने स्कूल के दिनों की याद आई, जब उसके पेरेंट्स घर से काम करते थे और वह एक बोर्डिंग स्कूल में पड़ता था, जहां एक टेंपल पेंटर था. यहीं से भगत के अंदर पेंटिंग की कला की ओर रूझान बड़ा था. कंपनी के कर्मचारियों की बात सुनने के बाद उसे डिजाइनिंग सीखी और ऑफिस बॉय की नौकरी नाइट शिफ्ट में करने लगा और एक साल के अंदर ही वह एक प्रोफेशनल डिजाइनर बन गया. उसने कहीं नौकरी करने की बजाय बतौर फ्रीलांस डिजाइनर काम करना शुरू कर दिया और कुछ ही समय बाद अपनी डिजाइनिंग कंपनी लॉन्च की.

शार्क टैंक इंडिया में मिला बड़ा मौका 
लेकिन, सफलता एक रात में नहीं मिल जाती है. उसके सामने फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स, लिमिटेड सोर्सेज और लोगों की बकवास ने उसका हौसला तोड़ने की खूब कोशिश की. वहीं, कोविड 19 की वजह से उसे पुणे में अपनी ऑफिस बंद करना पड़ा और गांव वापस चला गया, लेकिन हार नहीं मानी. उसे देखा कि गांव में जिंदगी बहुत साधारण है और यहां पावर कट की भी बहुत समस्या है. फिर भगत ने अपनी टीम के साथ मिलकर एक हिल स्टेशन पर एक ऑफिस खोला और कंपनी का नाम रखा डिजाइन टेंप्लेट. यहां डिजाइनिंग सिखाई जाने लगी. धीरे-धीरे भगत का स्टार्टअप काम करने लगा और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर में भी यह कंपनी आई और मेक इन इंडिया अभियान के तहत उसकी तारीफ की. आखिर में शार्क टैंक इंडिया में भगत की सक्सेस स्टोरी सामने आई और वहां उन्हें एक डील करने का मौका मिला.

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