वैज्ञानिकों को स्पेस में पहली बार 'Fifth State of Matter' यानी पदार्थ के पांचवें अवस्था, जिसे बोस-आइंस्टाइन क्वांटम भी कहा जाता है, का सबूत मिला है. गुरुवार को सामने आए इस रिसर्च से क्वांटम यूनिवर्स की कुछ अबूझ पहेलियों को सुलझाने में मदद मिल सकती है. Bose-Einstein condensates (BECs) के अस्तित्व को लेकर सबसे पहले आज से लगभग 100 साल पहले अल्बर्ट आइंस्टाइन और भारतीय गणितज्ञ सत्येंद्र नाथ बोस की ओर से भविष्यवाणी की गई थी.
इसमें कहा गया था कि कोई भी पदार्थ इस अवस्था में तब पहुंचता है, जब किसी तत्व विशेष के एटम्स यानी परमाणुओं को एब्सॉल्यूट ज़ीरो यानी परम शून्य के तापमान (0 केल्विन, -273.15 सेल्सियस) पर ठंडा किया जाए. ऐसा करने पर उस तत्व के एटम्स क्वांटम विशेषताएं रखने वाले एक ईकाई यानी सिंगल एंटिटी बन जाते हैं, वहीं तत्व का हर कण उस पदार्थ के एक तरंग की तरह भी काम करता है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि BECs में अंतरिक्ष की रहस्यमयी डार्क एनर्जी के बारे में कुछ रहस्य छुपे हुए हैं. वैज्ञानिक ब्रह्मांड के त्वरित विस्तार के पीछे पहेली बनी हुई इस डार्क एनर्जी को मानते हैं. उनका मानना है कि BECs से उन्हें इसके बारे में ज्यादा जानकारी मिल सकती है. हालांकि, BECs बहुत ही संवेदनशील होते हैं. बाहरी वातावरण के ज़रा से भी संपर्क से ये अपने कंडेनसेशन यानी संघनन के सीमा से ज्यादा गर्म हो जाती हैं, ऐसे में वैज्ञानिकों के लिए धरती पर उनका अध्ययन करना लगभग असंभव है, क्योंकि उनके ऑब्जर्वेशन में उन्हें उनके जगह पर स्थिर रखने के लिए मैग्नेटिक फील्ड की जरूरत होती है लेकिन धरती पर गुरुत्वाकर्षण बल इसके मैग्नेटिक फील्ड में खलल डालता है.
गुरुवार को NASA की एक टीम ने इंटरेशनल स्पेस स्टेशन से अपने BECs एक्सपेरिमेंट के पहले रिजल्ट पेश किए. ये रिसर्च स्पेस स्टेशन पर इसीलिए की जा रही है क्योंकि यहां पृथ्वी पर आने वाली मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता. इस स्टेट को माइक्रोग्रैविटी में स्टडी किया जा रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस स्टडी से उन्हें कई तरह की ऐतिहासिक और मददगार जानकारियां मिलेंगी. यह रिसर्च जर्नल नेचर में पब्लिश किया गया है.
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