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क्या कोई राइफल से खुद ही अपने सीने में गोली मार सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने एमपी सरकार से क्यों मांगा जवाब

मामला 17 साल के नाबालिग का है, जिसने भोपाल स्थित एक अकादमी में शॉटगन शूटिंग प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में दाखिला लिया था. उसके और आरोपी के बीच विवाद हो गया, क्योंकि आरोपी ने उस पर 40,000 रुपये चुराने का आरोप लगाया था.

क्या कोई राइफल से खुद ही अपने सीने में गोली मार सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने एमपी सरकार से क्यों मांगा जवाब
  • कोर्ट ने एमपी सरकार से पूछा है कि क्या खुदकुशी के मामले में हत्या की संभावना सहित सभी पहलुओं की जांच हुई है.
  • कोर्ट ने संदेह जताया कि क्या कोई व्यक्ति राइफल से खुद को सीने में गोली मार सकता है और जांच का आदेश दिया.
  • मामला 17 वर्षीय नाबालिग का है, जिसने शूटिंग अकादमी में विवाद के बाद दबाव झेलते हुए आत्महत्या की थी.
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नई दिल्ली:

क्या कोई खुद ही राइफल से अपने सीने में गोली मार सकता है? ये बड़ा सवाल सुप्रीम कोर्ट के सामने उठा है और अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार से हलफनामा दाखिल कर पूछा है कि खुदकुशी के मामले में क्या सभी प्रासंगिक पहलुओं की जांच की गई है, जिसमें हत्या की संभावना भी शामिल है.

सोमवार को हुई सुनवाई में जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि हमारी समझ से, क्या कोई व्यक्ति राइफल से खुद को सीने में गोली मार सकता है, इसकी जांच ज़रूरी है. ऐसी परिस्थितियों में, हम राज्य सरकार से एक हलफनामा दाखिल करने की मांग करना उचित समझते हैं कि क्या जांच एजेंसी ने हत्या की संभावना सहित मामले के सभी पहलुओं की जांच की है.

कोर्ट ने साथ ही कहा कि अभियोजन पक्ष के मामले से ऐसा प्रतीत होता है कि मृतक ने राइफल से खुद को सीने में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी. इस दृष्टिकोण से हाईकोर्ट ने एक आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत अग्रिम ज़मानत दे दी.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान संदेह जताया कि क्या कोई व्यक्ति राइफल से खुद को सीने में गोली मार सकता है. इसलिए, उसने राज्य सरकार का हलफनामा मांगा. इसमें मृतक की पोस्टमार्टम रिपोर्ट और जांच के दौरान एकत्रित सामग्री शामिल है. हलफनामे में राइफल की जब्ती और लंबाई के बारे में भी विवरण भी मांगा है.

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दरअसल यह मामला 17 साल के नाबालिग का है, जिसने भोपाल स्थित एक अकादमी में शॉटगन शूटिंग प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में दाखिला लिया था. उसके और आरोपी के बीच विवाद हो गया, क्योंकि आरोपी ने उस पर 40,000 रुपये चुराने का आरोप लगाया था. आरोपों के अनुसार, आरोपी और अकादमी के अन्य छात्रों ने याचिकाकर्ता के बेटे को अपना अपराध स्वीकार करने के लिए धमकाया.

उन्होंने उसका फोन छीन लिया और अपराध स्वीकार करने वाले मैसेज भेजे और उसकी पिटाई भी की. उनके व्यवहार से निराश और दबाव को झेलने में असमर्थ, याचिकाकर्ता के बेटे ने अपनी जान ले ली. इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से पहले, मृतक ने अपने एक दोस्त और अपनी बहन को बताया था कि वह आत्महत्या कर रहा है. उसने अपने दोस्त के पास एक सुसाइड नोट भी छोड़ा था, जिसमें अकादमी के छात्रों को दोषी ठहराया गया था.

लगभग एक महीने बाद बीएनएस की धारा 107 के तहत FIR दर्ज की गई. पहले तो आरोपी की अग्रिम ज़मानत याचिका सत्र न्यायालय ने खारिज कर दी. हालांकि, उसे हाईकोर्ट से राहत मिल गई. याचिकाकर्ता के अनुसार, हाईकोर्ट ने न केवल उसके बेटे की आत्महत्या की घटना को महत्वहीन बताया, बल्कि मृतक पर दबाव न झेल पाने का आरोप भी लगाया और आरोपियों के कृत्यों का बचाव किया.

यह दावा किया गया है कि हाईकोर्ट ने मृतक की उम्र 18 साल मानने में गलती की, जबकि उस समय उसकी उम्र 17 साल थी और इसलिए नाबालिग को आत्महत्या के लिए उकसाने का गंभीर अपराध बनता है. याचिकाकर्ता का यह भी तर्क था कि आरोपी एक प्रभावशाली परिवार से ताल्लुक रखता है और उससे हिरासत में पूछताछ ज़रूरी है, क्योंकि वह FIR दर्ज होने के बाद भी जांच में शामिल नहीं हुआ.

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