कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, "इस बात के कोई दस्तावेजी सबूत नहीं हैं कि लॉर्ड माउंटबेटन, सी राजगोपालाचारी और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस राजदंड 'सेंगोल' को अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना था. राजगोपालाचारी के दोनों जीवनीकारों में से किसी ने भी इस बारे में बात नहीं की है." उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार और उसके 'ढोल बजाने वाले' तमिलनाडु में अपने राजनीतिक अंत के लिए औपचारिक राजदंड का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस बारे में जो भी दावे किए जा रहे हैं, वे सब फर्जी हैं.
केंद्र ने दावा किया है कि अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण को चिह्नित करने के लिए 'सेंगोल' को तत्कालीन पीएम नेहरू को सौंप दिया गया था. सरकार और बीजेपी के नेताओं ने अपने दावों में तमिलनाडु के मैगजीन 'तुगलक' से लेकर अमेरिका के 'टाइम' मैगजीन तक कई समाचार रिपोर्टों का हवाला दिया है. बीजेपी ने कांग्रेस पर पवित्र 'सेंगोल' को 'सोने की छड़ी' कहकर हिंदू परंपराओं का अपमान करने और इसे म्यूजियम में रखने का आरोप भी लगाया है. माना जाता है कि 'सेंगोल' इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में नेहरू के पैतृक घर आनंद भवन में था. आनंद भवन से बाद में इसे इलाहाबाद म्यूजियम में भेज दिया गया था.
पीएम मोदी 28 मई को नई संसद भवन का उद्घाटन करेंगे. इसके बाद पीएम इस 'सेंगोल' को लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित करेंगे. कांग्रेस सहित 20 विपक्षी दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करने का ऐलान किया है.
आजादी की रात 'सेंगोल' की प्रतीकात्मक भूमिका पर बीजेपी के दावों को लेकर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं. कांग्रेस पार्टी के महासचिव संचार जयराम रमेश ने कहा, "नई संसद को व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी की झूठी कहानियों से पवित्र किया जा रहा है. बीजेपी और आरएसएस ने दावे ज्यादा किए और तथ्य कम रखे हैं." एक न्यूज आर्टिकल का स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए जयराम ने 4 बातें कही हैं. वह लिखते हैं कि तत्कालीन मद्रास प्रांत में एक धार्मिक प्रतिष्ठान द्वारा एक शाही राजदंड की बात कही गई थी और मद्रास शहर में तैयार कर अगस्त 1947 में नेहरू को भेंट की गई थी. वहीं, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के नेता टीकेएस एलंगोवन ने NDTV को बताया, 'सेंगोल 'राजशाही का प्रतीक था न कि लोकतंत्र का. यह राजनीतिक दलों द्वारा नहीं बल्कि मठ द्वारा दिया जाता है. उन्होंने उस समय भारत को आजादी मिलने पर एक सेंगोल दिया था. इन चीजों का लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं है. ये राजशाही का प्रतीक है".
गृहमंत्री अमित शाह ने 'सेंगोल' के इतिहास और विरासत के बारे में बताते हुए कहा था कि 1047 के बाद 'सेंगोल' को कमोबेश भुला दिया गया था. शाह ने कहा, "1971 में एक तमिल विद्वान ने एक किताब में इसका जिक्र किया. हमारी सरकार ने 2021-22 में इसका जिक्र किया. 96 वर्षीय तमिल विद्वान 1947 में सेंगोल सौंपे जाने के समय मौजूद थे. वो अब नए संसद भवन में सेंगोल को स्थापित किए जाने के मौके पर भी उपस्थित रहेंगे."
बीजेपी ने कहा है कि वह चोल राजाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सत्ता हस्तांतरण के पारंपरिक प्रतीक 'सेंगोल' को संसद में स्थापित कर उसे सही जगह दे रही है. गृहमंत्री ने बुधवार को कहा, "इस तरह के एक महत्वपूर्ण पारंपरिक प्रतीक के लिए एक संग्रहालय सही जगह नहीं है. यह हमारी समृद्ध विरासत को दर्शाता है. जब पीएम ने अमृतकाल की घोषणा की, तो हमारे प्राचीन गौरव पर भारतीय गौरव का कायाकल्प करना सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक था." रविवार को नई संसद के उद्घाटन में भाग लेने के लिए 24 से अधिक अधिनम के प्रमुख (मूल रूप से शैव मठ) पहले ही राष्ट्रीय राजधानी में पहुंच चुके हैं. इस मामले से वाकिफ लोगों के मुताबिक उद्घाटन समारोह में वैदिक परंपराएं और तमिल रीति-रिवाज भी होंगे.
दक्षिण भारतीय राजनीति के विशेषज्ञ और लेखक सुगाता श्रीनिवासराजू ने कहा, "सेंगोल की कहानी सुर्खियां बटोर रही है. यह कई तत्वों के साथ एक नैरेटिव है. लेकिन अगर इसमें सिर्फ जांच-पड़ताल होती है, तो इसकी भव्य कथा, इसके अतीत और महत्व से कोई फायदा नहीं होगा."
उन्होंने कहा, "विपक्ष को मेगा, प्रामाणिक, जैविक, सांस्कृतिक कहानियों की जरूरत है. इसकी उन्होंने पिछले 9 वर्षों में परवाह नहीं की. परिणामस्वरूप हर बार एक सांस्कृतिक कहानी को लाया जाता है. चाहे वो झूठ हो या सच... फिर भी विपक्ष सिर्फ इसके जाल में फंस कर रह जाता है."
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