नए संसद भवन के उद्घाटन पर मोदी सरकार ने क्यों चला 'सेंगोल' का दांव? पढ़ें इनसाइड स्टोरी

'सेंगोल' एक तरह का राजदंड है. 15 अगस्त 1947 की आधी रात को इसे पंडित नेहरू को सौंपा गया था. इसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोकसभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा. आइए जानते हैं क्या हैं 'सेंगोल' और भारत के इतिहास में क्यों है इसका महत्व:-

नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) 28 मई को नए संसद भवन (New Parliament Building) का उद्घाटन करने जा रहे हैं. कई राजनीतिक दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है. इसमें राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और समाजवादी पार्टी (सपा) का नाम भी जुड़ गया है. विपक्ष को मात देने के लिए मोदी सरकार ने नया दांव चला है. मोदी सरकार ने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम आगे बढ़ा कर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है. इसके केंद्र में हैं 'सेंगोल'. 

गृहमंत्री अमित शाह ने बताया है कि नई संसद के उद्घाटन के मौके पर तमिलनाडु से आए विद्वान पीएम नरेंद्र मोदी को 'सेंगोल' देंगे. 'सेंगोल' एक तरह का राजदंड है. 15 अगस्त 1947 की आधी रात को इसे पंडित नेहरू को सौंपा गया था. आइए जानते हैं क्या हैं 'सेंगोल' और भारत के इतिहास में क्यों है इसका महत्व:-

सेंगोल क्या है?
सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'नीतिपरायणता'. सेंगोल एक राजदंड होता है. चांदी के सेंगोल पर सोने की परत होती है. इसके ऊपर भगवान शिव के वाहन नंदी महाराज विराजमान होते हैं. सेंगोल पांच फीट लंबा है. इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है. 1947 के इसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोकसभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा. सेंगोल विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा, ताकि जनता भी इसके महत्व को जान सके.

आजादी के 15 मिनट पहले पहले पीएम नेहरू को मिला था सेंगोल
ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, तमिल परंपरा में राज्य के महायाजक (राजगुरु) नए राजा को सत्ता ग्रहण करने पर एक राजदंड भेंट करता है. परंपरा के अनुसार यह राजगुरु, थिरुवदुथुरै अधीनम मठ का होता है. इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने 14 अगस्त 1947 को रात के 11.45 बजे यानी आजादी मिलने से 15 मिनट पहले थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के राजगुरु ने राजदंड माउंटबेटन को दिया. बकायदा पूजा के बाद राजदंड सेंगोल को पहले पीएम नेहरू को भेंट किया गया.

कहां रखा था सेंगोल?
इस समारोह के बाद ये राजदंड इलाहाबाद (प्रयागराज) संग्रहालय यानी आनंद भवन में रख दिया गया. यह नेहरू परिवार का पैतृक निवास है. 1960 के दशक में इसे वहीं के संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया. 1975 में शंकराचार्य ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया. इसके बाद 1978 में, कांची मठ के 'महा पेरियवा' (वरिष्ठ ज्ञाता) ने इस घटना को एक शिष्य को बताया. बाद में इसे घटना को प्रकाशित भी किया गया था. यह वाकया पिछले साल तमिलनाडु में आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर एक बार फिर सामने आया. 

कैसे हुई खोज?
पीएम नरेंद्र मोदी को डेढ़ साल पहले सेंगोल को लेकर 1947 की इस ऐतिहासिक घटना के बारे में बताया गया था. उसके बाद 3 महीने तक इसकी खोजबीन होती रही. देश के हर संग्रहालय में इसे ढूंढा गया. फिर प्रयागराज के संग्रहालय में इसका पता चला. 1947 में जिन्होंने इसे बनाया था, उन्होंने ही इसकी सत्यता की पुष्टि की.

न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन के आदेश का प्रतीक है सेंगोल
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंगोल को ग्रहण करने वाले व्यक्ति को न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का ‘आदेश' (तमिल में‘आणई') होता है. यह बात सबसे अधिक ध्यान खींचने वाली है. जनता की सेवा के लिए चुने गए प्रतिनिधियों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए.

सेंगोल में तमिलनाडु सरकार की भूमिका
तमिलनाडु सरकार ने 2021-22 के ‘हिन्दू रिलिजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट डिपार्टमेंट'- हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (एचआर एंड सीई) के पॉलिसी नोट में राज्य के मठों द्वारा निभाई गई भूमिका को गर्व से प्रकाशित किया है. इस दस्तावेज़ के पैरा 24 में मठों द्वारा शाही परामर्शदाता के रूप में निभाई गई भूमिका पर स्पष्ट रूप से प्रकाश डाला गया है.

यह ऐतिहासिक योजना आधीनम के अध्यक्षों से विचार-विमर्श करके बनाई गई है. सभी 20 आधीनम के अध्यक्ष इस शुभ अवसर पर आकर इस पवित्र अनुष्ठान की पुनर्स्मृति में अपना आशीर्वाद भी प्रदान कर रहे हैं. इस पवित्र समारोह में 96 साल के श्री वुम्मिडी बंगारु चेट्टी जी भी सम्मिलित होंगे, जो इसके निर्माण से जुड़े रहे हैं.

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