- बिहार चुनाव में RSS ने सीधे प्रचार या पार्टी के लिए वोट मांगने के बजाय बैकग्राउंड में जमीनी काम किया
- संघ ने मिशन त्रिशूल के तहत 16 से 20 हजार स्वयंसेवकों के साथ बूथ स्तर पर व्यापक काम किया.
- RSS ने सीमांचल, मगध, भोजपुर और कोसी मिथिलांचल क्षेत्रों में वोटरों को संगठित कर जीत में योगदान दिया
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए ने ऐतिहासिक जीत हासिल की. कुल 243 सीटों में से एनडीए को 202 सीटें मिलीं. इसमें बीजेपी को 89, जदयू को 85, चिराग पासवान की LJP-RV को 19 और अन्य सहयोगियों को 9-10 सीटें हासिल हुई. वहीं राजद, कांग्रेस, वाम दलों का महागठबंधन सिर्फ 35 सीटों पर सिमट गया. राजद को महज 25 सीटें, कांग्रेस को 6 सीटें मिलीं जबकि AIMIM ने 5 सीटें जीतीं. ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या एनडीए की प्रचंड जीत के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका थी? आरएसएस ने किन-किन सीटों पर काम किया और जीत में बदला? आइए समझते हैं.
बिहार चुनाव में RSS की भूमिका क्या थी?
- आरएसएस ने चुनाव में सीधे प्रचार या पार्टी के लिए वोट मांगने के बजाय बैकग्राउंड में जमीनी काम किया, जिसने बीजेपी और एनडीए की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
- मिशन त्रिशूल के तहत हजारों स्वयंसेवक बिहार में सक्रिय थे. इनकी संख्या लगभग 16-20 हजार तक थी. ये अलग अलग जगहों पर काम कर रहे थे.
- इन्होंने बूथ स्तर पर बीजेपी/एनडीए के वोटर्स और विपक्षी बूथों की पहचान की और एनडीए के पक्ष में माहौल बनाने का काम किया.
- एनडीए समर्थकों को मतदान के लिए घर-घर जाकर प्रेरित किया, खासकर जहां वोटिंग कम होती थी, वहां लोगों को वोटिंग सेंटर तक पहुंचाया.
- हिंदू एकजुटता, विकास, सुशासन और जंगलराज की वापसी रोकने जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाई. लोगों को याद दिलाया कि कैसे आरजेडी के शासन में जंगलराज था, कानून व्यवस्था बदतर थी.
- महिलाओं, युवाओं और ईबीसी (अति पिछड़े) वर्ग में संपर्क बढ़ाया. उनको बीजेपी और एनडीए के साथ क्यों खड़ा होना है ये बताया. ये भी समझाया कि बीजेपी महिला, युवा और अति पिछड़ा समर्थक है.
- पहले हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली जैसे चुनावों में भी इसी तरह की रणनीति से बीजेपी को फायदा हुआ था, बिहार में भी यही पैटर्न दोहराया गया.
- यह काम पटना, मुजफ्फरपुर, सीवान, भागलपुर, सीमांचल (किशनगंज-अररिया ), मगध क्षेत्र सहित पूरे राज्य में किया गया. स्वयंसेवकों ने गांव-शहरों में घर-घर जाकर लिस्ट बनाई और वोटरों से संपर्क किया.
किन सीटों पर RSS ने काम किया और जीत में बदला?
आरएसएस का काम राज्यव्यापी और बूथ-स्तरीय था. संघ साइलेंट और संगठनात्मक तरीके से काम करता है. जहां पर एनडीए की जीत का मार्जिन कम था या जहां पहले पार्टी कमजोर थी, वहां आरएसएस ने जमकर मेहनत की. अपने स्वयंसेवक उतारे जो दिन-रात लोगों के संपर्क में रहे. आरएसएस के ग्राउंडवर्क की निर्णायक भूमिका इस चुनाव में देखने को मिली.
- सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, अररिया, पूर्णिया, कटिहार) जहां मुस्लिम बहुल सीटें हैं, वहां एनडीए को कई सीटों पर जीत हासिल हुई या बढ़त मिली. आरएसएस ने हिंदू वोटरों को एकजुट करने में भूमिका निभाई.
- मगध और भोजपुर क्षेत्र (गया, जहानाबाद, आरा) जहां क्लोज फाइट वाली सीटें थीं, आरएसएस के बूथ मैनेजमेंट से एनडीए को फायदा हुआ.
- कोसी-मिथिलांचल (सहरसा, मधुबनी, दरभंगा) में महिलाओं और ईबीसी के संपर्क से एनडीए मजबूत हुआ.
एनडीए की अधिकांश सीटों पर आरएसएस का अप्रत्यक्ष योगदान माना जाता है, खासकर जहां वोटिंग प्रतिशत बढ़ा या हिंदू वोट एकतरफा हुआ. खुद आरएसएस का कहना है कि वह लोकतंत्र मजबूत करने और मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए काम करता है, न कि किसी पार्टी के लिए, लेकिन व्यावहारिक रूप से बीजेपी का वैचारिक संगठन होने से एनडीए को इसका सबसे ज्यादा फायदा मिलता है. आरएसएस के संगठनात्मक और बूथ लेवल काम को एनडीए की प्रचंड जीत का एक बड़ा साइलेंट फैक्टर कहा जा सकता है.
चुनाव में आरएसएस कैसे काम करता है?
1. लंबी तैयारी (1-2 साल पहले से)
- पूरे राज्य/देश में गांव-गांव, बस्ती-बस्ती में शाखाएं चलती रहती हैं.
- स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ाई जाती है, प्रशिक्षण शिविर लगते हैं.
- स्थानीय स्तर पर समाज के हर वर्ग जैसे कि महिला, युवा, किसान, ईबीसी, दलित आदि में संपर्क बढ़ाया जाता है.
2. चुनाव से 6-8 महीने पहले - मिशन मोड
- विशेष अभियान चलते हैं, जैसे हरियाणा-महाराष्ट्र में “मिशन त्रिशूल” चला, बिहार में भी ऐसा ही अभियान चलाया गया.
- हजारों पूर्णकालिक प्रचारक और लाखों स्वयंसेवक सक्रिय होते हैं.
- घर-घर संपर्क करना, मतदाता जागरण अभियान के नाम पर लोगों से मिलना, उनकी समस्याएं सुनना, विकास की बातें बताना.
3. बूथ स्तर पर सबसे मजबूत काम
- हर बूथ पर 10-20 स्वयंसेवक तैनात किए जाते हैं. बूथ की पूरी वोटर लिस्ट तैयार की जाती है, उससे तीन कैटेगरी बनाई जाती हैं: बीजेपी/एनडीए समर्थक, विपक्ष के समर्थक और डाउटफुल/झिझक वाले वोटर.
- समर्थक वोटरों को 100% मतदान करवाने का टारगेट रखा जाता है.
- डाउटफुल वोटरों से लगातार संपर्क किया जाता है. फोन करना, घर-घर जाना, छोटी-छोटी सभाएं करना.
- मतदान वाले दिन सुबह 5 बजे से बूथ पर मौजूदगी, वोटरों को घर से लाना, लाइन में लगवाना, बुजुर्गों-महिलाओं की मदद करना आदि.
4. मुद्दे तैयार करना और प्रचार
- हिंदू एकजुटता, राष्ट्रवाद, विकास, सुशासन, भ्रष्टाचार विरोध, जंगलराज नहीं चलेगा जैसे नैरेटिव तैयार किए जाते हैं.
- व्हाट्सएप ग्रुप, सोशल मीडिया, स्थानीय बैठकें, धार्मिक आयोजन के जरिए इन मुद्दों को विस्तार दिया जाता है.
- विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, भारतीय मजदूर संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद आदि 40 से ज्यादा सहयोगी संगठन अलग-अलग वर्गों में काम करते हैं.
5. महिलाओं, युवाओं पर खास फोकस
- महिला मोर्चा, दुर्गा वाहिनी के जरिए घर-घर संपर्क किया जाता है.
- युवाओं को सोशल मीडिया और बाइक रैलियों से जोड़ा जाता है.
पिछले कुछ चुनावों के उदाहरण
- उत्तर प्रदेश चुनाव 2022: एक लाख से ज्यादा गांवों में संपर्क अभियान चलाया गया, बूथ मैनेजमेंट किया गया.
- बिहार चुनाव 2025: मिशन त्रिशूल चलाया गया, 20 हजार स्वयंसेवक तैनात हुए, बूथ लेवल मोबिलाइजेशन किया.
- महाराष्ट्र-हरियाणा चुनाव 2024: बूथ स्तर पर डोर-टू-डोर कैंपेन किया गया, हिंदू वोटरों को एकजुट किया गया.
- दिल्ली MCD चुनाव 2022: छोटे-छोटे मोहल्लों में जाकर संघ कार्यकर्ताओं ने काम किया.
संघ प्रमुख मोहन भागवत बार-बार कहते हैं कि हम किसी पार्टी के लिए काम नहीं करते, हम मतदान प्रतिशत बढ़ाने और अच्छे उम्मीदवार को जिताने के लिए काम करते हैं. लेकिन चूंकि संघ की विचारधारा और बीजेपी की विचारधारा एक ही है, इसलिए व्यावहारिक रूप से ज्यादा फायदा बीजेपी को ही जाता है. आरएसएस चुनाव को संगठनात्मक युद्ध की तरह लड़ती है, बिना शोर मचाए, बूथ-बूथ पर नियंत्रण करके, यही उसकी सबसे बड़ी ताकत है.
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