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1996 मोदीनगर बस ब्लास्ट: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोषी को किया बरी, भारी मन से कहा- 18 निर्दोषों की गई जान

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वो भारी मन से बरी करने का आदेश पारित कर रही है क्योंकि यह मामला इतना गंभीर था कि इसने समाज की अंतरात्मा को झकझोर दिया था.

1996 मोदीनगर बस ब्लास्ट: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोषी को किया बरी, भारी मन से कहा- 18 निर्दोषों की गई जान

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1996 में गाजियाबाद के मोदीनगर में हुए एक बस में बम ब्लास्ट मामले में एक दोषी को बरी करते हुए अपनी चिंता व्यक्त की है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की डबल बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा है हम इस मामले में भारी मन से बरी होने का आदेश दे रहे है क्योंकि इस तरह का मामला समाज की अंतरात्मा को झकझोर देता है क्योंकि 18 निर्दोष लोगों ने आतंकवादी साजिश में अपनी जान गंवा दी. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह आरोप साबित करने में विफल रहा है कि अपीलकर्ता ने सह-अभियुक्तों के साथ मिलकर बस में बम ब्लास्ट करने की साजिश रची थी जिसके चलते बड़ी संख्या में यात्रियों की जान गई और सार्वजनिक संपत्ति यानी बस को नुकसान पहुंचा था. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज दोषसिद्धि के निष्कर्ष और अपीलकर्ता को दी गई सजा को रद्द कर दिया. यह आदेश जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की डबल बेंच ने दिया है. 

क्या था पूरा मामला

मामले के अनुसार अपीलकर्ता मोहम्मद इलियास ने ट्रायल कोर्ट द्वारा 15 अप्रैल 2013 को पारित आदेश के खिलाफ क्रिमिनल अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट में 2013 में दाखिल की थी. अपीलकर्ता मोहम्मद इलियास के खिलाफ 1996 में गाजियाबाद के मोदी नगर थाने में आईपीसी की धारा 302, 307, 427, 109, 120-बी, 121-ए, 124ए, 114 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4/5 और विदेशी अधिनियम की धारा 12 के तहत मामला दर्ज हुआ था. इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने  सह-अभियुक्त तस्लीम को सभी आरोपों से बरी कर दिया और अपीलकर्ता मोहम्मद इलियास और सह-अभियुक्त अब्दुल मतीन उर्फ ​​इकबाल उर्फ ​​उसुफ उर्फ ​​फारुख उर्फ ​​मुसैव और मोहम्मद इलियास को आईपीसी की धारा 302/34, 307/34, 427/34, 120-बी, 121-ए, 124-ए और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4/5 के तहत दोषी करार दिया था. ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता और सह-अभियुक्त को धारा 302/34 और 120-बी के तहत आजीवन कारावास और 50,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी और धारा 307/34, 120-बी आईपीसी के तहत आरोप के लिए दस साल के कठोर कारावास के साथ 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया था.

27 अप्रैल 1996 का मामला

इसके अलावा अन्य धाराओं में भी सजा और जुर्माना लगा था. ट्रायल कोर्ट ने सभी सजाओं को एक साथ चलाने का निर्देश दिया था. एफआईआर के मुताबिक रुड़की डिपो की एक बस 27 अप्रैल 1996 को दोपहर को लगभग 53 यात्रियों को लेकर दिल्ली से रवाना हुई. गाजियाबाद के मोहन नगर में 14 और यात्री उसमें सवार हुए. शाम करीब पांच बजे ग़ाज़ियाबाद के मोदीनगर पुलिस स्टेशन पार करते ही बस के अगले हिस्से में एक शक्तिशाली विस्फोट हुआ जिससे 10 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई और लगभग 48 यात्री घायल हो गए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शवों में धातु (Metal) के टुकड़े पाए गए और डॉक्टरों ने बताया था कि ये मौतें बम ब्लास्ट के कारण हुए अधिक ब्लीडिंग के कारण सदमे और ब्लीडिंग के कारण हुई थी.

फोरेंसिक जाँच से पुष्टि हुई थी कि बस के अगले हिस्से में बाईं ओर ड्राइवर की सीट के नीचे, कार्बन मिला हुआ आरडीएक्स रखा गया था और विस्फोट रिमोट स्विच के ज़रिए किया गया था. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि हमले को पाकिस्तानी नागरिक और हरकत-उल-अंसार के कथित ज़िला कमांडर अब्दुल मतीन उर्फ़ इकबाल ने मोहम्मद इलियास (अपीलकर्ता) और तस्लीम के साथ मिलकर अंजाम दिया था. यह भी आरोप लगाया गया था कि मूल रूप से मुज़फ़्फ़रनगर निवासी लेकिन लुधियाना में रहने वाले इलियास (अपीलकर्ता) को जम्मू-कश्मीर के तत्वों ने भड़काया था और उसने बम रखने की साज़िश रची थी. 2013 ने ट्रायल कोर्ट ने सह-आरोपी तस्लीम को बरी कर दिया था लेकिन इलियास (अपीलकर्ता) और अब्दुल मतीन को दोषी मानते हुए  आजीवन कारावास (Life Imprisonment) के साथ-साथ कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई थी. 

हाईकोर्ट ने इलियास की अपील पर सुनवाई की और मुख्य मुद्दा दोषी इलियास द्वारा कथित रूप से दिए गए इकबालिया बयान की स्वीकार्यता का था. हाईकोर्ट की डबल बेंच ने मोहम्मद इलियास की याचिका पर 12 साल बाद 51 पन्नों का फैसला सुनाते हुए मोहम्मद इलियास दोषसिद्धि को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा और पुलिस द्वारा दर्ज किया गया उसका कथित इकबालिया बयान साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 25 के तहत प्रतिबंध के मद्देनजर अस्वीकार्य है. कोर्ट ने इलियास की क्रिमिनल अपील को स्वीकार कर लिया और उसकी उम्र कैद की सजा को रद्द करते हुए उसे बरी कर दिया. 

कोर्ट ने कही ये बात

हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि वो भारी मन से बरी करने का आदेश पारित कर रही है क्योंकि यह मामला इतना गंभीर था कि इसने समाज की अंतरात्मा को झकझोर दिया क्योंकि इस 'आतंकवादी' साजिश में 18 निर्दोष लोगों की जान चली गई. इस मामले में 34 लोगों की गवाही हुई. बेंच ने आगे कहा कि हालाँकि यात्रियों और प्रत्यक्षदर्शियों ने घटना को साबित कर दिया लेकिन कोई भी यह नहीं पहचान सका कि विस्फोटक किसने रखा था क्योंकि बम बस के आईएसबीटी दिल्ली से रवाना होने से पहले रखा गया था जिससे पहचान असंभव हो गई. कोर्ट ने यह भी देखा कि जिन गवाहों को स्वीकारोक्ति सुनने के लिए पेश किया गया था वो मुकर गए और उन्होंने ऐसे किसी भी स्वीकारोक्ति से इनकार किया या फिर विरोधाभासी बयान दिए. कोर्ट ने कहा कि इकबालिया बयान को हटा दिए जाने के बाद अपीलकर्ता के खिलाफ कोई भी ऐसी सामग्री पेश नहीं हुई जिससे अपराध में उसकी संलिप्तता साबित हो सके. कोर्ट ने अपीलकर्ता को सभी आरोपों से बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि अपील के लंबित रहने के दौरान वह जेल हिरासत में रहा है इसलिए यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो जेल हिरासत से उसकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए इस फैसले के अनुसरण में ट्रायल कोर्ट द्वारा तत्काल रिहाई आदेश जारी किया जाएगा. 

अपीलकर्ता को निर्देश दिया जाता है कि वह सीआरपीसी की धारा 437-ए के अनुसार जेल से वास्तविक रिहाई के दो हफ्ते के अंदर ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए एक व्यक्तिगत बांड और समान राशि के दो जमानतदार प्रस्तुत करें. कोर्ट ने अपीलकर्ता को यह भी निर्देश दिया कि वो यह वचन भी दें कि जब भी इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की जाएगी तो वो अपीलीय न्यायालय के समक्ष उपस्थित होगा और उसे न्यायालय के समक्ष उपस्थित होना आवश्यक है. कोर्ट ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को आदेश दिया कि इस आदेश की एक प्रमाणित प्रति ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड के साथ आवश्यक कार्रवाई के लिए ट्रायल कोर्ट को भेजी जाएगी. ट्रायल कोर्ट को चार हफ्ते के अंदर अनुपालन रिपोर्ट भेजनी होगी. 

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