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चिराग पासवान के बिहार प्रेम की वजह क्या है, क्या सीएम की कुर्सी पर लगी हैं उनकी निगाहें

आजकल बिहार की राजनीति में चिराग पासवान के नाम की चर्चा है. दरअसल वो इशारों ही इशारों में बिहार में राजनीति में सक्रिय होने की इच्छा जता रहे हैं. कह रहे हैं कि उनका मन राष्ट्रीय राजनीति में नहीं लगता है. आइए जानते हैं कि क्या है इसके पीछे की वजह और उनकी महत्वाकांक्षा क्या है.

चिराग पासवान के बिहार प्रेम की वजह क्या है, क्या सीएम की कुर्सी पर लगी हैं उनकी निगाहें
नई दिल्ली:

केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का एक बयान आजकल बिहार की राजनीति में हलचल मचाए हुए है. उन्होंने कहा है कि बिहार उन्हें पुकार रहा है. विधानसभा चुनाव से पहले उनके इस बयान को मुख्यमंत्री पद पर उनकी दावेदारी से जोड़कर देखा जा रहा है. उनकी पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अंदर से भी उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने की मांग की जा रही है. इस बीच राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शीर्ष नेतृत्व ने पासवान को चुनाव तक बिहार में अधिक समय बिताने को कहा है. 

चिराग पासवान का बिहार प्रेम

चिराग पासवान ने कुछ दिन पहले पत्रकारों से कहा था, मेरा ध्यान 'बिहार फर्स्ट और बिहारी फर्स्ट' पर लगा हुआ है. उन्होंने कहा था कि उनका बिहार उन्हें पुकार रहा है. इससे पहले उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार के कार्यक्रम में कहा था कि उनके पिता रामविलास पासवान की रुचि राष्ट्रीय राजनीति में थी, लेकिन उनके विपरीत में मेरी रुची राज्य की राजनीति में है. इस अवसर पर उन्होंने बिहार की राजनीति के लिए अपनी किसी योजना का खुलासा तो नहीं किया था. लेकिन रविवार को उनकी पार्टी की युवा शाखा का प्रदेश स्तरीय सम्मेलन पटना में आयोजित किया गया, इसमें चिराग पासवान से विधानसभा का चुनाव लड़ने और राज्य की राजनीति में सक्रिय होने की मांग की गई. सम्मेलन में कुछ वक्ताओं ने तो उन्हें मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने तक की मांग कर डाली.

चिराग पासवान और उनकी पार्टी के नेताओं के बयान ऐसे समय आए हैं, जब  विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए में शामिल दल 243 सदस्यों वाली विधानसभा में सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत शुरू कर रहे हैं. राजनीति के जानकार पासवान के इन बयानों को सीट बंटवारे में अधिक से अधिक सीट हासिल करने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं. चिराग पासवान ने अभी तक सीटों की मांग तो नहीं की है, लेकिन वो कह चुके हैं कि उनकी पार्टी हर जिले में एक सीट पर चुनाव लड़ेगी. इस तरह से देखें तो वो बिहार के सभी 38 जिलों में चुनाव लड़ना चाहते हैं. वहीं एनडीए में शामिल जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) भी 40 सीटों की मांग कर रहा है.

लोजपा का सीट बंटवारे का फार्मूला क्या है

लोजपा (रामविलास) दरअसल लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन के आधार पर अधिक सीटों की मांग कर रहा है. लोकसभा चुनाव में एनडीए में हुए सीट बंटवारे में चिराग की पार्टी के हिस्से में पांच सीटें आई थीं. उसने सभी पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद से ही पार्टी के हौंसले बुलंद हैं. पार्टी के नेता अब इस जीत को ही सीट बंटवारे का फार्मूला बता रहे हैं. उनके मुताबिक लोकसभा चुनाव में एनडीए ने 30 सीटें जीती थीं. ऐसे में हर जीती हुई लोकसभा सीट पर विधानसभा की आठ सीटें आती हैं. इस लिहाज से चिराग की पार्टी 40 सीटों की मांग कर रही है. 

वहीं कुछ राजनीतिक विश्वेषकों का कहना है कि चिराग की नजर 2030 के विधानसभा चुनाव पर है. वह यह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं. अभी उनकी कोशिश इस विधानसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतने और पार्टी को मजबूत करने की है. लोकसभा चुनाव से पहले उनकी पार्टी काफी कमजोर हो गई थी. साल 2020 का विधानसभा चुनाव लोजपा ने अकेले लड़ा था. उसने 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन वह केवल एक सीट ही जीत पाई थी. उसे 5.6 फीसदी वोट मिले थे. लोजपा ने जिन 135 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उनमें से 115 सीटों पर उसने जनता दल यूनाइटेड के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे. इसका परिणाम यह हुआ था कि 2015 में 71 सीट जीतने वाली जेडीयू 43 सीटों पर सिमट गई थी. वहीं बीजेपी ने 74 सीटें जीत ली थीं. लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही लोजपा की मुश्किलें भी खड़ी हो गई थीं. पार्टी के छह में से पांच सांसदों ने चिराग  पासवान के खिलाफ बगावत कर दी थी. इस बगवात की कमान संभाली थी, चिराग के चाचा पशुपति पारस ने. इस बगावत के बाद चिराग पासवान ने अपनी लोजपा (रामविलास) को फिर से खड़ा किया और लोकसभा चुनाव में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनाया है. इसके साथ ही उनकी महत्वाकांक्षा भी जाग गई है. वो अब अपनी भूमिका बिहार की राजनीति में देख रहे हैं. अब यह समय ही बताएगा कि चिराग की महत्वाकांक्षा पूरी होती है या नहीं. 

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