नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने केरल के कोच्चि में अडानी और केरल सरकार के वझिनजम पोर्ट के मामले में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) की सुनवाई पर से रोक हटा ली है। इसके साथ ही कोर्ट ने NGT को छह हफ्ते में मामले का निपटारा करने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि जनवरी, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पर रोक लगा दी थी।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा, 'अगर कोई गरीब आदमी इस तरह की बात करता है तो समझ में आता है कि वह चेन्नई की बजाए दिल्ली में सुनवाई नहीं चाहता, लेकिन यहां मामला अडानी का है, जो देश के सबसे पॉवरफुल उद्यमी हैं। कोर्ट ने यह टिप्पणी उस वक्त की, जब केरल सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मामले में 'बेंच हंटिंग' कर रहे हैं, और वे मामले को चेन्नई से दिल्ली लाना चाहते हैं।
केरल सरकार के रुख पर जताई नाराजगी
हालांकि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि अगर सरकार का ऐसा बर्ताव रहा तो फिर सारे विकास कार्यों को रोक देना चाहिए। सरकार कोई योजना लाती है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे कोर्ट या ट्राइब्यूनल में चुनौती नहीं दी जा सकती। सरकार एक साथ विकास कार्य और कोर्ट में सुनवाई नहीं कर सकती।
केरल सरकार का कहना था कि इस मामले में NGTके पास इस मामले की सुनवाई का अधिकार नहीं है और सरकारी आदेश को रद्द करने का अधिकार नहीं है जबकि याचिकाकर्ताओं, जिनमें स्थानीय मछुआरे भी शामिल हैं , का कहना है कि इस पोर्ट से पर्यावरण को नुकसान होगा।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा, 'अगर कोई गरीब आदमी इस तरह की बात करता है तो समझ में आता है कि वह चेन्नई की बजाए दिल्ली में सुनवाई नहीं चाहता, लेकिन यहां मामला अडानी का है, जो देश के सबसे पॉवरफुल उद्यमी हैं। कोर्ट ने यह टिप्पणी उस वक्त की, जब केरल सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मामले में 'बेंच हंटिंग' कर रहे हैं, और वे मामले को चेन्नई से दिल्ली लाना चाहते हैं।
केरल सरकार के रुख पर जताई नाराजगी
हालांकि सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि अगर सरकार का ऐसा बर्ताव रहा तो फिर सारे विकास कार्यों को रोक देना चाहिए। सरकार कोई योजना लाती है तो इसका मतलब यह नहीं कि उसे कोर्ट या ट्राइब्यूनल में चुनौती नहीं दी जा सकती। सरकार एक साथ विकास कार्य और कोर्ट में सुनवाई नहीं कर सकती।
केरल सरकार का कहना था कि इस मामले में NGTके पास इस मामले की सुनवाई का अधिकार नहीं है और सरकारी आदेश को रद्द करने का अधिकार नहीं है जबकि याचिकाकर्ताओं, जिनमें स्थानीय मछुआरे भी शामिल हैं , का कहना है कि इस पोर्ट से पर्यावरण को नुकसान होगा।
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