 
                                            शोपियां फाइरिंग के बाद एकत्र भीड़ (फाइल फोटो)
                                                                                                                        - शोपियां में भीड़ ने किया था सेना के जवानों पर हमला
- अपने बचाव में सेना ने चलाई गोली
- गोली में कुछ नागरिकों की मौत
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                                                                                नई दिल्ली: 
                                        केंद्र सरकार ने सेना के मेजर आदित्य के समर्थन में अर्जी दाखिल की है. केंद्र सरकार ने कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार के पास ये अधिकार नहीं कि वो बिना केंद्र सरकार की अनुमति के सेना के अफसर खिलाफ FIR दर्ज कर सके. केंद्र सरकार ने कहा कि इस विषय पर गहन विचार किया गया और ये पाया कि केंद्र सरकार की इजाजत के बिना राज्य सरकार इस मामले में कोई भी आपराधिक कार्रवाई सेना के अफसर के खिलाफ नहीं कर सकती.
इस मामले में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से कोई इजाजत नहीं ली है. केंद्र सरकार ने कहा कि जम्मू कश्मीर में आतंकवादी और देश विरोधी ताकतें कानून का उल्लंघन कर रही हैं इससे सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित होती है. ऐसे लोगों के पास आधुनिक हथियार भी हैं और उन्हें सीमा पार के देशों का समर्थन भी है. जो पुलिस और सुरक्षा बल उनका विरोध करते हैं उनपर हमले हो रहे हैं.
देशहित में देश की सुरक्षा और एकता को बनाने रखने के लिए सेना को सुरक्षा देने वाले AFPSA के धारा 7 की व्याख्या करनी जरूरी है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के दो अलग अलग विरोधाभासी फैसले हैं जिनके लिए बड़ी बेंच का गठन किया जाना चाहिए.
इस मामले की जांच आगे नहीं होनी चाहिए और FIR की आगे की कार्रवाई पर रोक लगनी चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही FIR पर जांच पर रोक लगा चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य पुलिस फिलहाल 24 अप्रैल तक जांच नहीं करेगी.
सुप्रीम कोर्ट 24 अप्रैल को मामले की अंतिम सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस ने कहा कि ये मामला सेना के अधिकारी का है, किसी सामान्य अपराधी का नहीं. जम्मू-कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मेजर आदित्य का नाम FIR में बतौर आरोपी नहीं है. सिर्फ ये लिखा गया है कि वो बटालियन को लीड कर कर रहे थे. कोर्ट ने पूछा क्या नाम लिया जाएगा? राज्य सरकार ने कहा कि ये जांच पर निर्भर करता है. कोर्ट को मामले की जांच जारी रखने की इजाजत देनी चाहिए.
वहीं सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकार इस मामले में आमने सामने दिखे. AG के के वेणुगोपाल ने कहा कि AFPSA की धारा 7 के तहत राज्य सरकार इस तरह FIR दर्ज नहीं कर सकती. इसके लिए केंद्र की अनुमति लेना जरूरी है, वहीं राज्य सरकार ने इसका विरोध किया. कहा कि FIR दर्ज करते वक्त इसकी जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट अब ये तय करेगा कि ये FIR वैध है या नहीं.
                                                                        
                                    
                                इस मामले में राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से कोई इजाजत नहीं ली है. केंद्र सरकार ने कहा कि जम्मू कश्मीर में आतंकवादी और देश विरोधी ताकतें कानून का उल्लंघन कर रही हैं इससे सुरक्षा व्यवस्था प्रभावित होती है. ऐसे लोगों के पास आधुनिक हथियार भी हैं और उन्हें सीमा पार के देशों का समर्थन भी है. जो पुलिस और सुरक्षा बल उनका विरोध करते हैं उनपर हमले हो रहे हैं.
देशहित में देश की सुरक्षा और एकता को बनाने रखने के लिए सेना को सुरक्षा देने वाले AFPSA के धारा 7 की व्याख्या करनी जरूरी है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के दो अलग अलग विरोधाभासी फैसले हैं जिनके लिए बड़ी बेंच का गठन किया जाना चाहिए.
इस मामले की जांच आगे नहीं होनी चाहिए और FIR की आगे की कार्रवाई पर रोक लगनी चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही FIR पर जांच पर रोक लगा चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य पुलिस फिलहाल 24 अप्रैल तक जांच नहीं करेगी.
सुप्रीम कोर्ट 24 अप्रैल को मामले की अंतिम सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस ने कहा कि ये मामला सेना के अधिकारी का है, किसी सामान्य अपराधी का नहीं. जम्मू-कश्मीर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि मेजर आदित्य का नाम FIR में बतौर आरोपी नहीं है. सिर्फ ये लिखा गया है कि वो बटालियन को लीड कर कर रहे थे. कोर्ट ने पूछा क्या नाम लिया जाएगा? राज्य सरकार ने कहा कि ये जांच पर निर्भर करता है. कोर्ट को मामले की जांच जारी रखने की इजाजत देनी चाहिए.
वहीं सुनवाई के दौरान केंद्र और राज्य सरकार इस मामले में आमने सामने दिखे. AG के के वेणुगोपाल ने कहा कि AFPSA की धारा 7 के तहत राज्य सरकार इस तरह FIR दर्ज नहीं कर सकती. इसके लिए केंद्र की अनुमति लेना जरूरी है, वहीं राज्य सरकार ने इसका विरोध किया. कहा कि FIR दर्ज करते वक्त इसकी जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट अब ये तय करेगा कि ये FIR वैध है या नहीं.
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