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This Article is From Feb 10, 2022

यौन उत्पीड़न का आरोप लगा इस्तीफा देनेवाली जज होंगी फिर से बहाल, सुप्रीम कोर्ट का आदेश

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जज के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाने वाली पूर्व महिला जज की नौकरी बहाल करने का विरोध किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया.

यौन उत्पीड़न का आरोप लगा इस्तीफा देनेवाली जज होंगी फिर से बहाल, सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश की पूर्व महिला जज को फिर से बहाल करने का आदेश दिया है. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) की पूर्व महिला जज को फिर से बहाल करने का आदेश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि उनका इस्तीफा स्वैच्छिक नहीं हो सकता है. अदालत ने कहा कि पिछला वेतन वापस नहीं मिलेगा लेकिन उन्हें आगे बहाल कर  वेतन भत्ता दिया जाएगा. महिला जज ने 2014 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था और अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जज के खिलाफ यौन शोषण का आरोप लगाने वाली पूर्व महिला जज की नौकरी बहाल करने का विरोध किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया. दरअसल पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी ने हाईकोर्ट के जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था जो जांच में गलत साबित हुआ था. इसके बाद महिला अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर नौकरी बहाल करने की मांग की थी.

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हाईकोर्ट के जज के खिलाफ यौन उत्पीड़न के अपने आरोपों की जांच के बाद इस्तीफा दे चुकी पूर्व महिला न्यायिक अधिकारी यह आरोप नहीं लगा सकती कि उनकी शिकायत गलत पाए जाने के चार साल बाद वह इस्तीफा देने के लिए मजबूर हुईं.

दरअसल महिला अधिकारी ने अदालत में आरोप लगाया था कि उन्हें इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था. हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि महिला ने कामकाज के प्रतिकूल माहौल को इस्तीफे का आधार बताया था कि उन्हें कथित तौर पर इस वजह से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा  था लेकिन यह मामला उन्होंने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने के चार साल बाद उठाया है.

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मेहता ने पीठ को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस मंजुला चेल्लूर और वरिष्ठ वकील  केके वेणुगोपाल सहित जजों की जांच समिति ने दिसंबर 2017 में राज्यसभा में पेश अपने रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न को आरोपी हाईकोर्ट के जज को आरोपमुक्त कर दिया था. 

मेहता ने पीठ को बताया कि समिति ने सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर जांच की. समिति इससे वाकिफ थी कि लगाए गए आरोप समय से नहीं बल्कि देरी से लगाए गए थे. उन्होंने कहा कि महिला का तर्क कि वह यौन उत्पीड़न की वजह से दबाव में थी, यह सिद्ध नहीं हो सका. 

मेहता ने जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ से कहा कि किसी महिला का यौन उत्पीड़न बहुत गंभीर मुद्दा है, आरोप सत्य नहीं पाया जा रहा है और यह भी किसी संस्थान के प्रशासन के लिए एक गंभीर मुद्दा है. सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि याचिकाकर्ता का मामला तबादले का एकमात्र मामला नहीं है.

याचिकाकर्ता की ओर पेश हुई वरिष्ठ वकील  इंदिरा जयसिंह की दलील का जवाब देते हुए कहा कि पूर्व न्यायिक महिला अधिकारी ने मजबूरन इस्तीफा दिया क्योंकि वह अपनी बेटी और अपने करिअर के बीच किसी एक को चुनने के लिए मजबूर थी. जयसिंह ने पीठ को बताया था कि तबादला दरअसल तबादला नीति के विपरीत था.

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