
Nutritional Deficiency Risks: आमतौर पर अंडर न्यूट्रिशन यानि कम पोषण को पोषण की कमी से जोड़ा जाता है, लेकिन सोमवार को हेल्थ एक्सपर्ट ने कहा कि यह मोटापे और डायबिटीज का एक बड़ा कारक है. यूनिसेफ के अनुसार, 2025 में स्कूली बच्चों और किशोरों में मोटापे की समस्या पहली बार कम वजन वाले बच्चों से ज्यादा हो जाएगी. अंडर न्यूट्रिशन की स्थिति में यह नाटकीय बदलाव बच्चों, समुदायों और राष्ट्रों के स्वास्थ्य और भविष्य की संभावनाओं को खतरे में डालता है.
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आईएमए कोचीन की वैज्ञानिक समिति के अध्यक्ष डॉ. राजीव जयदेवन ने बताया, "जब हम अल्पपोषण के बारे में सोचते हैं, तो आमतौर पर दुबले-पतले बच्चों या वयस्कों की कल्पना करते हैं जिनकी ग्रोथ ठीक से नहीं हुई है. लेकिन, आज की दुनिया में अल्प पोषण मोटापे का कारण भी बन सकता है. कम जागरूकता वाले गरीब पृष्ठभूमि के लोग अक्सर सस्ते फूड्स और ड्रिंक्स खरीदते हैं जिनमें शुगर और फैट की मात्रा ज्यादा होती है, लेकिन पोषण कम होता है."
उन्होंने आगे कहा, "उदाहरण के लिए मशहूर हस्तियों द्वारा मीठे सॉफ्ट ड्रिंक्स का खूब प्रचार किया जाता है और उन्हें सस्ते दामों पर बेचा जाता है, फिर भी ये मोटापे और डायबिटीज को बढ़ावा देते हैं. जो पानी और प्रोटीन, फाइबर, फल और सब्जियों से भरपूर बैलेंस डाइट लेते हैं, ये लोग मीठे, शुगरी ड्रिंक्स, कैलोरी से भरपूर तेल में तले हुए स्नैक्स और अपेक्षाकृत सस्ते पैकेज्ड फूड्स का ऑप्शन्स चुनते हैं."
एक्सपर्ट्स ने बताया कि अल्प पोषित माताएं ऐसे बच्चों को जन्म देती हैं जो बड़े होने पर खासकर जब भोजन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो, मोटापे के शिकार हो जाते हैं.
यह सेल मेटाबॉलिज्म पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में देखा जा सकता है, जहां भारतीय शोधकर्ताओं ने एक चूहे के मॉडल का अध्ययन किया, जो विकासशील देशों की मानव आबादी से काफी मिलता-जुलता था.
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अल्प पोषित चूहों में बाकी चूहों के मुकाबले इंसुलिन लेवल ज्यादा था और विटामिन बी12 और फोलेट का लेवल कम था.
निष्कर्षों से पता चला कि अल्प पोषित चूहों में एपिजेनेटिक बदलावों से जुड़ी मेटाबॉलिक संबंधी असामान्यताएं दिखाई देती हैं, जो बाद की दो पीढ़ियों में सामान्य भोजन के बाद भी ठीक नहीं होतीं.
इस शोधपत्र के लेखकों में से एक, दिल्ली-एनसीआर स्थित शिव नादर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ नेचुरल साइंसेज के डीन, डॉ. संजीव गलांडे ने बताया, "भारत में, अल्प पोषण के कारण मोटापे और डायबिटीज के खतरे को बढ़ाने वाले विरोधाभास को अक्सर 'कुपोषण के दोहरे बोझ' की अवधारणा के माध्यम से समझाया जाता है."
गलांडे ने बताया कि प्रारंभिक जीवन में अल्प पोषण शरीर को ऊर्जा संरक्षण, फैट स्टोरेज और मांसपेशियों की सीमित ग्रोथ के लिए प्रेरित करता है, जिससे लॉन्ग टर्म मेटाबॉलिक बदलाव होते हैं.
उन्होंने आगे कहा, "जब ऐसे व्यक्ति बाद में कैलोरी-से भरपूर डाइट और फिजिकल लाइफस्टाइल के संपर्क में आते हैं (जो अब भारत में तेजी से प्रचलित हो रही है) तो उन्हें मोटापे, टाइप 2 डायबिटीज और अन्य नॉन कम्युनिकेबल डिजीज का खतरा काफी ज्यादा होता है."
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एक्सपर्ट्स ने इन लोगों में मोटापे के बढ़ते जोखिम के लिए व्यायाम की कमी और गतिहीन जीवनशैली को भी जिम्मेदार ठहराया, जो धूम्रपान और शराब के सेवन से और भी बढ़ सकता है.
मोटापा और डायबिटीज दोनों के बढ़ते मामलों को देखते हुए विशेषज्ञों ने पौष्टिक और किफायती भोजन की मात्रा बढ़ाने और अनहेल्दी फूड्स की मार्केटिंग से निपटने के लिए और ज्यादा कार्रवाई करने का आह्वान किया है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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