8 नवंबर को नोटबंदी के एलान के बाद के दो-तीन हफ्ते तक बैंक कर्मचारियों की साख पर किसी ने सवाल नहीं उठाये. प्रधानमंत्री से लेकर लाइन में लगा आम आदमी भी बैंक कर्मचारियों की तारीफ कर रहा है. लेकिन अब जब रोज़ छापे पड़ रहे हैं और जहां-तहां से भारी मात्रा में नए नोट बरामद हो रहे हैं, आम जनता की नज़र में बैंक वालों की साख गिरने लगी है. लोगों को लगता है कि पैसा तो भारतीय रिज़र्व बैंक से बैंकों में ही गया तो ज़ाहिर है लाखों के नए नोट किसी एक आदमी को बैंक मैनेजर की सांठगांठ से ही मिले होंगे. आज जब बैंक प्रणाली को समझने के लिए बैंकों के कर्मचारियों से बात कर रहा था तब उन्होंने अपनी दास्तां कुछ तरह बया की. एक सज्जन ने कहा कि 25 दिन पहले और अब में काफी फर्क आ गया है. पहले हम समझते थे कि सीमा पर तैनात एक सैनिक की तरह देश के लिए काम कर रहे हैं, आतंकवाद पर लगाम लगेगा, इनकम टैक्स ख़त्म हो जाएगा, काला धन समाप्त हो जाएगा. लेकिन जब बैंकों के पास पैसा नहीं आया, बाहर लाइनों में खड़ी जनता का धैर्य जवाब देने लगा, वो पथराव, घेराव करने लगी तो सैनिक वाली भावना निकल गई. हमसे भी उनका दर्द नहीं देखा गया और वो भी अब हमारा दर्द नहीं समझ रहे थे. जैसे-जैसे ख़बरें आने लगी कि नोटबंदी के दिन जितना रुपया चलन में था, उसका अस्सी फीसदी से ज्यादा हिस्सा बैंकों में वापस आ गया, तो काला धन मिलने की हमारी उम्मीद जाती रही. हमें समझ आने लगा कि ब्लैक मनी खत्म नहीं हुआ है बल्कि पुराने नोट को नए नोट से बदल दिया गया है. यह मामला कुछ और है. देशहित का मामला नहीं है. हम सबने 12-12 बजे रात तक काम किया. हमने इसे देशभक्ति के चश्मे से देखना बंद कर दिया. अब तो जनता भी हमें हीरो की जगह चोर समझने लगी है.
ज़रूरी नहीं कि सारे बैंकर ऐसा ही सोचते हों लेकिन इस एक व्यक्ति की दास्तां बहुत कुछ कहती है. हम भी जानना चाहते हैं और ज़ाहिर है आपके मन में भी यह सवाल होगा कि जब लोगों को तीन-तीन, चार-चार दिनों तक लाइन में लगने के बाद दो हज़ार का एक नोट नहीं मिल रहा था, तब कैसे किसी एक के पास करोड़ों रुपये के नए नोट आ गए. ज़ाहिर है हम सबने यही सोचा कि बैंक मैनेजर ने 30-40 फीसदी कमीशन लेकर यह काम कर दिया होगा. एक अन्य बैंक कर्मचारी ने कहा कि बैंक मैनेजरों या कर्मचारियों पर इस तरह शक करना ठीक नहीं है. अपनी असफलता पर पर्दा डालने के लिए बैंक कर्मचारियों को बदनाम किया जा रहा है.
हर बैंक में कैशियर और ब्रांच मैनेजर के कमरे में सीसीटीवी कैमरा तो होता ही है. बहुत आराम से देखा जा सकता है कि कोई बोरी में नोट लाया और बोरी में लेकर गया. बड़े पैमाने पर ऐसा हो ही नहीं सकता, क्योंकि कैशियर के पास एक और कर्मचारी होता है. अगर कैशियर इतनी बड़ी मात्रा में नोट बदलेगा तो ब्रांच मैनेजर अपने कमरे से देख सकता है कि कैशियर के काउंटर पर क्या हो रहा है. कैशियर के साथ एक और अफसर होता है. कैश मूवमेंट रजिस्टर पर आने वाले और जाने वाले हर नोट का ब्योरा होता है. उस पर दोनों के दस्तखत होते हैं. हर शाम को कैश से मिलान किया जाता है. इस कैश मूवमेंट रजिस्टर की तीन चार दिनों पर जांच होती है. अधिकतम 15 दिनों तक जांच नहीं हुई तो ब्रांच मैनेजर जांच के दायरे में आ जाता है. बकायदा सर्टिफिकेट दिया जाता है कि जांच हुई और ब्रांच में कोई गड़बड़ी नहीं हुई. नोटबंदी के दौरान जब बैंकों के बाकी काम बंद हो गए तब उनके अफसर बैंकों का दौरा कर ब्रांच के रजिस्टरों की चेकिंग कर रहे थे, इसलिए किसी ब्रांच से बड़ी रकम बदलने और एक या दो लोगों को मिलने की गुंज़ाइश बहुत कम है. खासकर तब जब ब्रांच में दो तीन चार करोड़ से ज्यादा पैसा आया ही नहीं. किसी-किसी ब्रांच में तो इतना भी नहीं आया. जब बैंक वाले 24,000 की जगह 2,000 दे रहे थे तो कैसे मुमकिन है कि उनके पास किसी एक या दो को दस करोड़ या चार करोड़ के नए नोट देने की क्षमता होगी.
बैंक वाले भी कह रहे हैं कि वे भी हैरान हैं कि इतना पैसा जब आया ही नहीं और हर नोट की गिनती होती है तो कैसे किसी एक के पास इतना पैसा आ गया. कई बैंकों में पुराने बंद पड़े खातों को सक्रिय कर उसमें पैसे डाले जाने की बात तो सामने आई है. नोएडा के एक्सिस बैंक में 20 जाली खातों में 60 करोड़ जमा करने का मामला सामने आया है. इस एक बैंक से 200 करोड़ जाली खातों में जमा होने का मामला सामने आया है. कहीं-कहीं जमा करने की रसीद में जहां आप लिखते हैं कि 100 के कितने नोट हैं और 500 के कितने नोट, उसकी जगह नया फार्म भर कर छोटी मोटी रकम की अदला बदली हो सकती है लेकिन मोटी रकम संभव नहीं है क्योंकि बैंकों के भीतर सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं. अगर बैंक मैनेजर पकड़ा जाता है तो उसके नीचे का अफसर भी शक के दायरे में आ जाता है कि उसने इस तरह की रिपोर्टिंग क्यों नहीं की. बैंक कर्मचारियों ने भी कहा कि हम नहीं कहते कि हमारे यहां भ्रष्टाचार नहीं है लेकिन जब हमारे हाथ में पैसा ही नहीं था तो कुछ लोगों के पास करोड़ों की तादाद में नए नोट कैसे पहुंचे ये उन्हें भी नहीं समझ आता है. बैंक के ब्रांच में जो नोट पहुंचता है वहां सीरीज नंबर नहीं होता लेकिन यह लिखा जाता है कि 500 के कितने नोट जमा हुए और 2000 के कितने नोट निकाले गए. इसमें गलती की कोई संभावना ही नहीं है.
उत्तरी बेंगलुरु के यशवंतपुरा के इस अपार्टमेंट में सवा दो करोड़ के नए नोट कैसे पहुंचे. चंडीगढ़ में एक कपड़ा व्यापारी के यहां से 18 लाख रुपये के नए नोट कैसे मिले. ठाणे में तीन व्यापारियों के पास एक करोड़ 40 हज़ार के नए नोट कहां से पहुंचे. हैदराबाद में 2000 के नए नोटों की गड्डियां कहां से आई, वो भी 52 लाख की. मध्य प्रदेश के बालाघाट में 15 लाख 40 हज़ार की नई करेंसी बरामद हुई है. वडोदरा में 13 लाख के नए नोट बरामद हुए. कई जगहों पर बैंक अधिकारी भी पकड़े गए हैं. सीबीआई ने रिजर्व बैंक के अधिकारी को मनी लाउंड्रिंग में पकड़ा. इन जनाब पर पुरानी करेंसी लेकर 30 प्रतिशत कमीशन पर नई करेंसी देने का आरोप है.
यह जानना ज़रूरी है कि जब लोग कतार में दम तोड़ रहे थे तो भीतर कौन हेराफेरी कर रहा था. अभी तक जितनी भी राशि बरामद होने की ख़बर आई है उससे लगता नहीं कि बड़े पैमाने पर बैंकों में घोटाला हुआ है. सीबीडीटी के अनुसार नोटबंदी के बाद के 291 छापों में 316 करोड़ के नोट ज़ब्त हुए हैं. करीब 300 छापेमारी के बाद अस्सी करोड़ के नए नोट ही बरामद हुए हैं. 80 करोड़ के नए नोट के आधार पर क्या कहा जा सकता है कि बड़े पैमाने पर बैंकों में धांधली हुई है. आयकर विभाग ने 3000 लोगों को नोटिस भेजा है. हो सकता है कुछ और पकड़े जाएं. सवा लाख ब्रांचों की तुलना में बरामद नोट और नोटिस की संख्या कोई बहुत ज़्यादा नहीं है.
आयकर विभाग का कहना है कि इन तमाम सर्वे और छापों में आयकर दाताओं ने 2600 करोड़ की अघोषित आय की बात मानी है. यह अंतिम फैसला है, कहना मुश्किल है, क्योंकि तमाम प्रक्रियाएं पूरी होने में ही कई महीने लग जाते हैं. गुरुवार को आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने कहा कि सभी बैंकों को एक ब्रश से पेंट ना करें. उन्होंने कहा कि संदिग्ध ट्रांजैक्शन की रिपोर्ट बैंक अधिकारी ही देते हैं, जिसके आधार पर कार्रवाई होती है. 8 नवंबर के दिन कि कुल साढ़े 15 लाख करोड़ की करेंसी चलन में थी. 10 दिसंबर तक 12 लाख करोड़ पुराने नोट बैंकों में वापस आ गए हैं.
सवाल उठ रहा है कि अगर सारा पैसा बैंकों में आ गया तो मतलब है कि काला धन नहीं था. इसके भी कई पक्ष हैं, लेकिन हम आज इस पर नहीं बल्कि इस पर बात करना चाहते हैं कि क्या वाकई बैंक बदनाम किये जा रहे हैं या बैंकों ने काम ही ऐसा किया है. सरकार को बताना चाहिए कि किस ब्रांच में एक करोड़ से ज्यादा पैसा गया. कितने ब्रांचों में चार लाख या दस लाख रुपया गया. किसी ब्रांच से किसी को करोड़ों रुपये के नोट तभी मिलेंगे जब उस ब्रांच में कई करोड़ नए नोट आए होंगे. क्या कुछ ब्रांच ऐसे थे जहां पचास, सौ करोड़ रुपये बांटने के लिए दिए गए. पुराने नोट जरूर जमा किये गए होंगे. वो एक अलग मामला है कि किस तरह के खाते में जमा किया गया. पुराने के बदले नए नोटों का बदला जाना अलग और गंभीर मामला है. 80 करोड़ के नए नोट भले बड़ी राशि न हो मगर यह रकम चंद लोगों के हाथों में कैसे पहुंची. बैंक कर्मचारी कहते हैं कि इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, वर्ना बैंक वाले पब्लिक की निगाह में हमेशा के लिए बदनाम हो जाएंगे.
This Article is From Dec 16, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : कौन कर रहा है नोटों की हेराफेरी?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 16, 2016 23:45 pm IST
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Published On दिसंबर 16, 2016 21:21 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 16, 2016 23:45 pm IST
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