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This Article is From Mar 11, 2022

सड़क के किनारे का घर...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 11, 2022 17:36 pm IST
    • Published On मार्च 11, 2022 17:36 pm IST
    • Last Updated On मार्च 11, 2022 17:36 pm IST

सड़क के किनारे का घर हर वक्त सफ़र में रहता है. सड़क पर गुज़रने वाली हर गाड़ी के साथ मैं भी सफर करता रहता हूं. मेरे घर की खिड़की के नीचे एक सड़क गुज़रती है. हर दूसरी गाड़ी अपनी आवाज़ के साथ मुझे भी बिठा लेती है और कुछ दूर छोड़ आती है. उल्टी दिशा से आती आवाज़ के साथ वापस घर लौट आता हूं. इसी तरह से दिनभर चलता रहता हूं. बालकनी के साथ जिसे चलता हुआ देखता हूं,उसे देखते हुए उसके साथ कुछ दूर औऱ चल लेता हूं. होम डिलिवरी ब्वॉय जब सामने के अपार्टमेंट के बाहर बाइक खड़ी करता है तो उसके साथ मैं भी किसी घर के सामान दे आता हूं. साइकिल से जा रहे उस सुरक्षा गार्ड को कई बार देखा है. करियर पर टिफिन और कंधे पर बंदूक. उसके करियर पर बैठकर टिफिन हाथ में ले लाता हूं. उस एटीएम तक सफर कर लेता हूं, जहां उसकी ड्यूटी लगी है. वहां से लौटते वक्त किसी टेंपो में बैठ जाता हूं. अलग-अलग गाड़ी की आवाज़ मुझे कुछ दूर ले जाती है और फिर ले आती है. 

पास से एक रेल लाइन गुज़रती है. सुबह के वक्त ट्रेन की आवाज़ आती है. ट्रेन की आवाज़ से लगता है कि गाड़ी खुल गई है. मेरा घर भी खुल गया है. चलने लगा है. मैं पटना जाने वाली ट्रेन में बैठा हूं, स्टेशन से गाड़ी छूट रही है और मैं छोड़ने आए साथी को विदा कह रहा हूं. विदा का हाथ समेट कर सामने बैठे यात्री से नज़र मिल गई है. परिचय हो गया है. पत्रिका का पन्ना उलटने लगा हूं. हवा से बाल उड़ने लगे हैं. दिनभर ट्रेन की आवाज़ सुनाई नहीं देती है. सुबह के वक्त सुनाई देती है. ऐसी कोई ट्रेन नहीं गुज़रती जिसमें ख़ुद को बैठा नहीं पाता. कभी पटना से दिल्ली आता था तो गाज़ियाबाद आते ही हम गाड़ी में उतरने के लिए चलने लग जाते थे. उठे खड़े होते थे कि दिल्ली आने वाली है. गाज़ियाबाद का आना एक भरोसा था दिल्ली के आने का. दिल्ली से पटना जाने के रास्ते में जैसे ही गाज़ियाबाद निकलता था,सफर शुरू हो जाता था, दिल्ली छूट जाती थी. पटना आने लगता था. सुबह के वक्त जागना इन आवाज़ों के साथ सफर के शुरू हो जाने जैसा है.अभी अभी भी एक स्कूटर गुज़रा है, उसके पीछे की सीट पर बैठा हुआ हूं. ठंड लग रही है.

सड़क के किनारे का घर हमेशा सड़क पर होता है. उसका स्टैंड नहीं होता है जिस पर आप टिका कर घर खड़ा कर दें. सड़क के किनारे का घर चलता रहता है. इस कार ने इतनी ज़ोर से हॉर्न बजाया कि बिस्तर पर ही थोड़ा सरक गया हूं. जाओ भाई. मुझे तो खिड़की से केवल इमारतें दिखती हैं. लेकिन मुर्गे की बांग सुनाई दे रही है. अपार्टमेंट के घर मुर्गे के दड़बे लगते हैं. मुर्गा दिखाई नहीं दे रहा, कहीं आदमी तो बांग नहीं दे रहा है. ट्रैक्टर की आवाज़ इतनी तेज़ है कि मैं खुद को ट्रैक्टर में पाता हूं. कहीं निगम का ट्रैक्टर हुआ तो जाने कहां पटक आएगा. ट्रैक्टर से उतर कर ठेले पर चढ़ गया हूं. एक बुजुर्ग पपीता लिए जा रहे हैं. बालकनी से उन्हें धीरे-धीरे चलते देख रहा हूं. पपीता लेकर मैं चल रहा हूं. उस लड़के ने चारों तरफ देखकर सिगरेट जलाई है. उसे यकीन है कि कोई नहीं देख रहा,मैं देख रहा हूं.

मॉल के बाहर इतनी सुबह लड़का और लड़की मिलने आए हैं. दोनों इत्मिनान से बैठे हैं लेकिन एक अधेड़ उन्हीं के सामने टहलने लगा है. अजीब है. मना कर रहा हूं कि कहीं और टहलो, लेकिन वहीं टहल रहा है. हो सकता है उसके डॉक्टर ने डायबिटीज़ को लेकर हड़काया हो. कहीं और भी तो टहल सकता था.अभी अभी एक ब्लैक मर्सिडिज़ गुज़री है. देखते ही बिस्कुट का डिलर या पाइप लाइन का कांट्रेक्टर हो गया हूं. सुबह सुबह किसी साहब के घर मंडी का ताज़ा फल देने जा रहा हूं. वहीं चाय पीने का इरादा है. बाद में बात बन गई तो साहब को ज्योतिष के घर भी ले जाना है. सामने से छोटा हाथी टेंपो गुज़र रहा है.मंडी से बोरी बोरी की सब्ज़ी ख़रीद कर टेंपो भागा जा रहा है. उसके ऊपर दो लोग लेटे हुए हैं.

अभी तक कई प्रकार की गाड़ियों में बैठकर सफर कर चुका हूं. घर से निकल गया हूं और घर लौट आया हूं. जो भी दिखता है उसी के जैसा हो जाता हूं. असफल की तरह असफल और सफल की तरह सफल. टेंपो की तरह टेंपो, बस की तरह बस. इस लेख को ख़त्म कर रहा हूं. मुर्गा अब भी बांग दे रहा है जबकि मैं जाग कर लेख लिख रहा हूं. अभी अभी स्कूटर से लौटा था और पैदल चलने लगा हूँ. गुलदस्ते का फूल गिरा मिला है,उससे पांव हटा लिया है. फूलों पर चला नहीं जाता. पता नहीं मंदिर में चढ़ाया फूल है या किसी के जूड़े से गिर गया है.आगे चलकर एक काग़ज़ का टुकड़ा गिरा मिला है.उठा लिया है. स्कूल की कॉपी का पन्ना है. टीचर ने लाल रंग की स्याही से दो नंबर दिए हैं. सौ में दो नंबर. फेल करने वाले किसी बच्चे की कापी लगती है. जब आप घर ख़रीदें तो सड़क से दूर ख़रीदें या नहीं तो किसी ट्रेन या बस का टिकट ख़रीद लें. सफर में रहें. घर में न रहें. और हाँ, देर तक सोया करें.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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